सुनो तेजस्विनी, तुम्हारे वाले की भी परख आवश्यक है

लगभग डेढ़ वर्ष होने को आए, कोरोना के कारण जीवन थम सा गया। कितना कुछ बंद हो गया विद्यालय, महाविद्यालय, कार्यालय, बाज़ार, रेल गाड़ियाँ। नहीं बंद हुआ तो हर दिन समाचार पत्रों में स्थायी स्तम्भ की तरह आने वाली लव जिहाद की क्रूर कहानियों का आना। किसी दिन आधी जली हुयी लड़की की कहानी, किसी दिन हत्या कर फेंक दी गयी लड़की की कहानी और किसी दिन शारीरिक और मानसिक रूप से हर समय प्रताड़ित की जाती लड़की की कहानी।

लव जिहाद की घटनाओं के समाचारों से एक बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि लव जिहाद का शिकार कोई भी लड़की या स्त्री हो सकती है – दलित या ब्राह्मण, ठाकुर या बनिया, जैन या सिख, अमीर या गरीब, पढ़ी लिखी या अशिक्षित, अपने पैरों पर खड़ी या संघर्ष करने वाली, किशोरी या वयस्क, विवाहित या तलाकशुदा या विधवा।

कभी लव जिहादी असलम, आदित्य बनकर आ जाता है, कभी शमीम, शैलेन्द्र बनकर। कभी कभी वो आरिफ ही बना रहता है और लड़की को अपने प्रेम जाल में ऐसे उलझा लेता है कि प्रेम में पागल लड़की, मैंने अपनी मर्ज़ी से धर्मान्तरण किया का शपथ पत्र देकर प्रेम निभाती है। कई बार प्रेम के कुछ कमज़ोर पलों का छायांकन करके ब्लैकमेलिंग से  भी धर्म परिवर्तन करा लिया जाता है।

और एक बार धर्मान्तरण कर लिया तो हिन्दू लड़की को विवाह से मिलने वाले सारे अधिकार खो दिए, शरई अदालत के सामने तो उनकी अपनी औरतें ही लाचार हैं, धर्मान्तरित को क्या अधिकार मिलेगा?

सुनो तेजस्विनी, प्रेम हो जाता है, ये कोई बड़ी या महत्वपूर्ण बात नहीं है। प्रेम कहीं भी, कभी भी, किसी को भी, किसी से भी, किसी भी आयु में किन्हीं भी परिस्थितियों में हो सकता है। महत्वपूर्ण है प्रेम में फँस जाने, उलझ जाने, पड़ जाने या प्रेम हो जाने पर भी अपनी मानसिक स्थिति को संतुलित रखना, अपनी शारीरिक सुरक्षा का ध्यान रखना, परिवार और शुभचिंतकों का साथ सहेजे  रखना और सामाजिक ताने बाने के तले उस प्यार की परख हो जाने देना।

प्रेम या प्यार एक भावनात्मक या अमूर्त विषय हो सकता है किन्तु जीवन अमूर्त नहीं होता। यदि तुम किसी पुरुष विशेष के साथ प्यार में हो और उसके साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहती हो, विवाह करना चाहती हो,  तो ये एक व्यावहारिक विषय है, भौतिक जीवन का विषय है। तुम्हारे अपने ही भविष्य और सुख दुःख का विषय  है।

व्यावहारिक जगत और भौतिक जीवन के निर्णय जाँच-परख कर और संतुलित मानसिक स्थिति में ही हो सकते हैं।

तनिक विचार करो, आज हम घर में गृहकार्य के लिए सहायिका यानि मेड रखते हैं तो उसकी भी पड़ताल करते हैं, उन पड़ोसियों से जहाँ वो काम करती है उसके व्यवहार और कार्य कौशल का पता लगाते हैं। कई बार तो पुलिस वेरिफिकेशन भी कराते हैं। मेड पसंद न आयी तो हम उसे किसी भी समय निकाल सकते हैं,

विवाह तो जीवन भर के लिए होता है  फिर बिना किसी की परख किए उसके साथ विवाह कैसे किया जा सकता है ?

किसी के साथ छुपकर –भागकर ऐसे ही मत चल पड़ो, उसे अपने परिवार से मिलाओ, उनके विचार जानो। माता –पिता सख्त हैं तो – मामा –मामी, मौसी- मौसा, चाचा –चाची, भैया- भाभी, दीदी –जीजा, पारिवारिक मित्र, अच्छे दोस्त और सहेलियां, खास पड़ोसी कोई तो होगा, जिससे उसके बारे में बात करो। जिन लोगों की पसंद के बिना तुम एक जोड़ी चप्पल भी नहीं खरीदती उनकी पसंद के बिना जीवनसाथी कैसे चुन सकती हो?

आगे कोई कठिनाई आए तो पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते ही सँभालते हैं परिस्थितियों को और तुम्हें भी।

प्यार के पागलपन में भी अपना धर्म मत छोड़ो। जो व्यक्ति तुम्हें तुम्हारे धर्म, तुम्हारी मान्यताओं के साथ जैसी और जो तुम हो वैसे स्वीकार नहीं करता वो तूम्हें प्यार नहीं करता, उसके लिए अपना जीवन दाँव पर मत लगाओ। वो तुमसे धर्म बदलने की अपेक्षा क्यों करता है, स्वयं तुम्हारे धर्म में क्यों नहीं  आ जाता यदि तुम्हें इतना ही प्यार करता है तो? कभी ये प्रश्न करके देखो उससे, क्या उत्तर मिलता है?

यदि तुम्हारा परिवार, दोस्त, सहेलियां तुम्हें अंतर-धार्मिक विवाह या धर्म परिवर्तन के लिए मना करते हैं तो तुम्हें लगता है कि वो तुम्हारी आज़ादी छीन रहे हैं, पिछड़ी मानसिकता के हैं, तुम्हारे प्यार की राह का रोड़ा हैं लेकिन जो विवाह के लिए तुम्हारा धर्म बदल रहा है वो?

वो ये क्यों नहीं कहता कि, चलो, “ स्पेशल मैरिज एक्ट” के अंतर्गत विवाह करते हैं?

कभी उससे पूछ कर देखो  कि, अगर शादी के बाद मैं सावन के महीने में शंकर जी को जल चढ़ाना चाहूं तो क्या चढ़ा पाऊँगी? अगर मैं धर्म न बदलूँ तो क्या मेरी संतान को तुम्हारी पैतृक संपत्ति पर अधिकार मिलेगा? क्या हमारे बच्चे का खतना होगा? ये प्रश्न बहुत आवश्यक हैं क्योंकि भौतिक जीवन में ये सारे प्रश्न होते हैं।

वैवाहिक जीवन,विशुद्ध व्यावहारिक जीवन है कठोर और पथरीला, ये भावुक प्रेम नहीं है जो सपनों या फ़िल्मी परदे पर होता है।

कोई भी  जिसके साथ प्यार में होता, कई बार उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण नहीं कर पाता, कम से कम अतिरेक के क्षणों में या जिसे हम प्यार का पागलपन कहते हैं उसमें ऐसा कर पाना बिलकुल भी संभव नहीं होता।

इसलिए तेजस्विनी, तुम्हारे वाले की भी, परिवारऔर बड़ों से परख करायी  जानी  आवश्यक है.

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