कृषि सुधार विधेयक, २०२० और किसानो की शंका


सच है कि वर्ष 1947 से लेकर 2013 तक हमारे देश के किसानो के लिये जो बड़ी बड़ी योजनायें बनायी गयी और बजट भी आवंटित किये गये  पर (यदि स्व श्री लाल बहादूर शास्त्री, स्व श्री पी वी नरसिम्हा व स्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकारो के अलावा) किसी भी सरकार ने गंभीरता से ना तो उन योजनावों का क्रियान्वयन किया और ना ही बजट मे आवंटित राशि का सदुपयोग किया। आप जानते हैं कि किसान हित की आड़ में कृषि बजट का अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचारी नेतावों, सरकारी अधिकारीयों व दलालो के खलित्ते में चला गया।

यूपीए-1 व यूपीए-2 के कांग्रेस शासन के दौरान भ्रष्टाचार की सूनामी आयी और पूरा देश उसमे गोते लगाने लगा।

वैसे अगर आप प्राथमिक स्तर के अध्यापको व किसानो के आय में वर्ष  1947 से लेकर 2013 तक हुई वृद्धि की एक छोटी सी तुलना करें तो आप पायेंगे की जहाँ एक ओर प्राथमिक अध्यापको की आय मे 180 गुना वृद्धि हुयी है वहीं दुसरी ओर हमारे अन्नदातावो की आय में मात्र 20 से 22% की वृद्धि हुई।

क्या इस सच्चायी से आपके मस्तिष्क में अतीतिव्र कंपन नहीं होता।

2014 के पश्चात देश के भाग्य का नया सूर्योदय हुआ और एक जिम्मेदार, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ सरकार ने देश की बागडोर सम्हाली, तब देश के अन्नदाताओं की स्थिति व आय पर विशेष ध्यान दिया गया और कई महत्वपूर्ण योजनाओं को कागज के पन्नो से उतारकर धरातल पर ला क्रियान्वयन किया गया।

अन्नदातावों की आय को दुगुना करने वाले लछ्य की प्राप्ति हेतु सरकार ने तिन कृषि सुधार विधेयक 2020 पास कराये जो अब कानून बन चुके हैं, जिसका पिछले 15 दिनो से लगातार विरोध किया जा रहा है खासकर पंजाब व हरियाणा के किसानो द्वारा!

हम सब जानते हैं कि भारतीय कृषि अब व्यावसायिक रूप धारण करती जा रही है। कृषि वस्तुओं के मूल्य, कृषि वस्तुओं का अंतर्देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, ग्रामीण क्षेत्र में नवीन संगठन, कृषि साख, बचत, विनियोग व कृषि-विपणन आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय हो गए हैं! ये जानना अती आवश्यक है, कि एक निश्चित भौतिक एवं आर्थिक परिस्थिति में कौन-सी फसलें उगानी चाहिए और प्रत्येक फसल के लिए कितना क्षेत्रफल निर्धारित करना चाहिए?

दिनांक 5 जून, 2020 को आए अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 14 सितंबर, 2020 को लोकसभा में प्रस्तुत किया था। लोकसभा ने 17 सितंबर, 2020 को पारित कर दिया था उसके पश्चात  राज्य सभा ने भी इन विधेयको को पारित कर दिया, जो निम्न प्रकार के हैं।

:- कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक, 2020

इस विधेयक कि धारा 3 4 के अनुसार, विधेयक, किसानों के अपने कृषि उपज को एपीएमसी एक्ट के तहत बनायी गयी “कृषि उपज बाजार समितियों” अर्थात कृषि मण्डीयो मे मण्डी शुल्क जमा कर बेचने के अधिकार को पूर्वरत रखते हुये ईन मण्डीयों के बाहर भी बिना कोई शुल्क दिये कृषि उपज को बेचने का अधिकार देता है ! विधेयक किसानों को ई-ट्रेडिंग मंच उपलब्ध कराएगा जिससे इलेक्ट्रोनिक माध्यम से निर्बाध व्यापार सुनिश्चित किया जा सके। मंडियों के अतिरिक्त व्यापार क्षेत्र में फॉर्मगेट, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, प्रसंस्करण यूनिटों पर भी व्यापार की स्वतंत्रता होगी।

