भारत का आत्मनिर्भर अभियान

'Aatmanirbhar Bharat' has become mantra for 'New India'

विश्व की राजनीति घरेलू राजनीति से बिल्कुल अलग है। आंतरिक राजनीतिक वार्षिक या किसी चुनाव के हार या जीत से तय की जाती है, परंतु वैश्विक राजनीतिक का अवलोकन हम एक वर्ष में नहीं कर सकते हैं। जहां विश्व की राजनीति की बुनियाद बदली या बदलने की पूरी संभावना है, वहीं भारत का वैश्विक पटल पर बढ़ता हुआ कद हमें गौरान्वित कर रही है। आज हम उस भारत की बात कर रहें हैं, जहां हम आत्मनिर्भर बनने की राह में बहुत आगे निकल चुके हैं।

विश्व में फैले कोरोना महामारी ने सभी देशों को प्रभावित्त किया है, लेकिन वहीं ऐसे में भी महामारी के दौरान चीन ने लद्दाख क्षेत्र में भारत के विरुद्ध नए सीमा विवाद की चिंगारी पैदा कर दी, वह अपने सैनिक ऑर आर्थिक शक्ति के मद में इतना चूर था कि भारत के जरूरत की ढेरों चीजें चीन द्वारा मुहैया होने वाली वस्तुओं को रोक लगा दी, ताकि भारत सीमा विवाद पर घुटने टेक देगा। वहीं भारत का सिद्धांत था कि राजनीतिक झगड़े के आड़े व्यापार नहीं आएंगे। लेकिन चीन ने भारत को महज आश्रित समझने की भूल कर दी। चीन के आक्रामक रवैये की चुनौती को भारत के प्रधामन्त्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर अभियान के तहत बखूबी सामना करने का प्रयास किया, जो काफी हद तक सफल भी साबित हुआ।

मोदी का आत्मनिर्भर अभियान का तात्पर्य दुनिया से बिल्कुल कटना नहीं या संबंध विच्छेद करना नहीं है, बल्कि अपने आप को इतना सशक्त करना है कि किसी भी परिस्थिति के लिए अपने आप को तैयार करना है। ऑर दुनिया के विकास की धारा के साथ अपने को जोड़ना है। इस आत्मनिर्भर अभियान के तहत भारत ने उत्तर–पूर्वी राज्यों को बांग्लादेश, म्यांमार ऑर भूटान से जोड़ने की कवायद भी शुरू कर दी है। ढाका से अगरतला के बीच मैत्री ऑर बंधन एक्स्प्रेस की लाइन खींची जा रही है। साल 2020 में कई द्विपक्षीय ऑर बहुपक्षीय बैठकों में भारत ने अपनी मजबूती से भागीदारी निभाई है। उन बैठकों में भारत का आत्मविश्वास पूरी दुनिया ने देखा है। दुनिया के कई देश इस बात को समझ चुके हैं कि भारत की शक्ति किसी देश के लिए मुसीबत नहीं बनेगी, क्योंकि भारत का नीति विस्तारवाद नहीं, बल्कि विकासवाद का है।

भारत के, चाहे अंदुरुनी मसले जो हों, परंतु वैश्विक पटल पर भारत का आत्मनिर्भर अभियान हो या बढ़ता आत्मविश्वास पूरे विश्व में उदाहरण के रूप में लिया जा रहा है। जिस तरह से इस वैश्विक महामारी को समझा या लड़ने के लिए प्रेरित किया गया, वह प्रशंसनीय है, ऑर यह सब तभी हो सकता है, जब देश का कमान मजबूत हाथों में हो।

ज्योति रंजन पाठक- औथर– ‘चंचला’ (उपन्यास )

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