धार्मिक कट्टरता और सनातन परंपरा

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जिस प्रकार धर्म को परिभाषित किया जाता है उसी प्रकार कट्टरता को भी परिभाषित करना आवश्यक है। कट्टरता से क्या तात्पर्य है? धर्म के नाम पर दिखावा करना, उन्माद फैलाना, प्रदर्शन करना, रूढ़िवादी होना, अन्य धर्मों के प्रति नफरत फैलाना, धर्म के नाम पर कानूनों का उल्लंघन करना, धर्म के नाम पर कुरीतियों और बुरे लोगों का समर्थन करना, धर्म के नाम पर विशेष सुविधाएं प्राप्त करने के लिए हिंसा करना आदि को धार्मिक कट्टरता की श्रेणी में रखा जा सकता है।

हिंदू धर्म में कट्टरता और धर्म के नाम पर हिंसा का कोई स्थान नहीं है। किन्तु वर्तमान की घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म रक्षार्थ खडे़ होना हिन्दुओं की मजबूरी बन गई है। क्योंकि खेल कबड्डी का चल रहा हो तो भले ही आप कितने भी अच्छे बल्लेबाज क्यों न हों, आप मैच नहीं जीत सकते। मजबूरी में आपको भी टांग खींचना सीखना ही पड़ेगा अन्यथा विरोधी टीम आपको घसीट-घसीटकर मारेगी। यही वह मजबूरी है जो भारतीयों को कट्टरता की ओर ले जाती है।

अगर सनातन परंपरा की बात करें तो कट्टरता हिन्दुओं के स्वभाव में है ही नहीं ।यहाँ परस्पर विरोधी विचार भी स्वीकार्य हैं। यहाँ सांप की पूजा भी होती है और गरुड़ की भी। जहां शाकाहार और मांसाहार दोनों प्रचलन में हैं किंतु आग्रह और महत्व शाकाहार का ही है। द्वैतवाद-अद्वैतवाद, ज्ञान मार्ग-भक्ति मार्ग, निर्गुण ब्रह्म-सगुण ब्रह्म आदि अनेक परस्पर विरोधी विचार सनातन परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। पशु-पक्षी, फूल-पत्ती, नदी-पहाड़, जल-जंगल, ग्रह-उपग्रह, चर-अचर, जड़-चेतन, कंकड़-पत्थर, सृष्टि, ब्रह्मांड सबकुछ जिसमें समाहित है उस धर्म को नियमों में बांधकर कठोर या कट्टर बनाया ही नहीं जा सकता।

सनातन धर्म में शास्त्रार्थ की परंपरा है‌। जहां तर्कों के आधार पर शास्त्रों पर प्रश्न किये जा सकते हैं।और जीवन उपयोगी दर्शन को परिभाषित कर लोगों के सम्मुख रखा जाता है ताकि लोग अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकें। विश्व में एकमात्र ऐसी परंपरा है जो सर्वे भवन्तु सुखिन: की कामना करती है। कहीं ऐसा उल्लेख नहीं कि सिर्फ हिंदुओं का कल्याण हो। बल्कि विश्व का कल्याण हो और प्राणियों में सद्भावना हो, ऐसा उद्घोष आज भी प्रतिदिन मंदिरों में किया जाता है।

सनातन परंपरा कोई धार्मिक संगठन ना होकर एक प्राकृतिक धर्म है। जबकि प्रायः अन्य सभी धार्मिक परंपराएं किसी ना किसी संघर्ष, असंतोष या आक्रोश की उपज है। सभी में कोई ना कोई संस्थापक है जिसने उस धर्म की स्थापना ठीक उसी प्रकार की है जिस प्रकार किसी संगठन की स्थापना की जाती है। किसी संगठन की ही भांति नए सदस्यों को शामिल करने के लिए धर्मांतरण की व्यवस्था भी प्राय: सभी धर्मों में मिलती है। किंतु हिंदू धर्म में ऐसी कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं है। मजबूरी में घर वापसी जैसे अभियान चलाने पड़ते हैं। क्योंकि सनातन परंपरा केवल एक धर्म ना होकर एक संपूर्ण सभ्यता है। एक जीवन पद्धति है। आचरण है। अपने आप को श्रेष्ठ बनाने का एक माध्यम है। जिस प्रका व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ होता है ठीक उसी प्रकार सनातन परंपराओं को अपनाकर आप अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं। कोई भी व्यक्ति आहार-विहार वाणी का संयम कर त्याग पूर्ण जीवन जी सकता है यही सनातन परंपरा है।

युक्ताहार विहारस्य, युक्त चेष्टस्य कर्मसु।
युक्त स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।। (श्रीमद्भगवद्गीता)

यही सनातन की महान परंपरा है। सफ़ाई में प्रयोग होने वाले झाड़ू को भी नमन करने वाले लोगों में भी तब कट्टरता आ जाती है जब वे देखते हैं कि, खिलाफत तुर्की में होती है और आंदोलन भारत में होता है। कार्टून का विवाद फ्रांस में होता है और आंदोलन भारत में होता है। युद्ध, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच होता है और धर्म के आधार पर दबाव भारत सरकार पर बनाया जाता है। कोरोना काल में कुछ टैंकर ऑक्सीजन अरब देशों से आई और धर्म के नाम पर पूरे देश पर एहसान थोप दिया। जबकि इस देश की ऑक्सीजन, पानी, भोजन सब खाकर बड़े हुए उसका कोई महत्व नहीं। मैच में पाकिस्तान जीतता है और धर्म के आधार पर पटाखे यहाँ फोड़े जाते हैं। अर्थात पानी अगर ईराक में बरसे तो लोग छतरी यहां खोल लेते हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में एक श्रीलंकाई नागरिक को जिंदा जला दिया गया। आप कहेंगे यह तो पाकिस्तान की घटना है लेकिन पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाले कुछ लोग तो यहां भी हैं। अभी भारत में भी एक धर्म स्थल में एक विक्षिप्त युवक अज्ञानतावश घुस गया था तो भीड़ ने उसे पीट-पीटकर मार डाला। अर्थात चारों ओर घनघोर असहिष्णुता और कट्टरता फैली हुई है। यही वे स्रोत हैं जिन से बहकर कट्टरता रूपी विष सहिष्णुता रूपी अमृत को दूषित कर देता है। जब सामने से पत्थर, तोप, तमंचे, तलवार और बम चल रहे हों और बेचारे बताकर संरक्षण भी मिल रहा हो तो सहिष्णुता दम तोड़ देती है।

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