वह फ़ैसला जिसने रातों रात बदल दी इंदिरा गांधी की तस्वीर; इमरजेंसी की घोषणा में राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी केस का बड़ा हाथ

जी हां! सही सुना आपने। यह वही केस है जिसने न सिर्फ़ इंदिरा गांधी की किस्मत को पलटकर रख दिया बल्कि इस देश को इमरजेंसी जैसे कठोर प्रावधान भी झेलने पड़े थे। आप सभी जानते है कि आज के दिन ही यानी 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू हुआ था। लेकिन इसके पीछे की वास्तविक कहानी आज हम आप सबों के बीच बताने जा रहे है।

आज इमरजेंसी के 45 साल हो चले है। देश ने उसके बाद आजतक वैसे प्रकरण नहीं देखें है। दरअसल बात कुछ वहीं जून महीने की है। दिन था 12 जून 1975। इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस जगनमोहन लाल सिन्हा ने एक ऐसा फ़ैसला सुनाया जिससे पूरा देश स्तब्ध रह गया और भारतीय राजनीति में एक नया इतिहास जुड़ गया। और हो भी क्यों न जब एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के द्वारा देश के प्रधानमंत्री का चुनाव ख़ारिज कर दिया जाए तो बेशक इसमें कोई संदेह नहीं की वह इंसान अंदर से कितना मजबूत होगा।

हमलोग उस प्रकरण के बारे में तो बात करते है लेकिन कभी उसके पीछे की वजह और उससे जुड़े हुए लोगों को भूल जाते है। या यूं कहें तो उसे दरकिनार के देते है। जस्टिस जगनमोहन लाल सिन्हा ने सिर्फ इतिहास रचा बल्कि लोगों में कानून और न्याय व्यवस्था के लिए एक अलग प्रकार का विश्वास जागृत किया। साथ ही साथ उन्होंने उस समय अपने आगे आने वाली पीढ़ी को भी संदेश दिया कि अपने कार्यों और संविधान की रक्षा हमेशा होनी चाहिए।

उन्हें न तो प्रधानमंत्री का भय था और न ही देश में होने इसके उथल पुथल की चिंता। उन्हें तो बस अपने संविधान, अपने धरोहर और न्याय और कानून की फ़िक्र थी। शायद ही अब वैसे कोई न्यायधीश भारतीय कानून और न्याय व्यवस्था में पदस्थापित है।

क्या है पूरा प्रकरण :- राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी

बात है साल 1971 की। इस साल देश में आम चुनाव हुए। इस चुनाव में न सिर्फ़ इंदिरा गांधी ने भारी मतों से जीत हासिल की बल्कि अपने कांग्रेस पार्टी को भी जबरदस्त जीत दिलवाई। इसके साथ ही इंदिरा गांधी ने भी अपनी पारंपरिक सीट रायबरेली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राज नारायण को भारी मतों से हराया। इसके बाद आया कहानी में मोड़। हारे हुए प्रत्याशी राज नारायण अपनी हार से बिल्कुल स्तब्ध थे। उन्हें तो ऐसा लग रहा था मानों यह क्या हो गया। दरअसल इसे कहते है आत्म विश्वास। आजकल तो लोगों को आखिरी वक्त तक तकाज़ा नहीं होता कि कौन जीत रहा है? उसके बाद राज नारायण ने अपनी हार को कानून का सहारा लेते हुए न्यायालय में इसके ख़िलाफ़ याचिका दायर की।

सभी पक्षों को सुना गया। दोनों पक्षों को जस्टिस ने बड़ी गंभीरता से सुना। राज नारायण का यह आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और सरकारी संसाधनों का ग़लत रूप से इस्तेमाल किया है। मामला संगीन था इसलिए इसपर सुनवाई भी काफी दिनों तक चली। राज नारायण ने न्यायालय से मांग की कि इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया जाए। तमाम गवाहों और कागजातों को ध्यान में रखते हुए और सभी चीजों को गंभीरता से जांच करते हुए अंततः इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगनमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया।

