कोरोना के पीछे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का हाथ?

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आज वैश्विक पटल पर कुछ गंभीर आरोपों से घिरी हुई है। जिसे न ही चीन की सर्वशक्तिमान कम्युनिस्ट पार्टी सुनना चाहती है और न ही चीन के वर्तमान राष्ट्रपति और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी सी जिनपिंग। स्वाभाविक सी बात है जब आरोप सच्चाई को प्रदर्शित करने लगें तो भला दोषी को कैसे अच्छे लगेंगे। खैर कोरोना से जूझता संपूर्ण विश्व इस सवाल का उत्तर खोजने में लगा है कि क्या कोरोना महामारी चीन के हुक्मरानों की लापरवाही का जीता जागता परिणाम है। 

ब्रिटिश अख़बार “द गार्डियन” में “द साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट” के हवाले से 13 मार्च 2020 को छपे एक लेख के मुताबिक कोरोना का पहला मरीज़ चीन के हुबेई प्रान्त में 17 नवंबर 2019 को सामने आया। जिसकी उम्र तक़रीबन 55 वर्ष थी। लेख में इस बात को भी उजागर किया गया है कि पहले केस के दर्ज होने से ठीक अगले एक महीने तक रोज़ 1 से 5 नए केस सामने आये और 20 दिसंबर 2019 तक यह आंकड़ा 60 मरीज़ो तक जा पंहुचा।

“द साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट” में 25 जनवरी 2020 को छपे एक दूसरे लेख के मुताबिक, वुहान और बीजिंग में बैठे चीनी ब्यूरोक्रेटों और शीर्ष हुक्मरानो ने 20 जनवरी 2020 तक इस बीमारी पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश की लेकिन वायरस के अप्रत्यक्ष रूप से फैलने के कारण सारे के सारे प्रयास धरे के धरे रह गए। 

द फर्स्टपोस्ट में 25 मार्च 2020 को छपे एक लेख में एक दावा किया गया। वह यह कि इस नयी बीमारी से निपटने के लिए अमेरिका की सेण्टर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने एक टीम का गठन करके चीन भेजने का प्रस्ताव सामने रखा। जिसे चीनी हुकूमत ने सिरे से खारिज कर दिया लेकिन ठीक 2 महीने बाद 16 जनवरी को विश्व स्वास्थ संगठन की टीम को चीन आने की अनुमति प्रदान कर दी गयी।

आखिर चीनी हुकूमत की जवाबदेही तय करनी क्यों ज़रुरी है?

चूंकि चीन एक सत्तावादी साशन वाला देश है जहां मीडिया का नाम मात्र अस्तित्व है। वहां जो दो चार हैं भी वह चीनी हुकूमत और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र (माउथपीस) है। तो यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि चीन जो कुछ भी दुनिया को दिखाता है वह मोटे तौर पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का ही प्रोपोगैंडा होता है।

नवंबर 2002 में जब चीन में SARS वायरस का पहला मरीज़ सामने आया तब भी चीनी हुकूमत ने फरवरी 2003 तक इसे पब्लिक डोमेन में सामने आने नहीं दिया। तकरीबन 20 अप्रैल तक इस पर पूर्ण तरीके से पर्दा डालने की कोशिश की गई। 2003 में जब SARS महामारी फैली तब भी उसके पीछे प्रमुख कारण जंगली जानवरो का सेवन बताया गया था और तब यानी ठीक 17 साल पहले चीन ने इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की बात कही थी। अब यानी 2019 के अंत में फैले कोरोना से चीन के यह दावे धरे के धरे रह गए।

लापरवाह चीन की लापरवाही फिर दुनिया के सामने आई

चीनी हुकूमत ने जो लापरवाही 2003 में बरती, ठीक उसी तरीके की लापरवाही उन्होंने कोरोना को वैश्विक महामारी का रूप दिया। जो प्रशासनिक ढीलापन 2003 में देखने को मिला ठीक वैसा ही वुहान में भी दिखा। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में लेखक वांग सिआंगवेई ने 25 जनवरी 2020 को अपने लेख में इस बात का वर्णन किया है कि चीनी लूनर ईयर के दौरान कोरोना कोई बाधा न बने। इसलिए वुहान में अधिकारियों और प्रशासनिक अमली‌-जामा ने इस पर पर्दा डालने की पूरी पूरी कोशिश की।

खैर हालत बेकाबू होता देख चीन ने जनवरी के आखरी हफ्ते में वुहान में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया। खैर चीन के इस ढीले रवैये के कारण तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी। अर्थात कोरोना चीन के बाहर पांव पसार चूका था और स्वयं वुहान के मेयर जहं क्सीजनवांग के मुताबिक लॉक डाउन लगने से ठीक पहले तक तक़रीबन 50 लाख लोग वुहान से बाहर जा चुके थे।

