अगर महिला अपराधी तो सवाल क्यों नहीं? ठीक ऐसे ही जैसे पुरुष पर उठाये जाते हैं..

चिन्मयानंद वाले मामले में मज़ा बाबा ने भी लिया और छात्रा ने भी, बस छात्रा की कमी ये रह गयी कि महत्वाकांक्षाओं की गिरफ्त में आकर पैसे का लालच कर बैठी. दूसरी भाषा में कह सकते हैं कि पैसे के लालच में आकर मज़ा ले बैठी. छात्रा ने सोचा होगा कि जा ही क्या रहा है, दोनों चीज़ें मिलेंगी. तभी तो तीन तीन लोग निगरानी कर रहे थे कि बाबा को कैसे लपेटा जाये.

ये अकेली छात्रा नहीं है. आज हजारों सो कॉल्ड छात्राएं बड़े बड़े उद्योगपति, प्रशासनिक अधिकारियों, नेताओं के साथ सम्बन्ध बना रही हैं, क्योकि ऐसे लोगों से संबंध बनाने से एक पंथ दो काज नहीं बल्कि कई काज हो जाते हैं. मसला सम्बन्ध बनाना नहीं है, मसला है कि संबंध किस उद्देश्य से बनाया जा रहा है. दुनिया लड़की का भी सच जानती है मगर 90 प्रतिशत मामलों में बलि का बकरा कौन बनता है, हर बार सिर्फ पुरुष!

सारा समाज मुंह बंद किये रहता है, जैसे अब इस छात्रा की असलियत सामने आने पर चुप है, जबकि उसने एसआईटी के सामने स्वीकार कर लिया है कि उसने बाबा से रंगदारी मांगी और इस कारनामे में उसके दोस्त भी शामिल थे, जिनमे से एक को वो अपना भाई बताती है. अब कुछ लोग कहेंगे कि अभी कोर्ट ने छात्रा को दोषी करार नहीं दिया, अरे भाई फिर तो चिन्मयानन्द को भी अदालत ने दोषी करार नहीं दिया मगर आपकी अदालत ने उसे फांसी देने तक वकालत कर दी, पूरे नेताओं को, पूरी भाजपा को कठघरे में खड़ा कर दिया. चिन्मयानन्द के किन किन बड़े नेताओं के साथ फोटो थे, किस व्यक्ति के साथ उसका उठना बैठना था, भाजपा ने उसको क्या क्या पद दिए, पहले उस पर कौन कौन आरोप लगा चुका है, आदि आदि, उनको सोशल मीडिया पर वायरल करना  शुरू कर दिया..

अब जब उस छात्रा की असलियत सामने आयी है तो उस छात्रा की अय्याशी के फोटो निकालिये न, किस के साथ घूमती थी, किस के साथ बैठती थी, किस किस से अबतक रंगदारी मांग चुकी है, उठाओ सवाल, जाँच के लिए बनाओ प्रशासन पर दवाब…या फिर सारा का सारा विरोध पुरुषों के लिए ही. जो दोषी है उसे कोर्ट जरूर सजा देगा, कोई नहीं बचा, चाहे आसाराम हो या राम रहीम, चाहे चिन्मयानन्द, सोशल मीडिया जैसी समाज की अदालत में उन औरतों को कब खड़ा किया जाएगा, जिन्होंने ब्लैकमेलिंग के जरिये न जाने कितने छात्रों का करियर बर्बाद कर दिया, कितनो नेताओं का करियर ख़राब कर दिया, कितने लोगों को आत्महत्या करने को मज़बूर कर दिया ?#METOO  जैसे प्रोपगंडा चला कर न जाने कितने लोगों की छवि धूमिल कर दी गयी.वो बात अलग है कि जिस #METOO  की शुरुआत नाना पाटेकर वाले मामले से हुई थी , उसमे आज तक कोई सुबूत ही पैदा नहीं हुआ.

छात्रा की असलियत और शातिर दिमाग तो उसी दिन दिख रहा था जब वो मीडिया से बात करते हुए अपने काम के सवालों के विस्तार से जवाब दे रही थी जबकि जो सवाल उसकी असलियत की पोल खोलने वाले थे, उनके जवाब में छात्रा कहती कि इस पर मुझे कुछ नहीं कहना. जब तुम्हारी हर चीज़ में सच्चाई है तो समाज को भी बताओं न, अपने हिसाब से मामले को सेट करना कहाँ तक सही है?

मध्य प्रदेश का कांड सबके सामने है. चंद औरतों ने किस तरह से सैकड़ों लोगों की जिंदगी में भंग फैला दी. ये सब देश के अंदर चल रहे झूठे फेमिनिज्म का ही परिणाम है. ऐसा नहीं कि उनके लम्बे समय से चल रहे काले कारनामों से कोई अवगत नहीं था, मगर बोले कौन? जब एक ने हिम्मत करके आवाज उठायी तो मेकअप की आड़ में छुपी साड़ी गंदगी सामने आ गयी. इन सब चीज़ों पर गौर करते हुए अब सवाल उठता है कि क्या इस केस में भी उस शातिर लॉ छात्रा को इसी श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? क्या लोगों को उसके भी कारनामे ढून्ढ कर नहीं निकालने चाहिए. क्या उसकी मंशाओं पर सवाल खड़े नहीं किये जाने चाहिए?

जरूर किये जाने चाहिए मगर आप नहीं करेंगे, क्योंकि लोग आपको महिला विरोधी न समझ बैठें. समाज को बताओ कि आपका विरोध महिलाओं के खिलाफ नहीं, चरित्रहीन और आपराधिक प्रवत्ति की महिलाओं के खिलाफ है. न सिर्फ महिलाओं के बल्कि हर उस पुरुष के भी खिलाफ है जो महिलाओं को एन्जॉय का साधन समझ उनकी भावनाओं के साथ खेल रहा है.

आज वामियों द्वारा फेमिनिज्म की आड़ में आज महिलाओं को चरित्रहीन बनाया जा रहा है. आजादी के नाम पर सस्कारों का त्याग किया जा रहा है. अधिकतर मामलों में युवक को ही सजा का अधिकारी करार दे दिया जाता है. समाज को सोच बदलनी होगी, तभी स्वच्छ समाज की नींव रखी जा सकती है. गलत को गलत कहने की हिम्मत लानी होगी.

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