किसान होना एक व्यवसाय है, समाजसेवा नहीं

हमारे देश में जिसे भगवान का दर्जा दे दो वही सिर पर से मूतने लगता है, पहले डॉक्टर, न्यायाधीश को भगवान/माईबाप बोलते थे, आज के समय में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार इन्ही क्षेत्रों में है. #किसान अन्नदाता है इसलिए उसका धन्यवाद करना चाहिए. ठीक बात है, मान ली, बिना हील हुज्जत के, लेकिन जिसने कपड़े बनाए उसका धन्यवाद क्यों नहीं करना चाहिए, नंगे घूमोगे ठण्ड गर्मी बरसात में?

जिसने बिजली बनाई, सडकें बनाईं, पेन, पेन्सिल कागज बनाए उनका क्यों नहीं? जिसने ट्रेक्टर बनाये, ट्रक बनाये, कारें बनायीं, मोबाइल बनाया, कम्यूटर बनाया हवाई जहाज बनाये उनका क्यों नहीं? जो पढाकर किसी लायक बनाता है उस शिक्षक का क्यों नहीं?

जो इलाज करता है उस डॉक्टर का क्यों नहीं? जो बाल काटता है उस नाइ का क्यों नहीं? जो सफ़ाई कर्मचारी हैं उनका क्यों नहीं? जो सरहद पे तुम्हारी सुरक्षा करता है उस सैनिक का क्यों नहीं?

इन सब के बिना जीवन चल जायेगा? क्या सिर्फ़ पेट भरने को जीवन कहते हो, पशु हो? यदि ऐसा ही होता तो किसान अपना उत्पाद बेचने निकलता ही क्यों, उसके पास तो पेट भरने की कोई कमी है नहीं, किसान अपना उत्पाद बेचता है धन के लिए, जिस से उसका बेटा अच्छी पढाई कर सके, ब्रांडेड कपडे पहन सके, स्मार्ट फ़ोन रख सके, उसके बुजुर्ग माँ बाप अच्छे हस्पतालों में इलाज करा सकें, मोटे तौर पे वो समाज में बाकि सबकी तरह एक सम्मान जनक जीवन यापन कर सके, और बेशक़ इसमें कुछ गलत भी नहीं है.

सच मायने में किसान होना एक व्यवसाय है जैसे बाकि सब, इसमें कोई समाजसेवा नहीं है जिस काम के बदले हमें धन मिलता हो वो व्यापार है समाजसेवा नहीं, बस ये ढकोसला बन्द होना चाहिए.

किसी कानून में नहीं लिखा है कि किसी कम्पनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करना ज़रूरी है फसल उगाइये, बाजार ले जाइये, बाजार में कम्पीट करिये, जो भाव मिले उस पे बेचिये, बाकि सब लोग भी यही कर रहे हैं. #anigam

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