कर्नाटक में भाजपा को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश न करें काँग्रेस और उनके समर्थक

कांग्रेस अपने दम पर नहीं आ सकती, यह तय है। पिछला द्वार जब खुलता है, तो क्या-क्या खेल होते हैं और उनके दुष्परिणाम जनता को किस हद तक भुगतने पड़ते हैं, यह सभी जानते हैं। लेकिन राजनीति में शुचिता और स्वच्छता राग अलापने वाले उसकी इच्छा सिर्फ एक पक्ष से रखते हैं अर्थात भाजपा से।

बार-बार दुराग्रह होता है – आप तो चाल, चरित्र की बात करते हैं। फिर क्या?

भइया जी, चाल, चरित्र, की दुहाई जब आप देते हैं, तो सामने उपस्थित दुष्कर्मों के पर्वत को भी तो देखें। सिर्फ एक दल क्या राजनीति में भजन करने के लिए है और बाक़ी के लिए ‘इश्क़ और सियासत में सब कुछ जायज़ है’?

आज गोआ, मणिपुर, मेघालय आदि के उदाहरण दिए जा रहे हैं। लेकिन इनमें से कोई भी यह समझने को तैयार नहीं है कि कर्नाटक गोआ, मणिपुर या मेघालय नहीं है। यहां मामला दूसरा है।

इसकी तुलना आप झारखंड में निर्दलीय को सीएम बनवाने और यूपी के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी के दलबदल करा कर आधी रात में अल्पमत कांग्रेसी सरकार बनवा देने के हथकंडे से तो कर सकते हैं, लेकिन ऐसा अन्य उदाहरण संभव नहीं है।

एक उदाहरण और है – हरियाणा में भजनलाल का सम्पूर्ण मंत्रिमंडल सहित पार्टी बदल। क्या भारतीय राजनीति में ऐसा कोई अन्य उदाहरण मौजूद है? अर्थात कांग्रेसी राज्यपालों ने जैसे नज़ारे इस देश के सामने प्रकट किए हैं, वैसे कोई अन्य पार्टी गंगाजली उठा कर शपथ ले ले, तब भी प्रस्तुत नहीं कर सकती।

ठीक इसीलिए जब अल्पबुद्धि कांग्रेसी नेता अथवा स्वयं को स्वतंत्र दर्शाने के अभिलाषी चाटुकार दरबारी जर्नलिस्ट ऊंटपटांग कुतर्क लेकर उपस्थित होते हैं, तो बस हंसी आती है। वह भी वक्र। इन चाटुकारों ने जैसे इतिहास पढ़ा ही नहीं।

कुछ घटनाएं याद आती हैं, सुनें। उससे पहले ऐसे राजदीपों, बरखाओं, शोभाओं से मैं यह अवश्य कहना चाहता हूं कि अपने हाथ को देखें। उसमें पकड़ा कलम कांपता है क्या? और आपका मस्तिष्क पटल। उस पर कोई बल पड़ता है क्या? नहीं, तो अपने बारे में सोचो, बंधु।

कोंग्रेस ने अतीत में जो पाप किए, उनका फल कौन भुगतेगा? आपने लगातार कटु आलोचनाओं के बावजूद जो अनोखी परम्पराएं डालीं, उनका परिणाम कौन झेलेगा? आप ही न? आपके पूर्वजों ने जो पाप किए हैं, वे आपको भोगने हैं। तो यह बिलबिलाहट क्यों? कांग्रेसी राजनेता और तथाकथित स्वतंत्र पत्रकार बारहा आंसू बहाते हैं। छाती पीटते हैं कि बीजेपी की तो दादागिरी है। मेघालय, मणिपुर और गोआ में जबरदस्ती सरकार बना ली, लेकिन हमारी नहीं बनने देते।

इन बुजुर्गवार जर्नलिस्ट को कुछ इंजेक्शन लेने चाहिए। याददाश्त के और राहुल गांधी को सामने बैठा कर मोतीलाल वोरा से उनकी दादी के किस्से सुनने चाहिए। जानना चाहिए कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में क्या-क्या दांवपेच आजमाए थे।

