अमेरिका का अफगानिस्तान से जाना भारत के लिए खतरे की घंटी

  • हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति बने जो बाइडेन आखिरकार वो फैसला ले ही लिया, जिसकी अमेरिकी जनता लंबे समय से मांग कर रही थी। अमेरिकी सरकार ने अफगानिस्तान में अपने सबसे बड़े सैन्य ठिकाने बगराम छावनी को खाली कर दिया है। 11 सितंबर के पहले अमेरिकी फौज पूरी तरह से काबुल के पास स्थित बगराम सैनिक छावनी को पूरी तरह से खाली कर देगी। बता दे कि 11 सितंबर को अमेरिका के ट्विन्स टॉवर पर हुए आतंकी हमले के 20 साल पूरे हो जाएंगे। 11 सितंबर 2001 को ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में आतंकी संगठन के लड़ाकों ने कई हवाई जहाजों को अगवा किया और उनमें से दो जहाजों को न्यूयार्क शहर में बने दो टॉवर पर टकरा दिया, जिसके बाद दोनों बहुमंजिला टॉवर पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। इस हादसे में कई हजार अमेरिकी नागरिक मारे गए थे जिसके बाद से अमेरिका सहित पूरी पश्चिमी दुनिया में ओसामा बिन लादेन को सजा देने की होड़ शुरू हो गई थी। इसी क्रम में अमेरिका ने अपने सहयोगी यूरोपीय देशों के साथ मिलकर अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई शुरू की थी। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के पास बनी बगराम सैन्य छावनी से इसकी शुरूआत हुई थी।

क्यों खास थी बगराम सैन्य छावनी-

बगराम सैन्य छावनी अमेरिकी इतिहास में अमेरिका के बाहर सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना था। करीब 5500 एकड़ में बनाए इस सैन्य ठिकाने को बनाए जाते वक्त करीब 370 करोड़ रूपये खर्च किए थे। इन 20 साल में अमेरिका ने बगराम सैन्य ठिकाने पर 2.26 ट्रिलियन डॉलर याने 2.26 लाख करो़ड़ रूपये खर्च किए थे। बता दें कि भारत की अर्थव्यवस्था ही कुल 2.85 ट्रिलियन डॉलर है और भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। खुद अमेरिकी अर्थव्यवस्था 21 ट्रिलियन डॉलर की है। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिकी बगराम सैन्य ठिकाने पर कितना खर्च कर रहा था। एक समय मेें तो बगराम सैन्य ठिकाने पर 1 लाख फौजी तैनात थे। बगराम सैन्य छावनी के हवाई अड्डे पर रोजाना करीब 600 फ्लाइट्स आती-जाती थी। इस सैन्य ठिकाने पर अमेरिका के अलावा दूसरे यूरोपीय देशों के भी सेना तैनात थी।

आतंकियों को पहाड़ों पर जाने को मजबूर कर दिया था-

बगराम सैन्य छावनी के चलते ही आतंकियों को काबुल के उत्तर में स्थित पहाड़ी इलाकों में छुपना पड़ा था। इसी सैन्य ठिकाने पर ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए पूरी योजना का अंजाम दिया गया था। बगराम सैन्य ठिकाने के चलते ही आतंकी अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से अपना कब्जा छोड़ने को मजबूर हुए थे। यही से अमेरिकी के नेतृत्व में नाटो संगठन की संयुक्त फौज अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में आतंकियों के ठिकानों पर लगातार बमबारी करने में सफल रही, जिसके चलते बड़ी संख्या में आतंकी मारे गए और तालिबान की कमर टूट गई।

बगराम सैन्य ठिकाने के वीरान होने के मायने-

बगराम सैन्य छावनी के वीरान होने की प्रक्रिया 120 दिन याने 4 महिने पूरी होने का लक्ष्य रखा गया था। जिसे समय सीमा में पूरा किया गया है। 4 जुलाई याने अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के दिन आखिरी अमेरिकी फौजी दस्ते ने बगराम सैन्य ठिकाने को छोड़ा। अब नाटो की संयुक्त फौज ने बगराम सैन्य ठिकाने को अफगान फौज एवं अफगान पुलिस को सौंप दिया है। लेकिन बगराम से अमेरिकी फौज के हटने के प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही तालिबान एक बार फिर अफगानिस्तान में सक्रिय होने लगा है। हालात इतने खराब हो चुके है कि अफगानिस्तान के अधिकांश जिलों में अब तालिबान का प्रभाव बढ़ने लगा है। तालिबान ने अमेरिकी फौज के जाने के साथ ही अपने प्रोपोगंडा विडियो जारी करने शुरू कर दिए है, जिसमें अफगानिस्तान को गैर-मुस्लिम गोरों से मुक्त होने की खुशी जताई जा रही है, साथ ही अफगानिस्तान में एक बार फिर इस्लामिक तौर तरीके वाला कायदा-कानून लागू करने की घोषणा की है।

