फर्जी चिल्लाहट

जिन्हें आप मजदूर कह रहे हो वो सनातन परंपरा के लघु एवं कुटीर उद्योग के सर्वेसर्वा थे, जिनके सपनों को लाल सलाम के गमछे में लपेटकर बेच दिया गया, अब इनकी संवेदनाओं को बेचकर बाज़ारवाद अपनी झोली भर रहा है।

मार्क्स की मानस सर्ग से उत्पन्न वामपंथी औलादों ने सामाजिक समानता के नाम पर जिन्हें अपनी जड़ों से काटकर फेक दिया और अब उनके तनों को सहला कर हँसिए से काटने की तैयारी चल रही है, कई तो गुप्त गुफा में अष्टयोग की आठवीं अवस्था समाधि लगाए बैठे हैं अचानक प्रकट होंगें और और अपने ही कुकर्मों का हिसाब दूसरों से माँगेंगें।

बड़े आये मजदूर के हिमायती, ये स्वतंत्रता से लेकर आजतक के शाशन तंत्र की सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता का एक नमूना मात्र है परिणाम की कल्पना तुम्हारे औकात के बाहर के चीज है, हाँ 20-30 साल जिंदा रहे तो उन परिणामों की एकाद झलक अवश्य देखने को मिल जाएगी।

महायंत्र के युग में जब विकास के नाम पर इनके रोजगार के विनाश की रूपरेखा तैयार हो रही थी तब किसी को इनकी संवेदनाएं नहीं दिखी क्यों, क्योंकि तब ये सैकड़ों किलोमीटर पैदल नही चल रहे थे, 12-16 घंटे काम करते हैं ये कोल्हू के बैल की तरह तब नहीं दिखता इनका दर्द, नहीं दिखेगा क्योंकि दर्द देने वाले भी तो तुम्ही हो।

केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार अपने स्थापित सीमित संसाधनों के माध्यम से औकातानुसार कार्य कर रही हैं, ऐसी वैश्विक आपदाओं के लिए किसी के पास कोई फुल प्रूफ प्लान नही होता न हो सकता है, समय के साथ ही संतुलन बनता है। पुलिस, प्रशासन, डॉक्टर, नर्स, सफाईकर्मी, बैंकर, सरकारी कर्मचारी, ड्राइवर, स्वयं सेवक सब अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर तो रहे हैं यही तो सरकार हैं, केवल चंद विधायक, सांसद, मंत्री ही सरकार की गणना में आते हैं क्या?

चिंता न करो जनता सब देख रही है कौन कुटिलता कर रहा है और कौन सेवा, आने वाले समय मे द्वार विशेष पर इतने छेद करेगी कि गिनने के लिए सलमान खान को बुलाना पड़ेगा।

इति
~ सर्वेश मिश्र

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