50 लाख एक बहुत बड़ी संख्या है और ऐसे वक्त में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का वुहान से निकल जाना चीनी हुकूमत की मंशा पर सवाल खड़े करता है। चीनी सरकार की यही लापरवाही आज पूरी दुनिया के लिए मानो गले का फंदा बन चुकी है।

चीनी हुकूमत का कोरोना को लेकर ढीला रवैया स्वयं चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के माउथपीस ग्लोबल टाइम्स में 11 फरवरी 2020 को छपे एक लेख से समझा जा सकता है। जिसका शीर्षक कुछ इस तरीके से है कि “Why the West is overreacting to Corona Virus” यानी मोटे मोटे शब्दों में आखिर क्यों पश्चिमी देश कोरोना वायरस को इतना बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं। खैर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को यह बात अब अच्छे से समझ आ गयी होगी कि जिस वायरस को तब पश्चिमी देश इतना बड़ा चढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे थे आज ठीक एक से डेढ़ महीने बाद वही वायरस त्रासदी का भयंकर रूप ले चूका है।

चीन के गैर-ज़िम्मरदाराना रवैये का सिलसिला रुका नहीं

खैर लापरवाही का सिलसिला यही तक नहीं थमा। बल्कि चीन से कुछ और ऐसी खबरें आयी जिन्होंने चीन की मंशा पर सवाल खड़े किये। वुहान के डॉ ली वेलिआंग जिनकी मौत कोरोना से स्वयं 7 फरवरी 2020 को हुई। वह उन चुनिंदा लोगो में थे जिन्होंने कोरोना वायरस से आने वाले खतरे के बारे में लोगों को अपने अन्य 7 साथियों के सहयोग से दिसंबर 2019 में ही सोशल मीडिया पर साझा किया।

खैर चीनी हुकूमत को डॉ ली वेलिआंग की गुस्ताखी कतई पसंद नहीं आयी, जिसकी वजह से न बल्कि उन्हें फटकार लगायी गयी बल्कि उनके ऊपर अफवाह फैलाने का भी आरोप लगा। डॉ ली वेलिआंग अकेले नहीं थे जिन्हें चीन की सत्तावादी हुकूमत ने अपना शिकार बनाया, बल्कि कुछ ऎसे पत्रकार जिन्होंने कोरोना को लेकर चीन की ढिलाई पूर्ण रवैये को विश्व के सामने रखा उन्हें भी चीन ने खामोश कर दिया। जिसमें से एक पत्रकार ली जे हुए हैं। 

https://edition.cnn.com/2020/02/06/asia/china-li-wenliang-whistleblower-death-timeline-intl-hnk/index.html

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में 15 मार्च 2020 को छपे एक लेख में इस बात का भी खुलासा किया गया है की चीनी अरबपति रेन ज़हिकीअंग जो स्वयं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं अचानक चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग पर कोरोना से ढंग से न निपट पाने को लेकर तीखी टिप्पणी करने के कारण अचानक लापता हो गए। चीन से निकली ये सारी खबरें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग के असंवेदशील, असहिष्णु रवैये का जीता जगता प्रतिबिंब है।

https://www.scmp.com/news/china/politics/article/3075256/chinese-tycoon-ren-zhiqiang-goes-missing-after-criticising

क्या चीनी हुकूमत की इस लापरवाही को माफ किया जा सकता है?

चीन में हालात मार्च 2020 के अंत तक काबू में नज़र आ रहे हैं। और धीरे-धीरे हालात सामान्य होते दिख रहे हैं। चीनी मीडिया यह दावा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा कि हालात को सामान्य करने का श्रेय और कोरोना के खिलाफ निर्णायक लड़ाई चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग के ही बदौलत जीती जा सकती है। खैर कुछ रिपोर्ट्स यह भी दावा कर रहीं हैं कि चीन से आये मौत के आंकड़े पूर्ण रूप से सही नहीं ठहराए जा सकते। असल में मरने वालों का आंकड़ा मौजूदा आंकड़ों से कई गुना ज़्यादा और भयावह हो सकता है जो शायद कभी किसी को पता भी न चले।

अतः यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संपूर्ण विश्व आज अनिश्चिताओं के दौर से गुज़र रहा है। जिसका खामियाज़ा न जाने कितनी मौतों और आर्थिक हानि के रूप में विश्व को झेलना पड़ेगा। जिस तरीके से दिन प्रतिदिन हालत भयावह होती जा रही है यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर चीनी हुक्मरानों पर इसकी जवाबदेही तय क्यों नहीं होनी चाहिए। यह सवाल न ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को पसंद आएंगे और न ही चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंग को लेकिन लोकतांत्रिक देशों में यह सवाल उठाये भी जायेंगे और उसका उत्तर भी तलाशा जायेगा।

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