सुनो तेजस्विनी, ब्रा स्ट्रैप में मत उलझो..

कहानी कुछ पुरानी है फिर भी संभवतः सभी को स्मरण होगी।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, एम टी.वी. ने ब्रा स्ट्रैप दिखने पर लड़कियों को टोकने वाली महिलाओं को अपनी सीमा में रहने और दूसरों की ब्रा स्ट्रैप पर दृष्टि न रखने की सीख देने के लिए, एक अभियान चलाया था।

इसके लिए एक वीडियो भी जारी किया था जिसकी सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया दोनों में पर्याप्त चर्चा हुयी थी।

उदारवादी और वामपंथी महिला समूहों ने ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया मानो, ब्रा स्ट्रैप छुपाने के लिए टोका जाना ही आज की लड़की के जीवन की सबसे बड़ी समस्या है।

सामान्य विचार है कि ब्रा स्ट्रैप जैसे अभियान प्रायः चर्चा में आने को आतुर लोगों द्वारा दो- चार दिन की प्रसिद्धि के लिए चलाये जाते हैं जो समय सीमा पूरी होते ही नेपथ्य में चले जाते हैं अतः इनको गंभीरता से लेना बुद्धिमत्ता नहीं है।

मेरा भी ऐसा ही मानना था किन्तु विगत दिनों में उक्त विषय पर कुछ युवाओं के जिनमें युवक और युवतियाँ दोनों ही हैं के विचार और कविताएँ मिलीं जिन्होंने मेरी इस मान्यता को गहरी ठेस पहुंचायी.

ब्रा स्ट्रैप दिखने पर एक लम्बी कविता में यह स्थापित करने का प्रयास था कि भारतीय समाज किसी स्त्री के ब्रा स्ट्रैप दिखने या न दिखने केआधार पर ही उसके चरित्र का मूल्यांकन करता है। एक आलेख में था कि जो लोग ब्रा स्ट्रैप छुपाने की बात करते हैं वो नारी सशक्तीकरण के मार्ग में बाधक हैं। लड़कों को इंगित कुछ पंक्तियों में तो इस बात को इतने सस्ते शब्दों में कहा गया था कि यहाँ दोहराना लेखकीय मर्यादा की सीमा से परे है।

विषय को थोड़ा और समझने का प्रयास किया तो ऐसा प्रतीत हुआ कि बड़े नगरों की छात्राएँ और कामकाजी युवतियाँ, “ब्रा स्ट्रैप दिखने पर टोका जाना” अपने जीवन की बड़ी समस्या मानती हैं। उनका स्पष्ट और दृढ़ मत है कि इसके विरुद्ध अभियान और आन्दोलन होने  ही चाहिए।

बहुत सरलता से, किशोर और युवा मन के कोमल पक्ष पर हल्का सा अघात करके वामपंथियों ने उनको संघर्ष के लिए ऐसा विषय दे दिया जिसका उनके व्यक्तित्व विकास, शिक्षा, सशक्तीकरण, आत्मनिर्भरता, सामाजिक सरोकार से कोई लेना देना नहीं है.

यहाँ से प्रारंभ होती है एक पीढ़ी की अपने संघर्ष के लिए गलत प्राथमिकता के चयन की प्रक्रिया।

आज भी छोटे और कस्बाई शहरों में कितनी लड़कियां केवल छेड़खानी के डर से पढ़ाई छोड़ देती हैं, उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या होना चाहिए? क्या ये संघर्ष का विषय नहीं है? जब इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, एंटी रोमियो स्क्वाड की बात करते हैं तो पूरे उदारवादी – वामपंथी नारीवादी समाज में हाहाकार मच जाता है.

चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16)  के अनुसार 20-24 आयु वर्ग की लगभग 27 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 की आयु से पहले हो गया था। क्या आज के भारत में ये महिलाओं के लिए संघर्ष का एक विषय नहीं होना चाहिए? वामपंथियों के अनुसार ये तो सरकार का काम है और इसका ना होना तो सरकार को कोसने के काम आएगा।

देश की एक जानी मानी स्त्री और प्रसूति रोग विशेषज्ञ ने मातृ स्वास्थ्य पर चर्चा करते हुए कहा था, हमारे पास एकदम युवा महिलाएं आती हैं 22-24 आयु वर्ग की। उनकी आई ब्रो- प्लकड होती है, नेल्स सेट होते हैं, बालों में स्ट्रीक्स होती हैं लेकिन हीमोग्लोबिन 6-7 ग्राम होता है क्योंकि उन्हें अपनी प्राथमिकता तय करने की समझ नहीं होती। यही मातृ स्वास्थ्य की समस्याओं का मूल है।

इसी तरह संघर्ष के लिए प्राथमिकता तय न कर पाना या गलत प्राथमिकता तय कर लेना संभवतः वास्तविक स्त्री सशक्तीकरण की राह की सबसे बड़ी बाधा है।

शिक्षा/ज्ञान, स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और निर्णय का अधिकार – ये चार तत्व किसी भी स्त्री या पुरुष को व्यक्ति के रूप में सशक्त बनाते है।संघर्ष की प्राथमिकता भी इनको मूल में रख कर ही निश्चित होनी चाहिए।

भारत की तेजस्विनी बेटी,  इनके कहने से ब्रा स्ट्रैप में मत उलझो।ये वही लोग हैं जो कुछ दिन पहले “ब्रा बर्निंग” का समर्थन करते थे।“अकेली – आवारा- आज़ाद” स्लोगन की टी शर्ट में फोटो शूट के बाद,अबाया में दिखायी देते थे.

शिक्षित बनो। ज्ञान अर्जित करो। स्वस्थ रहो। आत्मनिर्भर बनो। सामर्थ्य प्राप्त करो।

भारत की प्रत्येक बेटी के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, आत्मनिर्भरता और सामर्थ्य सुलभ हो यही हमारे संघर्ष का केंद्र बिंदु होना चाहिए.

एक बार ये हो गया तो कोई भी, कहीं भी, कभी भी ब्रा स्ट्रैप की बात नहीं करेगा। 

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