पतंजलि तो बहाना है, भारतीय सनातन ज्ञान पद्धति पर निशाना है

हाल ही में आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव जी कोरोना वायरस की बीमारी को ठीक करने के लिए कोरोनिल नाम की एक दवा लेकर सामने आए। पतंजलि द्वारा निर्मित कोरोना किट तीन औषधियों का मिश्रण है। इस किट में कोरोनिल टेबलेट, श्वासारि वटी और अणु तेल है। दिव्य फार्मेसी के बैनर तले आने वाली इस कोरोना किट में 30 दिनों के लिए दवा है। पतंजलि के अनुसार इस किट की कीमत मात्र 545 रूपए है। बाबा रामदेव जी ने प्रेस कांफ्रेंस में यह बताया कि इस दवा से कोविड19 से पीड़ित 69% मरीज 3 दिनों में और 100% मरीज 7 दिनों में स्वस्थ हो चुके हैं। अब इस दवा का भविष्य क्या है? इसके विभिन्न प्रकार के ट्रायल से सम्बंधित नियम कानून किस प्रकार के हैं? और इस दवा को आगे बाजार में किस प्रकार उपलब्ध कराया जाएगा? यह सब एक दूसरा विषय है जो क्लीनिकल शोध एवं उससे सम्बंधित भारतीय वैधानिक व्यवस्थाओं से जुड़ा है। किन्तु आप सब ने गौर किया होगा कि पतंजलि द्वारा इस दवा की घोषणा करने के पश्चात ही एक बड़ा वर्ग अपने आपे से बाहर हो गया। यह वर्ग पागल हो गया।

ऐसा लगा मानो अनायास ही बाबा रामदेव जी ने इस वर्ग की संपत्ति की कुर्की की घोषणा कर दी हो। यह वर्ग पतंजलि पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगा। आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव जी का मजाक उड़ाया जाने लगा। आप सब जानते हैं कि यह महान वर्ग कौन है। यह कहाँ पाया जाता है और किस अवस्था में पाया जाता है। वास्तव में यह वर्ग लिब्रान्डुओं, वामपंथियों और स्वघोषित आधुनिकीकरण के समर्थकों का है। इस वर्ग ने जैसे ही पतंजलि और विशेषकर आयुर्वेद का नाम सुना, इसके गुर्दों का कीड़ा तिलमिला उठा। ठीक वैसे ही जैसे नाली में दवा डालने के पश्चात बदबूदार कीड़े तिलमिला उठते हैं।

यदि आप यह विचार करते हैं कि लिब्रान्डुओं और वामपंथियों के इस वर्ग को बाबा रामदेव अथवा पतंजलि से कोई समस्या है तो एक बार पुनः विचार कीजिए। आप पूर्णतः गलत हैं। आप अभी भी इस भारत में विरोध और असहमति की अवधारणा से अपरिचित हैं। वास्तविकता यह है कि इस कुंठित वर्ग को पूरी भारतीय सनातन ज्ञान पद्धति से ही समस्या है। जिस योग को आज पूरा विश्व एक अमूल्य धरोहर के रूप में स्वीकार कर रहा है उस धरोहर को भारत में ही सांप्रदायिक कहा जा रहा है। हिन्दुओं के द्वारा पूरी दुनिया को दिए गए योग के उपहार को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मुस्लिम देशों द्वारा भी सहर्ष स्वीकार किया गया वही योग आज भारत के मुस्लिमों के लिए अस्वीकार्य है। वामपंथियों के लिए योग को अनिवार्य किया जाना संवैधानिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। यही समस्या आयुर्वेद के साथ भी है। आयुर्वेद है भी तो अंततः सनातन ज्ञान पद्धति का ही एक भाग। हमारे उपवेदों में से एक है आयुर्वेद। आयुर्वेद के प्रारंभिक ज्ञाताओं में महान हिन्दू ऋषि और मनीषी रहे हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों की रचना करने वाले भी सनातन के महान संत रहे हैं। ऐसे में बाबा रामदेव जी का विरोध तो होना ही था।

अब कल्पना कीजिए कि यदि बाबा रामदेव भगवा पहनने वाले कोई हिन्दू संत न होते अपितु दूसरे मजहबों से जुड़े हुए व्यक्ति होते तो क्या उनके साथ इसी प्रकार का व्यवहार होता? क्या उनकी और उनके सहयोगियों की महीनों की मेहनत का ऐसे ही मजाक उड़ाया जाता?

