पुलिस की छवि बदलता एक अफसर

पुलिस किसी भी क्षेत्र की कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि आम लोग मदद के लिए पुलिस के पास जाने से बचते हैं।

पुलिस चाहे हमारे देश की हो चाहे विदेश की बच्चा बच्चा उससे डरता है। हमारे मानस पटल पर बचपन से ही पुलिस की कुछ छवि ही ऐसी बनती है कि उसके बारे में सोचते ही सुकून से अधिक भय की भावना जागृत होती है। भले ही हमने बचपन से पढ़ा है कि पुलिस कानून व्यवस्था की रक्षक होती है चोर उचक्कों को पकड़ती है और शरीफ एवं सभ्य आदमी को सुरक्षा प्रदान करती है लेकिन व्यवहार में पुलिस के नाम से ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं यह एक कटु सत्य है।

इसीलिए समय समय पर स्कूलों में बच्चों के साथ पुलिस की कार्यशाला लगाई जाती है ताकि बच्चे पुलिस को अपना दोस्त समझें। क्योंकि किताबी बातों से इतर कुछ व्यवहारिक बातें भी होती हैं और दोनों बातों का कोई मेल नहीं होता। जैसे किताबों में दो और दो चार ही होते हैं लेकिन व्यवहार में वे चार के अलावा और कुछ भी हो सकते हैं। तो किताबों में भले ही पुलिस के बारे में कुछ भी लिखा हो असलियत में तो लोग पुलिस के नाम से भी डरते हैं और खुदा न खास्ता कभी थाने का चक्कर लगाना पड़ जाए तो घबड़ाहट ऐसी कि कहीं दिल की धड़कन ही न थम जाए।

लेकिन जैसे पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती वैसे ही सभी पुलिस वाले भी एक जैसे नहीं होते इस बात को सिद्ध करते हैं ग्वालियर इंदरगंज थाने के टीआई अमर सिंह जी।

जिन्हें पुलिस की वर्दी पर रोब से ज्यादा इस वर्दी पर गर्व है और जब इस भावना के साथ वो अपनी ड्यूटी करते हैं तो उस क्षेत्र के जनमानस के ह्रदय में भी धीरे धीरे इस  वर्दी से डर की बजाय अपने देश की पुलिस की वर्दी के लिए वही गर्व और विश्वास की भावना जागृत हो रही है। यह उनकी शैली की सबसे बड़ी जीत है कि लोगों के मन में उन्हें देखने पर एक पुलिस अधिकारी से पहले उस वर्दी के पीछे एक सह्रदय एवं नेकदिल इंसान दिखाई देता है।

बात चाहे दो गरीब बच्चियों की पढ़ाई का खर्च उठाने की हो या फिर किसी भी प्रकार के सामाजिक कार्य की, किसी केस में से सच और झूठ पकड़ने की हो या फिर लोक अदालत में आने वाली अर्जियों की। किसी बूढ़ी माँ को अपने बच्चों से न्याय दिलाने की बात हो या फिर आपसी रंजिश मिटाने के लिए डाली गई झूठी रिपोर्ट की। टीआई अमर सिंह जी की पारखी निगाहों को फाइल के पार और बयानों के आगे के सच समझते देर नहीं लगती। शायद इसीलिए जो इनसे एक बार भी मिल लेता है उसके मन में बरसों से बनी पुलिस की छवि एक पल में ही धूमिल हो जाती है और देश की इस संस्था और उससे जुड़े लोगों के प्रति मन में श्रद्धा एवं टीआई अमर सिंह जी विश्वास जाग्रत हो उठता है।

समाज, देश एवं अपनी ड्यूटी के प्रति उनकी कर्तव्य निष्ठा काबिले तारीफ है। आखिर लोगों के मन में पुलिस की छवि स्वयं पुलिस ही बदल सकती है।

इन्होंने जो एक छोटी सी उम्मीद की किरण अपने आस पास के लोगों में जगाई है, निश्चित ही उसकी रोशनी बहुत दूर तक फैलेगी और न सिर्फ लोगों के मन में पुलिस की छवि बदलने में सहायक होगी अपितु बदले में इन्हें लोगों से मिलने वाले प्रेम और सम्मान इनके साथियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बन कर उन्हें इनके नक्शे कदम पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे।

ऐसे ही नेकदिल पुलिस अफसर टीआई अमर सिंह जी को एक शेर अर्ज है:

मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल,
मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया।

डॉ नीलम महेंद्र: Writer. Taking a small step to bring positiveness in moral and social values.
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