अंधभक्त- समर्थको का उपनाम

हिन्दू धर्म की एक खासियत है। हम हिन्दू पत्थर, नदी, जानवर, इंसान सब में अपना भगवान् ढूंढ लेते है। जिसकी भी पूजा करते है पूरी निष्ठां के साथ करते है। पर इस निष्ठा की आड़ में किसी दूसरे कि मान्यता का मजाक नही बनाते है। अगर आप कश्मीर से कन्याकुमारी तक नज़र डाले तो पायंगे कश्मीर स्थित अमरनाथ जी (शिव जी) से ले कर तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम (राम जी) तक कई देवताओ के अपने अपने स्थान पर अतिविशेष महत्व है। महाराष्ट्र में अगर गणेश जी महाराज की अनन्य भक्ति है तो बंगाल में माँ दुर्गा का विशेष स्थान है। ये विशेष महत्व क्यों है? क्या ईश्वर ने हम से ऐसा कहा है की अगर उनकी भक्ति नहीं की गयी तो वो हमें नुकसान पहुचायेंगे। ऐसा नहीं है बल्कि आस्था विश्वास से जुडी है। और विश्वास अनुभवों के आधार पर बनता है। अनुभव अपेक्षित परिणामो की प्राप्ति से प्रगाढ़ होता है।

नरेंद्र दामोदर दास मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब उनके बारे में यदा कदा अखबारों में या टेलीविज़न पर सुन या पढ़ लिया करता था। प्रारंभिक कुछ वर्षों के मुख्यमंत्री काल में ही उन्होंने एक अच्छे प्रशासक की छवि अर्जित कर ली थी। गुजरात कई मामलों में आत्मनिर्भर हो चला था। फिर समय का चक्र घुमा और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। एक प्रधानमंत्री के रूप में सम्पूर्ण देश ने उनके कार्य पद्धति का अनुभव किया। देश का एक बहुत बड़ा वर्ग उनका प्रशंसक बनता चला गया। मोदी जी की मजबूती ने विपक्ष का मनोबल बहुत बुरी तरह से तोडा। मोदी की लोकप्रियता ने वंशवादी राजनीती के वंशजो के सपनो को रौंद दिया।

आज नित्य नए मुद्दे सोशल मीडिया पर उठाये या यूँ कहे गढे जाते है। उनका मकसद सिर्फ एक व्यक्ति को निशाने पर लेना होता है और वो है नरेंद्र मोदी। सोशल मीडिया पर तर्क वितर्क भी बहुत होते है। मोदी समर्थको को एक टैग तत्काल दे दिया जाता है की वो “अंधभक्त” हैं। किसी मोदी विरोधी के पास एक या दो बार से ज्यादा देने को तर्क नहीं होता। चाहे मुद्दा कोई भी हो। जब कुछ समझाने को नहीं रह जाता तो बोल दिया जाता है तुम अंधभक्त हो। आम जनता की क्या कहे बड़े बड़े पत्रकार खुलेआम मोदी विरोधी अभियान चला रहे है। बहुत से चेहरे तो अब खुल कर सामने आ चुके है। लोकतंत्र में चुनी सरकार से सवाल पूछना कभी गलत नहीं होता। वो हर नागरिक का हक़ है परन्तु सवाल के नाम पर गालिया देना या प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराने का प्रयास करना बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

अभी कुछ दिन पहले देश के पूर्व गृह मंत्री ने देशवासियो को सड़क पर उतर कर गृहयुद्ध करने ले लिए उसकाने का प्रयास किया। एक वर्तमान मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ अपने संवाद को बहुत निम्न रूप में प्रस्तुत किया। वो शायद यह भूल गए आज का प्रधानमंत्री कभी गुजरात का मुख्यमंत्री था। किस तरह से केंद्र की UPA सरकार उनको घेरने और बेइज़्ज़त करने का प्रयास करती थी। पर उन्होंने हमेशा अपनी तैयारी मजबूत रखी। कभी ओछी राजनीती नहीं की।

आज जब एक व्यवस्थित तरीके से राजनीति, मीडिया, वामपंथी विचारधारा के बुद्धिजीवी एकत्रित हो कर मोदी जी पर निजी हमले कर रहे है तो मोदी समर्थक क्यों पीछे रहे। विरोधी भक्त बुलाये या अंधभक्त इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। आप तर्कों की बात करे। आकड़ो की बात करें। एक सार्थक बहस होगी। सरकार तो जानता की है। मोदी सरकार संभवतः देश की पहली ऐसी सरकार है जो सार्थक सुझावों को तत्काल अमल में लाती है। अपने बजट के प्रावधानों को भी तत्काल बदल देती है। पिछले ६ वर्षो में न जाने कितने ऐसे नागरिको को राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए जिन्हे कोई जानता भी नहीं था। मोदी जी की लोकप्रियता का एक बहुत बड़ा कारण यह भी है की लोग उनसे और वो लोगो से एक बेहतरीन संपर्क स्थापित कर लेते है।

विपक्षी दल और उनके समर्थको को कार्यकुशलता का मुकाबला कार्यकुशलता के साथ ही देना चाहिए। राष्ट्रिय स्तर पर किसी भी विपक्षी नेता की कोई विश्वसनीयता नहीं है। जो प्रादेशिक स्तर पर सफल है वो राष्ट्रिय स्तर पर असरहीन है। विपक्ष को अपनी कमजोरियों पर काम करना चाहिए। मोदी समर्थको को गालिया दे कर कुछ हासिल नहीं होगा। क्यूंकि चुनाव जमीन पर लड़े जाते है ट्विटर या फेसबुक पर नहीं।

खुद को स्थापित करो भक्त अपने आप आ जायेंगे।

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