त्रिपुरा के बहाने महाराष्ट्र में कट्टरपंथियों का उपद्रव

त्रिपुरा के बारे अफवाह फैलाई गई कि जुलूस ने मुसलमानों और मस्जिदों पर हमले कर दिए। उच्च न्यायालय ने तत्काल इस खबर का संज्ञान लिया।त्रिपुरा सरकार के एडवोकेट जनरल सिद्धार्थ शंकर डे ने शपथ पत्र दायर किया जिसमें कहा गया कि बंग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में हुई तोडफोड के विरूद्घ विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को रैली निकाली थी। उसमें दोनो समुदायों के बीच कुछ झडपें हुई थी।तीन दुकानों को जलाने, तीन घरों और एक मस्जिद को क्षतिग्रस्त करने के आरोप दोनों पक्षों की और से लगाए गए। शपथपत्र में भी केवल आरोप की बात है।हालांकि पुलिस की जांच में इसका कोई प्रमाण नहीं मिला।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने हर बार की तरह फिर से अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्विट करके त्रिपुरा की छोटी सी झडप की घटना को सांप्रदायिक रंग दे दिया और अपना समुदाय विशेष परस्त चेहरा फिर से बेनकाब कर दिया।पिछले दिनों महाराष्ट्र के कई शहरों में डरावनी हिंसक घटनाओं ने भारत में बढ रही कट्टरपंथी तंजीमों की और फिर से अपना ध्यान खींचा है। महाराष्ट्र में सुनियोजित साजिश के तहत अनेक जगह मुस्लिम संस्थाओं एंव संगठनों के आह्वान पर विरोध-प्रर्दशन की आड पर जमकर अराजकता फैलाई गई।मुसलिम प्रर्दशनकारी हिंसक रूप में अमरावती, नांदेड, मालेगांव, भिवंडी जैसे शहर हिंसा के सबसे अधिक शिकार हुए। अमरावती में पुराने कटान मार्केट चौक में पूर्व मंत्री जगदीश गुप्ता की किराना प्रतिष्ठान पर मुसलिम उपद्रवियों ने जमकर पत्थरबाजी की।

इन हमलावरों को पहले से मालूम था कि यह किसका प्रतिष्ठान हैं। बसंत टाकीज इलाके में जिन प्रतिष्ठानों एवं दुकानों पर हमले हुए, वे सब हिंदुओं के थे।पूर्व मंत्री एवं विधायक प्रवीण पोटे के कैंप कार्यालय पर पत्थरबाजी की गई। मालेगांव में जुलुस के भयावय रूप ने हिंदुओं को अपने घरों में बंद हो जाने के लिए मजबूर कर दिया। जहां भी हिंदुओं के संस्थान और दुकानें खुली मिली, वहीं हिंसक भीड ने जमकर उत्पात मचाया। पूरा माहौल भयभीत करने वाला था।मुसलिम हमलावरों द्वारा रैपिड एक्शन फोर्स पर भी हमला किया गया।हालांकि महाराष्ट्र के गृह मंत्री और पुलिस महानिदेशक स्थिति को इतना गंभीर नहीं मान रहे हैं, तो संभव है यह सब पुलिस रिकोर्ड में नहीं आए,लेकिन स्थानीय लोगों ने जो देखा और भुगता,उसे उनके लिए भुलाना कठिन होगा।

कहा जा रहा है कि त्रिपुरा की घटना का विरोध करने के लिए कुछ मुसलिम संस्थाओं-संगठनों को बंद एंव प्रर्दशन की अनुमति मिली थी,जबिक कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों के एक समूह ने इंटरनेट मिडिया पर त्रिपुरा में मुसलमानों के विरूद्ध हिंसा की जो खबरें और विडियों वायरल कराए थे वो पूरी तरह से झूठे थे। बंग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा पंडालों, हिंदू स्थलों तथा हिंदुओं पर हमले के विरोध में त्रिपुरा में शांतिपूर्ण जुलूस निकाला गया था। तनाव के छिटपुट मामले सामनें आए लेकिन कुल मिलाकर आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो गया था।

महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसे केवल वहीं की घटना समझने की भूल मत कीजिए,पता नहीं देश में कहां-कहां ऐसे ही हिंसक उपद्रव की प्रकट परोक्ष तैयारियां चल रही होंगी।महाराष्ट्र में विरोध-प्रदर्शन एवं बंद का आह्वान वैसे तो रजा एकेडमी ने किया था,किंतु अलग-अलग जगहों पर सुन्नी जमातुल उलमा जैसे कुछ दूसरे संगठन भी शामिल थे।इस बंद को एमआइएम, कांग्रेस, एनसीपी और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का भी समर्थन था।तो जो हुआ इन सभी संगठनों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। किसी देश में हिंदुओं और सिखों आदि के विरूद्ध हिंसा हो तो क्या भारत के लोगों को उसके विरोध में प्रदर्शन करने का अधिकार है या नहीं? यह मानवाधिकार की परिधि में आता है या नहीं? त्रिपुरा की सीमा बंग्लादेश से लगती है तो यहां आक्रोश स्वाभाविक था, जिसे लोगो ने शांतिपूर्ण ढंग से लोगों ने प्रकट किया। अगर किसी ने कानून को अपने हाथ में लिया तो उसके लिए कार्यवाही करने का पुलिस का दायित्व हैं।

जिन लोगों के लिए त्रिपुरा फासीवादी घटना बन गई,उनके लिए बंग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा ना मामला बना ही नहीं। सब बडी साजिश के तहत भारत हो या बंग्लादेश हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है, बंग्लादेश की घटना के बारे ये सच जानना भी बहुत आवश्यक है कि दुर्गा पंडाल तक कुरान शरीफ इकबाल हुसैन नामक मुसलिम युवक ले गया था। बाद में इकराम ने फोन पर पुलिस को सूचित किया तथा फयाज ने फेसबुक पर भडकाऊ पोस्ट डाला। इन तीनों का संबध जमात-ए-इस्लामी या अन्य कट्टरपंथी संगठनों से सामने आया है। यहां आरंभ में पुलिस ने परितोष राय नामक किशोर को गिरफ्तार किया था।क्या इससे ये समझ नहीं आता है कि इस्लामिक कट्टरपंथी समूह किस मानसिकता के साथ कार्य कर रहे है?

इसलिए महाराष्ट्र की घटना को व्यापक परिप्रेक्ष्य में पूरी गंभीरता के साथ बैठकर विचार करने की आवश्यकता हैं। जिन मुसलिम कट्टरपंथी संगठनों ने हिंसा कराई, केवल वे ही नही, बल्कि जिन लोगो ने देशव्यापी झूठ प्रचार कर लोगों को भडकाया, उन सबको कानून के कटघरे में खडा किया जाना बहुत आवश्यक हैं।

लेख – अभिषेक कुमार

Abhishek Kumar: Politics -Political & Election Analyst
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