असुराधिपति के प्रति सहानुभूति और कृतज्ञता का पर्व

कोरोना पर विजय के संकल्प के साथ विजयादशमी को सम्पूर्ण होने वाली रामलीलाएं भी सुरक्षा प्रबंधों के साथ किसी न किसी रूप में की आयोजित जा रही हैं। कहीं नियंत्रित दर्शकों के साथ तो कहीं यू –ट्यूब और फेसबुक पर लाइव।

शुभकामनाओं का आदान प्रदान भी चल पड़ा है। जब से सोशल मीडिया का क्षेत्र बढ़ा है, स्मार्ट फोन और डाटा सुलभ हुआ है शुभकामनाएँ अकेली नहीं आतीं उनके साथ पिरोए हुए कई प्रकार के सामाजिक सन्देश भी आते हैं।

पहले ये सन्देश पर्वों पर प्रकाशित होने वाले पत्र- पत्रिकाओं के  विशेषांकों में लेख, कहानी, कविता, विचार,व्यंग्य के रूप में आते थे।

शुभकामनाएँ सरल और सीधी भाषा में सामने मिल कर या फोन पर दी जाती थीं। वे विशुद्ध शुभकामनाएँ होती थीं। इनमें सन्देश की मिलावट नहीं होती थी।

शुभकामनाओं और सामाजिक सन्देश के मिलावट वाले व्हाट्स अप, फेसबुक, इन्स्टाग्राम सन्देश सोच विचार के पश्चात विकसित किये जाते हैं और एक बार सोशल मीडिया पर आते ही जंगल में आग की तरह फैल जाते हैं।

राम को न मानने, न जानने और न समझने वालों को ये सामाजिक सन्देश युक्त शुभकामनाएँ और फोन फोन तक इनकी पहुंच अपने एजेंडा को जन जन तक पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम लगीं और उन्होंने इसका दोहन आरम्भ कर दिया।

विगत तीन – चार वर्षों में रामलीला मंचनों और विजयादशमी पर्व के मध्य ऐसे अनेक सन्देश सोशल मीडिया के माध्यम से जारी  किये गए, जिन्हें पढ़ कर लगता कि हम विजयादशमी पर्व नहीं वरन असुराधिपति के प्रति सहानुभूति और कृतज्ञता का पर्व मना रहे हैं।

कुछ उदहारण दृष्टव्य हैं –

“रावण कितना भी बुरा क्यों न रहा हो, उसने सीता को पूरे सम्मान के साथ अशोक वाटिका में रखा। आज के समाज को रावण से सीख लेनी चाहिए कि स्त्री की “न” का मतलब “न” होता है।”

“रावण का पुतला क्यों जलाते हो, रावण का पुतला जलाने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। रावण ने तुमसे कहीं ज्यादा इज्जत दी औरतों को।”

“कम से कम रावण ने किसी के कहने पर अपनी पत्नी मंदोदरी को त्याग तो नहीं दिया। सीता को त्यागने वाले राम से तो सीता को सम्मान सहित अशोक वाटिका में रखने वाला रावण लाख गुना अच्छा है।”

“राम राजा होंगे तो सीता जंगल जाएगी”

ऐसे संदेशों की लम्बी श्रृंखला है, जिसका एक न एक सन्देश घूमते- फिरते दस दिनों में कभी न कभी हम सभी के फोन पर आ ही जाता है। इन राम विरोधी संदेशों के अंत में “हैप्पी दशहरा” इतनी सुन्दरता से जुड़ा होता है कि कोई भी प्रत्युत्तर में शुभकामना के अतिरिक्त कुछ नहीं कह पाता, किन्तु सन्देश अपना काम कर जाता है।

विष की मीठी गोली की तरह बार –बार किसी न किसी रूप में सामने आने वाले ये सन्देश कहीं न कहीं किसी न किसी के मस्तिष्क में अवश्य स्थान बनाने लगते हैं। रामकथा को तर्क या भक्ति किसी भी रूप से बहुत अधिक न जानने वाली पीढ़ियों और परिवारों में ये बहुत आसानी से रावण के लिए सहानुभूति और राम के लिए द्वेष उत्पन्न कर सकते हैं।

इससे पहले कि हमारा वर्तमान इस मीठे विष के प्रभाव में आए तर्कों के साथ तैयार होना होगा। कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर राम विरोधी वामपंथियों को देना ही होगा।

बहुपत्नीत्व के उस काल में जब स्वयं राजा दशरथ की भी तीन रानियाँ थीं, एक पत्नी व्रती होने का प्रण लेकर स्त्री और पुरुष की समानता का आदर्श रखने वाले राम अधिक प्रासंगिक और पथप्रदर्शक हैं या बहुस्त्रीगामी और पर स्त्री का हरण करने वाला रावण?

दो पुरुषों के छल और अहंकार का भाजन बनी अहिल्या, शिलावत हो गयी थी, उसे सामान्य जीवन में वापस लाकर गौतम का अहंकार भंग करने वाले राम आदर्श हैं या अहंकार का शिरस्त्राण धारण करने वाला रावण?

सीता की रक्षा करने के लिए रावण पर आक्रमण करने वाले राम आदर्श हैं या सीता को छल से उठा ले जाने वाला रावण?

मर्यादा पुरुषोत्तम वानरराज बाली को छुप कर  मारते हैं। बाली के कारण पूछने पर कहते हैं, “अनुज वधू, भगिनी, सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ये चारी, इनही कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई”। क्या नारी मात्र की मर्यादा की रक्षा के लिए इससे ऊपर कोई आख्यान हो सकता है? ऐसे राम के समक्ष रावण के प्रति सहानुभूति जगाने का प्रयत्न क्यों?

संभव है उपरोक्त तथ्य समीचीन न लगें तो कुछ प्रश्न ऐसे लोगों से जिनको रावण में बड़ा संस्कारी पुरुष दिखाई देता है, जिसने सीता को सम्मान सहित अशोक वाटिका में रखा।

क्या कोई स्त्री पत्नी के रूप में उस पति को स्वीकार कर लेगी जो उसके होते हुए एक और स्त्री को अपहरण कर घर ले आए?

क्या कोई स्त्री पत्नी के रूप में उस पति को स्वीकार कर लेगी जो किसी अन्य स्त्री के लिए अपने परिवार और वैभव को समूल विनाश के मार्ग पर धकेल दे?

क्या कोई समाज वेश बदलकर, छल से  किसी स्त्री का अपहरण कर उसे बंदी बनाने को स्वीकार्यता देगा?

यदि इन प्रश्नों का उत्तर “न” है तो विजयादशमी को रावण के प्रति सहानुभूति के पर्व में बदलने वाले संदेशों को “न” कहें। उचित उत्तर दें।

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