समूची भजन मंडली के दलबदल का जिक्र कतई नहीं करूंगा। वह तो सभी को याद है।

एक किस्सा 1982 का है। हरियाणा में चुनाव हुए। कांग्रेस मरणासन्न अवस्था में थी और ऐसी दशा में उसका नेतृत्व भजनलाल के हाथ में था। उनके मुकाबले में लोकदल ने भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था।कांग्रेस को 35 सीट और लोकदल-भाजपा गठबंधन को 37 सीट ( 31 लोकदल और 6 भाजपा) मिलीं। चौधरी देवीलाल ने 6 निर्दलीय, 3 कांग्रेस (जे) और जनता दल के एक विधायक का समर्थन जुटा लिया था और अपने विधायकों को लेकर परवाणू के शिवालिक होटल में जा छिपे थे।

अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल देवीलाल के पक्के दोस्त थे। उनके सैकड़ों समर्थक निहंग हाथों में नंगी तलवारें लिए होटल के बाहर पहरा दे रहे थे।

तब हरियाणा के राज्यपाल थे महाराष्ट्र के वृद्ध दलित नेता गणपतराव देवजी तापसे। तापसे ने देवीलाल से कहा कि ‘आप अपने विधायकों की परेड कराएं। मैं प्रत्येक विधायक से अकेले में बात करूंगा।’

देवीलाल अपने विधायकों को बस में सवार करा राजभवन पहुंच गए। सभी विधायक राजभवन के हॉल में बैठा दिए गए। सभी दो घंटे तक इंतज़ार करते रहे, पर गवर्नर बाहर नहीं आए। दरअसल अंदर कुछ और ही खेल चल रहा था।

राज्यपाल के पास भजनलाल बैठे थे। फिर तापसे ने एक-एक कर विधायकों से मिलना शुरू किया और 11 दलित विधायकों से कांग्रेस के समर्थन में समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर करवा लेने में सफल हुए। ठीक इसके बाद भीतर के एक कमरे में भजनलाल को पद और गोपनीयता की शपथ दिला दी गई।

उन्हें सदन में 15 दिन में बहुमत सिद्ध करने का समय दे दिया गया।

शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री बन भजनलाल राजभवन के पिछले दरवाजे से निकल गए। बाहर हॉल में बैठे देवीलाल को जब यह पता लगा, तो बवाल होना ही था। देवीलाल और उनके समर्थक विधायकों ने परम पूज्य राज्यपाल का कॉलर पकड़ लिया। लोग कहते हैं कि देवीलाल ने बुजुर्गियत का ख़याल करते हुए सिर्फ एक थप्पड़ उस महान थोबड़े पर जड़ा था। महामहिम को उनके सुरक्षाकर्मियों ने बमुश्किल बचाया। इस घटनाक्रम में विधायकों की ऐसी खरीद-फ़रोख़्त हुई कि भारतीय राजनीति में नए रिकॉर्ड बने।

एक विधायक हीरानंद आर्य ने एक दिन में 6 बार पार्टी बदली और हर बार राज्यपाल को पार्टी बदलने की चिट्ठी भी बाकायदा लिखी। अर्थात देवीलाल सारा बहुमत लिए ताकते रह गए और भजनलाल मुख्यमंत्री बना दिए गए।

ठीक ऐसे ही किस्से झारखंड में निर्दलीय की सरकार बनवा देने और उत्तर प्रदेश में रोमेश भंडारी द्वारा गहन रात्रि में नियमविरुद्ध शपथ दिला देने के भी हैं। यह सब पढ़ कर आपको एहसास हो गया होगा कि कांग्रेस ने अपने अतीत में जो बोया है, अब वह उसी की लहलहाती फसल काट रही है।

उसे ऐसा करते देख जिन ज़रख़रीद ग़ुलामों को गहन पीड़ा होती है, दरअसल वे उससे भी ज्यादा धिक्कार के पात्र हैं।

निश्चय ही आज की भाजपा कांग्रेस का प्रतिरूप दिखती है। उसने कांग्रेस के सारे दांव-पेंच, सारे हथकंडे, सारा कमीनापन, सारी नीचता सीख ली है। व्यंग्यकार शरद जोशी के शब्दों में वह स्वयं कांग्रेस सदृश हो गई है, लेकिन इसमें बुराई क्या है? राजनीति में भजन करने के लिए कोई नहीं है। जब आप खुद येन-केन-प्रकारेण सत्ता हासिल करना परम लक्ष्य मानते हैं, तो अन्यान्य को भी वैसा मानने का पूरा हक़ है।

(लेखक अज्ञात रहना चाहते हैं, इसलिए लेख  ‘MyVoice Staff’के नाम से छपा है)

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