धारा 6 के अनुसार ईस विधेयक में ये भी व्यवस्था है कि किसानों को अपने उत्पाद के लिए कोई उपकर नहीं देना होगा और उन्हें माल ढुलाई का खर्च भी वहन नहीं करना होगा। किसान खरीददार से सीधे जुड़ सकेंगे जिससे बिचौलियों को मिलने वाले लाभ के बजाए किसानों को उनके उत्पाद की पूरी कीमत मिल सके।

अध्याय 3 में वर्णित धारा 8 के अन्तर्गत किसान व व्यापारी को मध्य उत्पन्न हुये किसी विवाद के समाधान हेतु प्राविधानो की व्यवस्था की गयी है ! धारा 8(7) के अनुसार उप खण्डीय अधिकारी ( Sub-divisional Magistrate ) वो अधिकारी है जिनके प्राथमिक अधिकारिता होगी विवाद के सुनवाई करने की! धारा 8(8) के अनुसार  उप-खण्डीय अधिकारी (Sub-divisional Magistrate) के आदेश को  कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टर (जो कलेक्टर के द्वारा नामित हो) पास चुनौती दी जा सकती है!

:- कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020

अनुबंध कृषि के लिए:-

धारा 3(1) के अनुसार प्रत्येक किसान के साथ एक लिखित “करार” अर्थात Agreement होगा , करार के वक्त ही किसान फसल तैयार होने पर “किस किमत” पर बेचना है वो किमत तय कर लेंगे! 

ईस मूल्य निर्धारण की पूरी प्रक्रिया का उल्लेख करार मे लिखित रूप से होगा!

 धारा 3(3)  के अनुसार करार की अवधि एक फसल मौसम या पशु का एक प्रजनन चक्र होगा! यदि उत्पादन चक्र पाँच वर्ष की अवधि का है तो करार की अधिकतम अवधि पाँच वर्ष होगी!

किसानों को लाभ

1:- कृषकों का सीधा जुड़ाव व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से होगा।

2:-कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करने का अधिकार होगा जो बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन देगा। दाम बढ़ने पर किसानों को न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा!

3:- इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं होगा ।

4:-इससे किसानों की पहुँच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी। इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी। शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा मिलेगा।

5:- विवाद का स्थिती में समझौता (कंशीलीयेशन) बोर्ड के पास पहले विवाद जायेगा, यदि कंशीलीयेशन बोर्ड विफल हो जाता है तब उप-खण्डीय अधिकारी (Sub-divisional Magistrate) को सुनवाई का प्रथम अधिकार होगा! उप-खण्डीय अधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) के आदेश को कलेक्टर या कलेक्टर के द्वारा निर्देशित एडीशनल कलेक्टर के पास अपील दाखिल कर चूनौती दी जा सकती है, जिसका निपटारा 30 दिनो के अंदर किया जाना निश्चित किया गया है! 

6:- ईस विधेयक में कोई भी एसा प्रावधान नहीं है जिसके अंतर्गत किसानों की जमीन पर किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न हो!  जूर्माना वसूल करने की स्थिती मे भी किसान को उसके जमीन के मालिकाना हक से वंचित नहीं किया जा सकता! किसान अपनी जमीन का हमेशा मालिक बना रहेगा!


:- अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन अधिनियम) 2020 ।

अनिवार्य वस्तुएं अधिनियम :-कानून साल 1955 में ऐसे समय में बना था जब भारत खाद्य पदार्थों की भयंकर कमी से जूझ रहा था, इसलिए इस कानून का उद्देश्य इन वस्तुओं की जमाखोरी और कालाबाजारी को रोकना था ताकि उचित मूल्य पर सभी को खाने का सामान मुहैया कराया जा सके!

आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) अधिनियम विधेयक, 2020 के अनुसार सरकार ने  अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को धारा 3 (1) के दायरे अर्थात आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया गया है! अब सिर्फ अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में ही सरकार द्वारा इन वस्तुओं पर नियंत्रण किया जा सकेगा! सरकार का स्पष्ट मानना है कि अब भारत इन वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन करता है अत: ऐसे में इन पर नियंत्रण की जरूरत नहीं है!

इसके साथ ही सरकार का यह भी दावा है कि उत्‍पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आजादी से व्‍यापक स्‍तर पर उत्‍पादन करना संभव हो जाएगा, साथ ही कृषि क्षेत्र में निजी/प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सकेगा! इससे कोल्‍ड स्‍टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (सप्‍लाई चेन) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी!

किसानो की शंका व विरोध

1:- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अनाज की ख़रीद बंद हो जाएगा!

2:- कृषक कृषि उत्पाद यदि पंजीकृत बाजार समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर बेचेंगे तो मंडियां समाप्त हो जाएंगी!

3:- ई-नाम जैसे सरकारी ई-ट्रेडिंग पोर्टल का क्या होगा?

4:- अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएंगे!

5:-छोटे किसान संविदा खेती (कांट्रेक्ट फार्मिंग) कैसे कर पाएंगे? क्योंकि प्रायोजक उनसे परहेज कर सकते हैं।

6:-विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।

7:- अनिवार्य वस्तुए (संसोधन) विधेयक २०२० से कालाबाज़ारी व् महंगाई को बढ़ावा मिलेगा।

स्पष्टीकरण व् समाधान

1:-इस विधेयक मे कोई भी एसा प्रावधान नहीं हैं जिसके कारण MSP (एमएसपी) को हटाये जाने की संभावना दिखायी दे रही हो! सरकार का यह स्पष्ट कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पहले की तरह खरीद जारी रहेगी। किसान अपनी उपज एमएसपी पर बेच सकेंगे। एमएसपी की दरों में 2014-2020 के बीच उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की गई है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व  केंद्रिय कृषि मंत्री ने बारंबार कहा कि इन विधेयकों में MSP  व किसानों की सम्पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।

2:- किसी भी विधेयक के अंतर्गत कृषि उत्पाद बाजार समिती @ कृषि मण्डीयों को बंद करने का प्रावधान नहीं किया गया! विधेयक के द्वारा किसानो को कृषि मण्डीयों के बाहर भी एक विकल्प के रूप में कृषि उत्पादो को बेचने का मौका दिया जा रहा है! कृषि उत्पाद बाजार समितियों @ कृषि मंडियों का अस्तित्व कभी  समाप्त नहीं होंगी, वहां पूर्ववत व्यापार होता रहेगा।

3:- Contract Farming करार द्वारा कृषि:-ईन विधेयको में भी कांट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत किसानो के अधिकारों का कभी भी हनन नहीं होता! जमीन पर से उनका स्वामित्व किसी भी परिस्थिति में किसी और को  हस्तांतरित नही होता! समझौता (Contract Farming) में किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा। उन्हें अधिक से अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।

4:- अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अधिनियम 2020 के द्वारा अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा देने से किसी प्रकार के कालाबाजारी होने की संभावना नहीं है अपितु ईसको सिमित दायरे से बाहर निकाल देने पर किसानों की वो फसले जो बंपर पैदावार होने से नष्ट हो जाती थी अब उन्हें बचाकर उनकी आय में वृद्धि की जा सकेगी और उनको नुकसान से बचाया जा सकेगा! 

संशोधन की संभावना

1:- विवाद से संबंधित प्रावधानो से न्यायालय को बाहर करना थोड़ा विचारणीय है!
2:- कांट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े प्रावधानों को थोड़ा और स्पष्ट व सरल होना चाहिये!
3:- एम एस पी (MSP):- WTO के अनुबंध की मर्यादा का पालन करते हुए किसानो के कृषि उपज को निर्धारित MSP से नीचे स्तर पर खरीदना अपराध घोषित किया जाना चाहिए और कड़ी कार्यवाही का प्रावधान लाया जाना चाहिए!

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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