भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) क्या है: चतुर्थ् भाग (LIQUIDATOR)

मित्रों  इसके प्रथम तीन  भागों में हमने ये जाना की आखिर “भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC)” को लागू करने की आवश्यकता क्यों पड़ी और इस संहिता के अंतर्गत धारा १ से लेकर धारा ३२ तक “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” जिसे अंग्रेजी में “Corporate Insolvency resolution process (CIRP)” कहते हैं, से सम्बंधित प्रावधान क्या है और कैसे क्रियान्वित होते हैं, अब इस भाग में हम ये देखेंगे की किसी Corporate (Company या LLP) के “परिसमापन” अर्थात लिक्विडेशन (LIQUIDATION) प्रक्रिया होती कैसे है।

भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) की धारा ३३ और इसके पश्चात की धाराओं में “परिसमापन” अर्थात लिक्विडेशन (LIQUIDATION) से सम्बंधित प्रावधानों को सूचीबद्ध किया गया है।

साथियों  जैसा की हम तृतीय भाग में ये बता चुके हैं कि ये संहिता किसी कारपोरेट (कंपनी या एल एल पी) को मारने (अर्थात उसके “परिसमापन” (LIQUIDATION) से पूर्व उसको जिन्दा रहने (अर्थात व्यवसाय करने और ऋण के भुगतान करने) का पूरा अवसर प्रदान करती है, जो “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) के अंतर्गत आती है। आइये हम समझने का प्रयास करते है कि आखिर ये “परिसमापन” (LIQUIDATION) है क्या और कैसे आरम्भ होकर अंत तक पहुंचता है।

तृतीय भाग में हमने SBI और VIDEOCON का उदाहरण लेकर हमने “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) को समझने का प्रयास किया था, हम इसी उदाहरण के साथ आगे बढ़ते हैं और मान लेते हैं कि VIDEOCON एक कंपनी है जिसे SBI ने ऋण दिया है। VIDEOCON के द्वारा लिए गए ऋण की कोई क़िस्त (जो Rs. १,००,०००/- तक की है) नहीं दी गयी है। अब SBI को ये लगता है की VIDEOCON की स्थिति ख़राब हो चुकी है और वो उसके दिए गए ऋण का भुगतान नहीं कर पा रही है तब  SBI, यँहा पर एक  वित्तीय लेनदार (Financial Creditor) होने के नाते, VIDEOCON (जो की कंपनी देनदार /Company Debtor) के विरुद्ध भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता २०१६ (IBC) की धारा ७ के अनुसार “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) व “परिसमापन”  (LIQUIDATION) की प्रक्रिया आरम्भ कर सकती है।

आप को यह भी बताया जा चूका है कि “अर्जी के NCLT के द्वारा स्वीकार कर लेने के दिन से लेकर “कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया” (CIRP) के प्लान को NCLT के द्वारा स्वीकार्यता प्रदान करने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को १८० दिनों में समाप्त करना होता है और विशेष परिश्थितियों में इसमें ९० दिन और COC की अर्जी पर NCLT द्वारा दिया जा सकता है अर्थात सम्पूर्ण प्रक्रिया न्यूनतम १८० दिनों में और अधिकतम २७० दिनों में पूर्ण करनी होती है। “अतः अब हम ये देखते हैं की वे कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके कारण VIDEOCON के “परिसमापन” (LIQUIDATION) की प्रक्रिया को आरम्भ करना पड़ सकता है।

धारा ३३ के अनुसार निम्न परिस्थितियों में एडजुकेटिंग अथॉरिटी (AA), जिसे हिंदी में “न्यायनिर्णायक प्राधिकरण” कहते हैं (यँहा पर NCLT), “परिसमापन” (LIQUIDATION) की प्रक्रिया को आरम्भ कर सकता है:

१) (क) यदि “न्यायनिर्णायक प्राधिकरण” दिवाला समाधान प्रक्रिया की अवधि (१८० दिन) की समाप्ति से पहले या धारा 12 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अनुमत अधिकतम अवधि (२७० दिन) या धारा 56 के तहत फास्ट ट्रैक कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के अंतर्गत, जैसा भी मामला हो, धारा 30 की उप-धारा (6) के तहत एक समाधान योजना (CIRP PLAN) नहीं प्राप्त करें;   या

(ख) धारा ३१ के तहत उसमें निर्दिष्ट आवश्यकताओं के अनुपालन न करने के कारण प्रस्तुत किये गए (CIRP- PLAN) समाधान योजना को अस्वीकार करता है, उपर्युक्त दोनों परिस्थितियों में VIDEOCON के “परिसमापन” (LIQUIDATION) की प्रक्रिया को आरम्भ कर देगा और इसके लिए वो निम्न कार्यवाही करेगा।

