तौल में “ग्राम संख्या को सम्मिलत ना करने” एवम् “छूट काटने” जैसी कुप्रथाओ के कारण से किसानो को दशकों से होता आ रहा नुकसान

मंडी के क्षेत्र में काफी रिसर्च करने के बाद, कई बिंदु ऐसे निकल के आये जिन कारण से किसानो को नुकसान उठाना पड़ता है। इस पूरे शोध कार्य को अपने लोगो ने उत्तर प्रदेश के आलू किसानो के सन्दर्भ से किया है।

  • किसान का जो माल मंडी में बिकने आता है वो वर्तमान में भी दशको पुरानी पध्दति के अनुसार ही संचालित होता है एवं पुरानी पध्दति के आधार पर ही बिकता है।
  • एक किसान आलू कि फसल की 100 बोरी मंडी में ले के जाता है तो “ग्राम संख्या को सम्मिलित ना करने” की प्रणाली या प्रथा के कारण उस किसान को 55kg से 65kg तक का फसल की कीमत का नुकसान होता है (मतलब की 50 ग्राम से ले के 950 ग्राम को छोड़ने की प्रणाली) ये रकम उसके मुनाफे के अंतर्गत आती है।
  • “छूट (कच्चा वजन – पक्का वजन) काटने की अनिमियत प्रथा” के कारण 2kg/bag से 4kg/bag तक छूट काट दी जाती है। इस कारण से किसान को 100 बोरी पर 255 से 465 kg तक का नुकसान उठाना पड़ता है। ये रकम भी किसान के मुनाफे के अंतर्गत आती है।
  • कहने का तात्पर्य उस किसान को 5 से 9 बोरी की कीमत प्राप्त ही नहीं होती।
  • किसी भी फसल उत्पादन में किसान का उस फसल की लागत एवम् ख़र्चे के सन्दर्भ में 20% से 50% तक मुनाफा होता है.
  • जब हम इसको लागत ,कोल्ड स्टोरेज किराया, ट्रांसपोर्ट भाड़ा आदि खर्चो को निकाल कर हिसाब निकलते है तब ये नुक्सान इन दोनों कटौती की कुप्रथाओ के कारण से काफी बड़ा निकल के आता है।

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