केन्द्र की अकर्मण्यता और बंगाल चुनाव परिणाम

बंगाल चुनाव परिणाम राष्ट्रवादियों के लिए शुभ नहीं रहा, परन्तु चौकाने वाला कदापि नहीं। जिस देश में दारू के एक बोतल और एक मुर्गे पर लोगो की राजनीतिक आस्था बदल जाती है वहां free and fair election की कामना कैसे कर सकते हैं? जैसी सम्भावना थी, मुस्लिम वोट polarized हुए, विदेशी षडयंत्र सफल हुआ, सामान्य वोटरों पर TMC के गुंडों का भय एवं आतंक रहा, सरकारी तंत्र में बैठे TMC समर्थक सक्रिय रहे और जनता अपनी सुरक्षा के लिए चिन्तित। 

डरी सहमा जनमानस और मूकदर्शक केन्द्र 

Esplanade की गलियां बंगाल में विद्यमान गुंडों के network, पुलिस की भूमिका एवं देशद्रोही शक्तियों के प्रभाव की कहानी स्वतः कह देती है। सामान्य जनता मात्र अपने दैनिक भात-माछ पर केन्द्रित रहती है। कल क्या होगा उससे लापरवाह है। उन्हें इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है कि कल न तो उनकी बाड़ी रहेगी न ही दलान। न ही बचेगीं “चोटी” न ही “सम्मन”। 

परन्तु मेरे विचार से सबसे बड़ा दोष केन्द्र का है जो सैकड़ों हिन्दुओं और भाजपा के कार्यकर्ताओं के हत्याओं को एक मूकदर्शक की तरह देखती रही। बड़ी-बड़ी बातें, “हम देख लेगें”, “जनता हत्यारों को सबक सिखा देगी”, इत्यादि का नारा और खोखले आश्वासन देती रही। जब आप के पास देश की सारी सत्ता है, सारे तंत्र है तो आप कुछ न कर सकें तो फिर वो दबी-कुचली जनता क्या करेगी? यह वही जनता है जो “अशोक कुमार नाइट” को अपने आंखों से देख चुकी हैं और देखती रहीं अपराधियों को “छुट्टा” घूमते। याद रहे “रविन्द्र सरोबर” और यैसी घटनाओं के खून के छींटे आप को अभी भी देखने को मिल जायेंगे और सुनायी देगी नरपिशाचो के अट्टहास। आप को अपनी छवि की चिंता है, उन दबी-कुचली जनता की नहीं। अब कौन सा केन्द्रिय सुरक्षा बल उनकी रक्षा को आयेगी?

खेला होवे 

सामान्य जनता को फांसी पर लटकते हुए देखने का आपको कोई अधिकार नहीं है। माने-न-माने अभी तो “खेला होवे” और पुनः एक बार हजारों अभिमन्यु के रक्त से बंगाल की श्यामल धरा रक्तरंजित हो जायेगी। और इसकी शुरुआत हो चुकी है। केरल भी एक ऐसा ही प्रदेश है।  

श्रद्धा सुमन की राजनीति

अनेकों भष्ट्राचार के आरोपों से घिरी दोनों प्रदेशों की सरकारें अपने agenda को चला रही हैं। इधर केन्द्र अपने कार्यकर्ताओं के लाशों पर कुछ फूल और नोट चढ़ा कर अपने दायित्व से मुक्त हो रही है। राज्य ही नहीं सारा देश इस परिणाम से आहत है और आहत है देशभक्त मानसिकता। हम सब बार-बार देखा चूंके है कि युद्ध, युद्ध होता है। कुरुक्षेत्र में सिद्धांत और नैतिकता का पाठ पढ़ाने से विजय प्राप्त नहीं होती। भ्रष्टाचार मुक्त एवं प्रगतिशील कार्यपद्धति का अनुकरण करके भी आपको राजनीतिक विरोधियों और international media से अनेक अपयश के अलंकार प्राप्त है।

अतः बंगाल के लोगों और संस्कृति की रक्षा के लिए केंद्र सरकार को भविष्य में कुछ कठोर कदम उठाने होंगे।  

वन्दे मातरम्।

Dr Bipin B Verma: The author is a retired professor of NIT Rourkela. He follows a nationalistic approach in life. His area of interest is “sustainable rural development”. Email: bipinbverma@gmail.com
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