वैवाहिक दुष्कर्म कानून की मांग और दाम्पत्य में संयम का आदर्श

वर्ष 2021 में स्त्रियों से सम्बंधित जो प्रमुख विषय चर्चा में रहे उनमें संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत, लड़कियों की विवाह की कानूनी रूप से मान्य आयु को 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष किये जाने के विधेयक (जो संसदीय समिति को भेज दिया गया) के अतिरिक्त वैवाहिक दुष्कर्म कानून की मांग प्रमुख रहा।

वैवाहिक दुष्कर्म कानून की चर्चा निर्भया कांड के बाद जस्टिस जे. एस. वर्मा कमेटी की, वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाये जाने की सिफारिश से प्रारंभ हुयी थी किन्तु वर्ष 2021 में दो अलग अलग राज्यों की सरकारों ने इससे सम्बंधित मामलों में अलग अलग निर्णय दिए जिससे यह विषय एक बार पुनः चर्चा के केंद्र में आ गया। मुंबई की एक अदालत ने एक मामले में पत्नी की इच्छा के विरुद्ध सम्बन्ध बनाने को अपराध नहीं माना जबकि केरल की एक अदालत ने एक अन्य मामले में इसे अपराध माना। यद्यपि दोनों मामलों की प्रवृत्ति भिन्न भिन्न थी तथापि अलग अलग निर्णयों के कारण इस सन्दर्भ में आपराधिक कानून बनाए जाने की मांग ने जोर पकड़ा।

कानून बनाने की मांग के जोर पकड़ने के साथ साथ कई प्रश्न भी उठाए जा रहे हैं जैसे: वर्तमान में ऐसा कानून होना उचित होगा अथवा नहीं?

यदि यह कानून बनाया जाता है तो उसका समाज और सामाजिक व्यवस्थाओं पर क्या प्रभाव होगा?

क्या इससे विवाह संस्था बिखर जाएगी या फिर ये कानून पुरुष सत्तात्मक समाज से बाहर निकलने की चाभी बनेगा?

क्या निजी हितों के लिए ऐसे कानून का सरलता से दुरुपयोग नहीं किया जाएगा?

क्या ये कानून सभी पंथ – सम्प्रदायों के परिवारों पर लागू होगा?

भारत के सामाजिक ताने बाने को देखते हुए ये प्रश्न आवश्यक भी हैं और उचित भी। निश्चित रूप से हमारे कानूनवेत्ता और समाजवेत्ता इन प्रश्नों के तर्कशील उत्तर खोजेंगे और तदनुसार निर्णय लिए जायेंगे।

यहाँ ऋषिअगस्त्य और लोपामुद्रा की कथा का स्मरण महत्वपूर्ण होगा।

आजीवन ब्रह्मचर्य धारण करने वाले ऋषि अगस्त्य को कुछ कारणों से विवाह का निर्णय लेना पड़ता है जिस के लिए वो विदुषी लोपामुद्रा का हाथ मांगने जाते हैं जो एक राजकुमारी है।

एक राजा अपनी कोमलांगी पुत्री का हाथ एक अरण्यवासी को कैसे दे दे? राजा व्यथित हो जाते हैं।

पिता के असमंजस को समझ कर लोपामुद्रा कहती है, ऋषि अगस्त्य से विद्वान स्वयं मेरा वरण करने आए हैं, ये मेरा सौभाग्य है। मैं इस विवाह से सहमत हूँ।

विवाह होता है। विदा वेला में, सुन्दर आभूषणों और रेशमी वस्त्रों में लोपामुद्रा को देखकर अगस्त्य कहते हैं, देवि, मैं तो अरण्य का वासी हूँ, वहां तुम इन वस्त्राभूषणों में कैसे रह पाओगी? वहां तो वल्कल वस्त्र ही शोभा देते हैं।

ये सुनकर लोपामुद्रा ने अविलम्ब अपने राज्योचित वस्त्राभूषणों का परित्याग कर दिया, वल्कल वस्त्र धारण किए और अगस्त्य के साथ वन को प्रस्थान कर गयी।

अगस्त्य के गुरुकुल में कई वर्षों तक वे दोनों अध्ययन, अध्यापन, शोध, यज्ञ आदि में डूबे रहे फिर एक वर्ष पावस ऋतु में स्नानरता लोपामुद्रा को देखकर अगस्त्य सम्मोहित हो गए और उन्होंने लोपामुद्रा के पास जाकर प्रणय निवेदन किया।

लोपामुद्रा ने उत्तर दिया, हम पति पत्नी हैं तो ये तो मेरा धर्म है कि मैं इस निवेदन को स्वीकार करूँ किन्तु इसे स्वीकार करने से पूर्व मेरा एक निवेदन है, जो आपको पूरा करना होगा।

वह क्या, देवि? अगस्त्य ने आश्चर्य से पूछा।

ये जो वल्कल वस्त्र हमने धारण किये हुए हैं इन्हें हमने अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ और शोध के समय पहना है इनके साथ प्रणय धर्म निभाने से इनका सम्मान घटेगा इसलिए आपको राज्योचित वस्त्राभूषणों की व्यवस्था करनी होगी। इसी प्रकार हमारे इस निवास में अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ और शोध कार्य हुए हैं ये भी हमारे गुरुजन जैसा ही है अतः इसका भी सम्मान रखना है तो आप एक प्रासाद की भी व्यवस्था करें।

ये कैसे संभव है, देवि? मैं इतना धन कहाँ से ला पाऊंगा जिससे ऐसी व्यवस्था हो सके? मुझे इतना धन कौन देगा? अगस्त्य ने कहा।

कोई भी प्रतापी राजा ज्ञान और मार्गदर्शन प्राप्त करने की दक्षिणा स्वरुप आपको इसका कई गुणा धन दे देगा ऋषिवर, लोपामुद्रा ने उत्तर दिया।

अगस्त्य जाने लगे तो लोपामुद्रा ने कहा, “मुनिवर, ये धन उसी राजा से लीजियेगा जिसके अभिलेख में प्रजा को दी जाने वाली सभी सुविधाओं पर व्यय के बाद अतिरिक्त धन बचता हो, ऐसा न होने पर राजा प्रजा की सुविधाएँ कम करके आपको धन देगा जिससे उसकी प्रजा को कष्ट होगा और उस कष्ट का अभिशाप हमारी संतान पर आयेगा।

लम्बी यात्रा के पश्चात अगस्त्य लोपामुद्रा के कहे अनुसार प्रसाद और धन की व्यवस्था करके लौटते हैं। लोपामुद्रा उनका प्रणय निवेदन स्वीकार करती है। एक संतान का जन्म होता है। जिसका विद्यारम्भ संस्कार होने तक वे उस प्रसाद में रहकर वापस गुरुकुल में जाकर निवास करने लगते हैं।

ये कथा हमें दांपत्य में प्रणय का संयम सिखाती है।

वैवाहिक बंधन में रहने वाले स्त्री पुरुष को भी प्रणय सम्बन्धों में किस प्रकार परिपक्वता और संयम का परिचय देना चाहिए उसका बोध कराती है। वर्तमान में जब सामाजिक और पारिवारिक जीवन अन्यान्य कारणों से इतना जटिल हो गया है तो क्यों न अपने अतीत से कुछ सीख लें जो जीवन को कानूनी दुरुहता से बचा कर रख सके।  

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