कदापि नहीं।                                                                     

बाबा रामदेव और पतंजलि का अपराध ही यही है कि वो सहस्त्राब्दियों पुरानी सनातन चिकित्सा पद्धति का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये दोनों ही भारत के लिब्रान्डुओं और वामपंथियों की आधुनिकता में फिट नहीं होते हैं। वैसे तो न ही आचार्य बालकृष्ण जी ने और न ही बाबा रामदेव जी ने यह दवा किसी के लिए अनिवार्य की है और प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है अपनी सुविधा के अनुसार अपना ईलाज कराने के लिए किन्तु फिर भी भारत के इस दोगले वर्ग के पेट में समस्या पल रही है। यह वर्ग स्वतंत्र है कि यह कोरोना वायरस का ईलाज कराए अथवा न कराए, एक दूसरे के मुँह पर छींके अथवा खांसे, किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता किन्तु फिर भी हमारे राष्ट्र के हृदय पर मूंग दलने वाले ये लिब्रान्डु, बुद्धिजीवी और वामपंथी सबसे अधिक चिंतित दिख रहे हैं। इन्हे चिंता इस बात की नहीं है कि पतंजलि की यह कोरोनिल टैबलेट कारगर होगी या नहीं। इन्हे सबसे प्रमुख चिंता इस बात की है कि जिस बीमारी से विश्व के बड़े से बड़े देश जूझ रहे हैं और अभी तक पश्चिमी चिकित्सा जगत जिसके उपचार का कोई भी मार्ग नहीं ढूंढ पाया है उस बीमारी को ठीक करने के लिए एक भगवाधारी और उसकी टीम ने दवाई बना दी और वो भी भारत की सनातन चिकित्सा पद्धति की सहायता से।

हालांकि ऐसा आज से नहीं हो रहा है। भारतवर्ष के इतिहास के मर्दन का कार्य दशकों से होता रहा है। अंग्रेजों द्वारा प्रारम्भ किया गया यह कार्य स्वतंत्रता के पश्चात भी चलता रहा। हमारे इतिहास में जो भी सनातन से जुड़े हुए पहलू हैं सब मिटा दिए गए। हमारी सनातन ज्ञान पद्धति के विषय में हमारे पाठ्यक्रमों को पक्षपाती रूप से तैयार किया गया है। इतिहास की ऐसी मिथ्या व्याख्या करने वालों की संतानें ही आज आयुर्वेद और बाबा रामदेव का उपहास कर रही हैं।

वैसे दोष हमारा भी है। हमने किया ही क्या है अपने इन अमूल्य धरोहरों की रक्षा के लिए। सदैव से हम अपनी चिकित्सा पद्धतियों को पश्चिम के दृष्टिकोण से देखते रहे। आधुनिकता की दौड़ में हमने स्वयं अपनी ज्ञान-विज्ञान की विरासत को ध्वस्त कर दिया। हमारी इसी निर्बलता का लाभ उठाते हैं ये वामपंथी और बुद्धिजीवी। ये नहीं चाहते कि हम अपने सनातन के प्रति सुदृढ़ रहें। ये नहीं चाहते कि भारत अपने सनातन के ज्ञान और विज्ञान की सहायता से विश्व में अग्रणी मोर्चे पर खड़ा रहे। इनकी प्रबल इच्छा यही है कि भारत भी अन्य देशों की भांति अपनी आतंरिक समस्याओं में ही उलझा रहे। जो कुछ भी हमारी विशेषताएं हैं, उन्हें ये वामपंथी हमारी निर्बलता बना देना चाहते हैं। किन्तु ऐसा होगा नहीं। भारत की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति ही नहीं अपितु सम्पूर्ण सनातन का ज्ञान कोष धीरे धीरे ही सही किन्तु आम जनों तक पहुँच रहा है। कोरोना वायरस के इस संकट में अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए आज भारत भर में आयुर्वेदिक उपाय किए जा रहे हैं। लोग या तो बाजार से खरीद कर अथवा घर में बनाए गए काढ़े इत्यादि का उपयोग कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि भारतवासी पूरी तरह से वामपंथियों और पश्चिम के षड्यंत्रकारियों के चंगुल में फंसे हुए हैं किन्तु हमें अपनी सुदृढ़ता में अभी और कार्य करना है। हमें अपने सनातन के ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे लेकर जाना है।

ऐसे हजारों लिब्रान्डु, वामपंथी और बुद्धिजीवी सियार हो-हल्ला मचाएंगे, गुट बनाकर हमें घेरने के प्रयास करेंगे किन्तु सिंह अपनी चाल नहीं बदलता। हो सकता है कि समूह में रहने वाले इन सियारों के हमले से कुछ क्षणों के लिए विचलित हो जाए किन्तु यदि आपसी संगठन बना रहा तो ये हल्ला मचाने वाले सियार हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे।

इसलिए हिन्दुओं ! अपने सनातन के ज्ञान का भरपूर उपयोग करो। स्वस्थ रहो, समृद्ध बनो और भारत को विश्वपटल पर गुरु के रूप में स्थापित करो।

हर हर महादेव।।                                                                        

ओम द्विवेदी: Writer. Part time poet and photographer.
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