(अ ) इस अध्याय में निर्धारित तरीके से कॉर्पोरेट देनदार (यंहा पर VIDEOCON) को परिसमाप्त करने की आवश्यकता वाला एक आदेश पारित करेगा;

(ब) इसके बाद NCLT एक सार्वजनिक घोषणा जारी करेगा  जिसमें कहा गया  होगा कि कॉर्पोरेट देनदार (यंहा पर VIDEOCON) परिसमापन में है; तथा

(स) इसके बाद ऐसे आदेश को उस प्राधिकरण को भेजेगा जिसके साथ कॉर्पोरेट देनदार (यंहा पर VIDEOCON) पंजीकृत है अर्थात रजिस्ट्रार ऑफ़ कम्पनीज (ROC) को उस आदेश की प्रति भेजेगा।

(२) जहां समाधान पेशेवर (RESOLUTION PROFESSIONAL), किसी भी समय कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान लेकिन समाधान योजना (CIRP PLAN) की पुष्टि (APPROVAL) से पहले, लेनदारों की समिति (COMMITTEE OF CREDITORS) के द्वारा ६६%  मतों से अनुमोदित कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON) को समाप्त करने के लिए निर्णय के बारे में निर्णायक प्राधिकरण (यंहा NCLT) को सूचित करता है, तब न्यायनिर्णायक प्राधिकरण उप-धारा (1) के खंड (ख) के उप-खंड (अ ), (ब) और (स) में निर्दिष्ट व्यवस्था के अनुसार एक परिसमापन (LIQUIDATION) का आदेश पारित करेगा।

[स्पष्टीकरण।– इस उप-धारा के प्रयोजन के लिए, यह घोषित किया जाता है कि लेनदारों की समिति (COMMITTEE OF CREDITORS) (धारा 21 की उप-धारा (1) के तहत अपने गठन के बाद किसी भी समय और समाधान योजना (CIRP PLAN) की पुष्टि से पहले या सूचना ज्ञापन (MEMORANDUM ऑफ़ INFORMATION) तैयार करने से पहले किसी भी समय समाधान योजना सहित, कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON ) को समाप्त करने का निर्णय ले सकती है।]

(३) जहां न्यायनिर्णयन प्राधिकरण ३ [धारा ३१ के तहत या धारा ५४ एल की उप-धारा (१) के तहत] द्वारा अनुमोदित संकल्प योजना (CIRP PLAN ) का उल्लंघन संबंधित कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON) द्वारा किया जाता है, कॉर्पोरेट देनदार के अलावा कोई भी व्यक्ति, जिसके हित पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं इस तरह के उल्लंघन से प्रभावित है, उप-धारा (1) के खंड ((ख)) के उप-खंड (अ), (ब) और (स) में निर्दिष्ट परिसमापन आदेश के लिए न्यायनिर्णायक प्राधिकारी (NCLT) को आवेदन कर सकते हैं।

(४) उप-धारा (३) के तहत एक आवेदन प्राप्त होने पर, यदि निर्णायक प्राधिकरण (NCLT) यह निर्धारित करता है कि कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON)ने संकल्प योजना (CIRP PLAN) के प्रावधानों का उल्लंघन किया है, तो वह उप-धारा (1) के खंड (ख) के उप-खंड (अ), (ब ) और (स ) में निर्दिष्ट एक परिसमापन आदेश पारित करेगा।

(५) धारा ५२ के अधीन, जब एक परिसमापन आदेश पारित किया गया है, तो कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON) द्वारा या उसके खिलाफ कोई मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी, बशर्ते कि निर्णायक प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन से, कॉरपोरेट देनदार की ओर से परिसमापक (LIQUIDATOR) द्वारा एक मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू की जा सकती है।

(६) उप-धारा (५) के प्रावधान ऐसे लेनदेन के संबंध में कानूनी कार्यवाही पर लागू नहीं होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा किसी वित्तीय क्षेत्र के नियामक के परामर्श से अधिसूचित किया जा सकता है।

(७) इस धारा के तहत परिसमापन के आदेश को कॉरपोरेट देनदार के अधिकारियों, कर्मचारियों और कामगारों के लिए छुट्टी का नोटिस माना जाएगा, सिवाय इसके कि जब परिसमापक द्वारा परिसमापन प्रक्रिया के दौरान कॉर्पोरेट देनदार का कारोबार जारी रखा जाए।

धारा 34: के अनुसार परिसमापक(LIQUIDATOR) की नियुक्ति और भुगतान किया जाने वाले  शुल्क की व्यवस्था की जाती है।