यह इस लिहाज़ से भी ऐतिहासिक था क्योंकि भारत के इतिहास में पहली बार किसी भी प्रधानमंत्री को कोर्ट रूम में हाज़िर होना पड़ा। फ़ैसले से पहले ही इस केस ने अपना इतिहास लिख लिया था। फ़ैसला आने के बाद यह इतिहास अपने आप में ऐतिहासिक हो गया। जगनमोहन लाल सिन्हा ने फ़ैसला इंदिरा गांधी के विरूद्ध सुनाया। राज नारायण की सात मांगों में से न्यायधीश ने 5 मांगों में इंदिरा गांधी को राहत दे दी थी। लेकिन 2 मांगों पर उन्होंने इंदिरा के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया। पहला तो न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया और दूसरा उन्हें अगले 6 साल तक लोकसभा या विधानसभा के चुनावों को लड़ने पर पूरी तरह से रोक लगा दी।

इस फ़ैसले के बाद से पूरे देश में मानों एक भूचाल आ गया। सबसे बड़ी बात थी कि इस फ़ैसले के लिए उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस से लेकर बड़े बड़े आला अधिकारियों का फ़ोन आया लेकिन उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी। यहां तक भी कहा जाता है कि जस्टिस जगनमोहन लाल सिन्हा ने 28 मई से लेकर 7 जून 1975 तक किसी से भी मुलाक़ात नहीं की। यहां तक के उनके निजी जिंदगी से जुड़े हुए लोग भी उनसे नहीं मिल पाते थे।

इस केस में राज नारायण के वकील के तौर पर भारत के पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री शांति भूषण थे। उन्होंने उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक राज नारायण का साथ दिया।

इसके बाद बहुत सारे प्रकरण हुए। कांग्रेस के समर्थकों ने कोर्ट रूम के अंदर ही जस्टिस के ख़िलाफ़ नारे लगाए और देशभर में कांग्रेस समर्थकों में आक्रोश था। लेकिन उन सारे विषयों पर मैं नहीं जाऊंगा।

इसके बाद इंदिरा गांधी की पैरवी करने खुद उस समय के सबसे बड़े वकीलों में से एक नानी पालखीवाला आए और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर की। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट में उस समय के वैकेशन जज जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले पर आंशिक रूप से रोक लगा दी। हालांकि उन्होंने भी इसपर पूर्णतः रोक नहीं लगाया। उन्होंने यह फ़ैसला सुनाया की इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में तो भाग ले सकती है लेकिन वह संसद में वोट नहीं कर सकती है। आदेश के मुताबिक इंदिरा गांधी की लोकसभा की सदस्ता जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में भी एक तरह से इंदिरा गांधी को पूर्ण रूप से राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट के वैकेशन जज पर भी बहुत दबाव बनाया गया था।

यह फैसला आया 24 जून को और 25 जून 1975 को देशभर में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी। देश के इतिहास में यह अबतक का सबसे कठोर निर्णयों में सबसे ऊपर था। आपको यह भी बता दे कि इसी दिन यानी 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन किया गया था।

बस फिर क्या था आननफानन में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आधी रात से आपातकाल की घोषणा कर दी। इसे है इमरजेंसी भी कहा जाता है। भारत के इतिहास में यह पहला ऐसा मौका था जब किसी प्रधानमंत्री ने नेशनल इमरजेंसी की घोषणा की थी।

Abhinav Narayan Jha: Abhinav Narayan is a law graduate from Amity University, Noida and currently a LLM Candidate. He is a vastly experienced candidate in the field of MUNs and youth parliaments. The core branches of Abhinav's expertise lies in Hindi writing, he writes Hindi poems and is a renowned orator. He is currently the President of the Hindi Literary Club, Amity University.
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