जैसा ज्ञान, वैसा भगवान

Hindu man praying

शायद जो मैं लिखने जा रहा हु, उससे कुछ लोग सहमत ना हो। एक बात अचानक से मेेरे मन में आई और वह यह कि “जैसा ज्ञान वैसा भगवान”। यह बात शायद सत्य भी हो। ज्ञान के बिना तो मनुश्य-मनुश्य कहलाने के लायक ही नही रहेगा। ज्ञान कैसा भी हो, है तो ज्ञान ही। किसी को विज्ञान का ज्ञान, किसी को चिकित्सा का ज्ञान, किसी को शास्त्रो का ज्ञान तथा किसी को जीवन का ज्ञान।

मेरे हिसाब से ज्ञान की कोई परिभाषा कोई पत्थर की लकीर नही होनी चाहिए। बड़े से बड़ा ज्ञान भी छोटा और छोटे से  छोटा ज्ञान भी बहुत बड़ा।…. अब बात आती है कि ज्ञान और ईश्वर के बीच का संबंध।

मेरे हिसाब से, जैसा मेरा ज्ञान तैसा मेरा भगवान। एक बात तो मैं भी यह मानता हूं जो हमारी संस्कृति में कही गयी है,,,कि ईश्वर को पाने के भी तीन उपाय है
क) भक्ति मार्ग
ख) ज्ञानता का मार्ग
ग) तपस्या का मार्ग

तीसरा मार्ग शायद हमेशा ही कठोर होता हो मगर इसके मुकाबले शुरूआती दोनो उपाय सरल और सहज लगते है। मगर अज्ञानता के अंधकार और दुनिया के मोह-माया के बंधन से बच पाना इतना भी आसान नही की हर व्यक्ति परब्रह्म को जान सके। महाभारत में भी यही बात बताई गई थी कि आपका कर्म ही आपका धर्म है, अपने कर्म करते जाओ और मेरे एक-एक अंश के करीब आते जाओ।

किसी वैज्ञानिक के लिए उसका विज्ञान ही उसका भगवान है और उसकी प्रयोगशाला ही उसका मंदिर-अर्थात(सरस्वती), किसी नर्तक के लिए उसका नृत्य के प्रति निरंतर अभयास ही उसकी पूजा है-अर्थात (कृष्ण), और किसी सैनिक का युद्धभूमि में अपने प्राण गंवाना उसके लिए मोक्ष के रास्ते खोल देता है-अर्थात (शिव)। अपने कर्तव्य के प्रति प्रेम-भाव से कार्य करने वाला व्यक्ति अंत मे यही तो चाहता है कि उसका ईश्वर उससे खुश रहे।

जिस प्रकार मनुष्य संसार का सारा ज्ञान अपने छोटे से मस्तिष्क में नही समा सकता ठीक उसी प्रकार ईश्वर को परिभाषित नही किया जा सकता। जिस प्रकार ध्वनि तरंगे नंगी आंखों से नही देखी जा सकती शायद उसी प्रकार हमारे परम ज्ञान को भी देखा या समझा न जा सकता हो। अपनी उत्पत्ति से ही मनुष्य ने अपने ईश्वर को जानने की कोशिश की है, भले  ही अभी तक सफल न हो पाया हो पर शायद अपने ज्ञान के प्रति निरंतर प्रयासों से एक दिन वह अपने इस सृष्टि के निर्माता को समझ पाए।

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