*34. (१) जहां न्यायनिर्णायक प्राधिकरण (NCLT) धारा ३३ के तहत कॉर्पोरेट देनदार (यंहा VIDEOCON)के परिसमापन के लिए एक आदेश पारित करता है, तो कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के लिए Chapter-II OR for the Pre-packaged insolvency resolution process under Chapter III-A के तहत नियुक्त समाधान पेशेवर (RESOLUTION PROFESSIONAL), निर्णायक प्राधिकरण को अपनी  लिखित सहमति निर्दिष्ट प्रारूप में प्रस्तुत करके, परिसमापन के प्रयोजनों के लिए परिसमापक (LIQUIDATOR) के रूप में कार्य करेगा जब तक कि उसे उप-धारा (4) के तहत न्यायनिर्णायक प्राधिकरण (यंहा NCLT) द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाता है।

(२) इस धारा के तहत एक परिसमापक की नियुक्ति पर, निदेशक मंडल, प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों और कॉर्पोरेट देनदार के भागीदारों, जैसा भी मामला हो, की सभी शक्तियां अप्रभावी हो जाएँगी और परिसमापक में निहित हो जाएँगी।

(३) कॉर्पोरेट ऋणी (CORPORATE DEBTOR) के कार्मिक (EMPLOYEE), परिसमापक को सभी सहायता और सहयोग प्रदान करेंगे, जैसा कि कॉर्पोरेट देनदार के मामलों के प्रबंधन में उसके लिए आवश्यक हो सकता है और अंतरिम समाधान पेशेवर (INTERIM  RESOLUTION  PROFESSIONAL) के संदर्भ के लिए परिसमापक के संदर्भों के प्रतिस्थापन के साथ परिसमापन प्रक्रिया के लिए धारा १ ९ के प्रावधान स्वैच्छिक परिसमापन प्रक्रिया के संबंध में लागू होंगे।

(४) न्यायनिर्णायक प्राधिकारी (ADJUCATING AUTHORITY) अपने आदेश द्वारा संकल्प पेशेवर (RESOLUTION  PROFESSIONAL) को निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिस्थापित करेगा, यदि-

(अ ) धारा ३० के तहत समाधान पेशेवर द्वारा प्रस्तुत समाधान योजना को धारा ३० की उप-धारा (२) में उल्लिखित आवश्यकताओं को पूरा करने में विफलता के लिए अस्वीकार कर दिया गया था; या

(ब) बोर्ड (INSOLVENCY एंड BANKRUPTCY BOARD OF INDIA जिसकी स्थापना १ अक्टूबर, २०१६ को हुई थी) निर्णय लेने वाले प्राधिकरण को एक समाधान पेशेवर के प्रतिस्थापन की सिफारिश करता है जिसके कारण दर्ज किए जाने हैं लिखित रूप में; या

(स) संकल्प पेशेवर उप-धारा (१) के तहत लिखित सहमति प्रस्तुत करने में विफल रहता है।]

(५) उप-धारा (४) के ५ [खंड (अ ) और (स)] के प्रयोजनों के लिए, निर्णायक प्राधिकरण बोर्ड को एक परिसमापक के रूप में नियुक्त किए जाने वाले किसी अन्य दिवाला पेशेवर  के नाम का प्रस्ताव करने का निर्देश दे सकता है।

(६) बोर्ड उप-धारा (५) के तहत निर्णायक प्राधिकरण द्वारा जारी निर्देश के दस दिनों के भीतर एक अन्य दिवाला पेशेवर के नाम का प्रस्ताव करेगा [निर्दिष्ट रूप में दिवाला पेशेवर की  लिखित सहमति के साथ]।

(७) निर्णायक प्राधिकरण, परिसमापक के रूप में एक दिवाला पेशेवर की नियुक्ति के लिए बोर्ड के प्रस्ताव की प्राप्ति पर, एक आदेश द्वारा ऐसे दिवाला पेशेवर को परिसमापक के रूप में नियुक्त करेगा।

(८) परिसमापक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए प्रस्तावित दिवाला पेशेवर, परिसमापन कार्यवाही के संचालन के लिए और परिसमापन संपत्ति  के मूल्य के अनुपात में, जैसा कि बोर्ड द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है, ऐसा शुल्क लेगा।

(९) उप-धारा (८) के तहत परिसमापन कार्यवाही के संचालन के लिए शुल्क का भुगतान परिसमापक को धारा ५३ के तहत परिसमापन संपत्ति की आय से किया जाएगा।

दोस्तों अगले भाग में हम देखंगे की आखिर परिसमापक (LIQUIDATOR) परिसमापन (LIQUIDATION) की प्रक्रिया को पूर्ण कैसे करता है।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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