काबुल छोड़ रहे स्थायी निवासी-

अमेरिकी फौज के बगराम सैन्य ठिकाने को छोड़ने के साथ ही राजधानी काबुल सहित आस-पास के इलाकों के लोगों में दहशत का माहौल है। लोग हजारों की संख्या में अपनी बीबी-बच्चियों के साथ अपने घर छोड़कर भाग रहे है। क्योंकि तालिबान के फिर से शासन में आने पर सबसे ज्यादा जुल्म महिलाओं और बच्चियों पर होता है। तालिबान लड़कियों को पढ़ने की इजाजत नहीं देता। महिलाओं को अपने घर से निकलने की इजाजत नहीं होती। यदि किसी महिला को अपने घर से बाहर निकलना हो, तो उसे अपने पति, भाई या पिता के साथ होना जरूरी होता है। घर से बाहर निकलने पर महिलाओं को तालिबानी बुरका याने जिसमें महिलाओं के शरीर का कोई भी हिस्सा ना दिखे, पहनना होता है। बुरके का कपड़ा हल्के नीले रंग का होता है, और इतना मोटा होना चाहिए कि उससे महिला का शरीर ना दिखे। महिलाओं को अपना चेहरा भी पूरी तरह से छिपाना होता है। ऐसे हालात में काबुल और आस-पास के लोग सुरक्षित इलाकों के ओर पलायन करने लगे है। काबुल के पासपोर्ट दफ्तर में पिछले कई दिनों से सैंकड़ों की संख्या में लोग जमा हो रहे है। सभी पासपोर्ट बनाकर किसी सुरक्षित देश में जाने की जुगत में हैं।

अफगानिस्तान के बाद अब भारत पर होगी तालिबान की नजर-

अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब तालिबान अपनी स्थिती मजबूत कर रहा है। बेशक तालिबान को पाकिस्तानी हुकूमत और पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का साथ है। ऐसे में नापाक पाक अब तालिबान को भारत के खिलाफ उपयोग में लाने की कोशिश करेगा। याद रहे कि ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी फौज ने पाकिस्तान के एक छोटे शहर में पकड़ा था, जहां पर पाक सैन्य अकादमी स्थित है। अमेरिकी फौज के जाने के बाद अब तालिबान के निशाने पर सभी गैर-मुस्लिम लोग होंगे, साथ ही अब तालिबान एक बार फिर अपनी ताकत जुटाने की कोशिश कर रहा है, जिससे वह पूरी दुनिया में सिर्फ इस्लाम के अपने मकसद को पूरा कर सके।

अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते वर्चस्व से भारत को खासा नुकसान होगा, क्योंकि अफगानिस्तान में हो रहे तमाम विकास कार्य भारत सरकार के सहयोग से ही हो रहे है। गौरतलब है कि अफगान संसद भवन का निर्माण भी भारत सरकार के सहयोग से हुआ है। अफगानिस्तान में पिछले 20 साल में बने हाइवे, अस्पताल, स्कूल सहित तमाम विकास कार्य भारत सरकार ने करवाएं हैं।

इसके अलावा पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के साथ लड़ाई में अफगानिस्तान हमेशा से भारत के साथ खड़ा हुआ है। अफगानिस्तान से मिल रहे इस समर्थन के चलते ही पाकिस्तान खुद को दो पाटों के बीच फंसा महसूस कर रहा था, लेकिन अब तालिबान के बढ़ते प्रभाव के चलते अफगानिस्तान पर भारत की पकड़ कमजोर होने का खतरा है, जिसका सीधा असर पाकिस्तान पर होगा, जो तालिबान के चलते आतंकवाद को पोषित करने के अपने इरादों में और मजबूत होगा।

(लेखक पत्रकार के तौर पर लंबे समय से विदेश मंत्रालय, वैश्विक राजनायिक मामलों को कवर कर रहे हैं)

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