हिंदी बेल्ट के लेखकों, इस महान प्रतिभा को जानो

“तना देहमु, तना गेहमु,
तना कालमु तना धनम्‌भु तना विद्‍या
जगज्जनुलके विनियोगिंचिना
घनुडी वीरेशलिंगकवि जनुलारा!”

अर्थात् “अपना तन, मन, धन, निवास, समय और विद्या सब कुछ जनता के हित के लिए निछावर करने वाले महापुरुष हैं ‘वीरेशलिंगम्‌’।” जब व्यक्ति, मात्र व्यक्ति न रहते हुए व्यक्तित्व को प्राप्त करे, और अपने आचरणों के आदर्श से खुद को एक विचार बना ले तो वो कंदुकूरी वीरेशलिंगम हो जाता है।

कंदुकूरी वीरेशलिंगम

तमिल साहित्य का “गद्य ब्रह्म” जिसने अपने साहित्य के सौंदर्य से दसों दिशाओं को प्रकाशमान किया। समाज की कुरीतियों के खात्मे का प्रण लिया, महिला सशक्तिकरण के कांटों भरे रास्तों को चुना और जो प्रण लिया, वो किया। जिस समाज जातिवाद का अजगर समाज को अपने पाश में बांध चुका था, जाति के बंधनों को काटने सबसे पहले खड़े हुए कंदुकूरी वीरेशलिंगम, एक ब्राह्मण परिवार में अप्रैल की 16 तारीख को पैदा हुए थे।

उस दिन आधुनिक युग का अरुणोदय हुआ था, स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के लिए इन्हें आंध्र से बाहर के लोग जानते हैं, लेकिन ये उससे बहुत अधिक थे। कंदुकूरी वीरेशलिंगम आंध्र के सामाजिक जीवन के कायाकल्प शिल्पी और तेलुगु साहित्य के पुनर्जागरण युग के प्रमुख साहित्यकार थे।

जिस प्रकार भारतेन्दु को हिंदी साहित्य में एक विशेष दर्जा हासिल है, वही स्थान कंदुकूरी वीरेशलिंगम को तेलुगु साहित्य की अद्वितीय सेवा करने के लिए प्राप्त है। कंदुकूरी वीरेशलिंगम ने 11 दिसंबर 1881 को ‘प्रथम विधवा पुनर्विवाह’ समपन्न कराया इससे उनकी ख्याति चहुओर फैल गई थी। स्त्री शिक्षा के लिए उन्होंने 1874 में राजमंड्री और 1884 में इन्नीसपेटा में बालिका विद्यालय की स्थापना की। ये वो दौर था, जब शिक्षा व्यवस्था न के बराबर थी, ऐसे में महिलाओं की शिक्षा के लिए उनका संघर्ष सराहना योग्य है।

तेलुगु साहित्य के प्रथम उपन्यासकार, प्रथम नाटक के रचयिता एवं आधुनिक पत्रकारिता के प्रवर्तक के रूप में कंदुकूरी वीरेशलिंगम को जाना जाता है।

हिंदी के लेखकों और साहित्यकारों को लगातार वीरेशलिंगम जैसी प्रतिभाओं को पढ़ना चाहिए। उनके बारे में लिखना चाहिए। ये हमारे देश के आपसी सौहार्द के लिए बहुत जरुरी है। हमें हर भाषा, संप्रदाय और क्षेत्र विशेष की महान विभूतियों के विषय में अपनी पीढ़ियों को जानकारी देनी होगी ताकि वो जान, समझ सकें कि साहित्य मात्र हिंदी और उर्दू में ही नहीं होता। अन्य भाषाओँ ने भी ऐसे सपूत जने जिन्होंने उन भाषाओं का मान बढ़ाया, लोगों को, समाज को और देश को रास्ता दिखाया, जिसपर लोग चले और आगे बढे।

आप जैसा न कोई था, न है। आप अमर रहेंगे “गद्य ब्रह्म”। एक महान समाज सुधारक, साहित्यकार एवं भाषासेवी व्यक्तित्व को नमन।

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