पर्यावरण संरक्षण की असली मिसाल- धोनी

पहाड़ अपने साथ रहने वाले सभी लोगों का ध्यान रखने की कोशिश करता है लेकिन सभी की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता। अपने साथ कुछ को वह बड़ा बना देता है। जो अपने को उस रंग में रंग नहीं पाते वो उन बड़े पेड़ों के साये में रहने लगते हैं या जब वो बड़ा बनने की कोशिश करते हैं तो कुचल दिए जाते हैं।

ऐसे ही एक पहाड़ की कहानी है- धोनी। एक आदमी जो टिकट कलेक्टर से ट्राफी कलेक्टर बन गया, लेकिन हमेशा आरोपों के साये में घिरा रहा।

मैं 1993 में पैदा हुआ लेकिन क्रिकेट की समझ आते आते मेरे लिए 2003 वर्ल्डकप का सेमीफाइनल हो चुका था। फाइनल के लिए गाँव से दो लोगों की बैट्ररी उधार लेकर, 10 रुपये उसको भरवाने में खर्च किये थे। जो सचिन के आउट होते ही ऐसा लगा था कि जल चुके हैं। लेकिन इस फाइनल ने इतना जरुर सिखाया था कि भारत को राहुल द्रविड़ के साथ-साथ एक ऐसे बल्लेबाज की जरुरत है जो विकेट के पीछे चपलता के साथ बल्ले से आग उगल सके। बंगाली बाबू दीपदास गुप्ता के साथ चार्मिग गुज्जू पार्थिव से होते होते ये खोज पहुंची थी रांची के महेंद्र सिंह धौनी के पास (धोनी के बताने से पहले सब धौनी ही लिखा करते थे)।

पहले मैच में रन आउट होने के बाद 5वें मैच में 148 की पारी जिसने क्रिकेट को अपनी महबूबा बताने वाले लोगों की दिल में जगह बना ली थी। (कसम बता रहें हैं कि उस समय दो ही हेयर कट फैमस हुए थे एक तेरे नाम वाला और दूसरा धोनी वाला और हम दोनों नहीं कटा सकते थे क्यूंकि डर था पता नहीं कब पिताजी बाल देखते अमरीश पुरी बन जाएँ) और अगली पारी जो 183 रन की श्रीलंका के खिलाफ थी उसमें सबसे खास था धोनी की छक्के के लिए आग और ये ऐसी आग थी जिसे हम छोटे शहर वाले बरसाती क्रिकेटर अपने लिए हमेशा जला के रखना चाहते थे।

2005 से 2007 के दौरान बहुत सारे मैच सिर्फ रेडियो पर ही सुने थे वो भी ये सुनने के लिए कि धोनी और युवराज की पार्टनरशिप कैसी रही। जब भी सुनाई देता था “ये बीएसएनएल चौका- कनेक्टिंग इण्डिया” हम ख़ुशी से झूम उठते थे।

2007 के वर्ल्ड कप के बाद उठे तूफान के बाद सबने हाथ खिंच लिए थे। इस दौरान बड़े खिलाड़ियों के कहने पर टीम की कमान सौपी गयी थी महेंद्र सिंह धौनी को। और पहली बड़ी प्रतियोगिता जिसमें धोनी की टीम खेल रही थी उसका विरोध BCCI ही कर रही थी उस ट्राफी का नाम था T20 वर्ल्ड कप। लेकिन धोनी कुछ और ही सोच कर गये थे। उन्होंने जो अपनी टीम के साथ करके दिखाया शायद वही था, जिसकी वजह से दुनिया आईपीएल जैसा टूर्नामेंट देख पाई।

किसी भी कप्तान का सपना होता है कि वह अपने हाथ में वर्ल्ड कप उठा सके लेकिन ये हमारे टाइम के भारत में इकलौते धोनी ही थे जिसने ये करिश्मा करके दिखला दिया था और वो भी अपने ट्रेडमार्क स्टाइल में। सबसे ज़्यादा भावुक पल था जब रवि शास्त्री ने कहा था कि “Dhoniiiiii finishes off in style”। उससे पहले हम मान चुके थे कि धोनी अब चुक गयें हैं। लेकिन धोनी फिर वापस आये और ऐसे आये कि लोगों ने भगवान मान लिया।

पिछले आठ साल की कहानी नहीं लिखूंगा क्यूंकि अब गलियों की जगह PS-4 पे क्रिकेट होता है। बाहर खेलने के बजाए अब टीवी पर देखना ज्यादा पसंद करते हैं। इसलिए सबको पता ही होगा धोनी की टीम का फिक्सिंग में फंसना, उससे बाहर निकलना और अपने को फिर साबित करना।

भारत की क्रिकेट की त्रिमूर्ति की जगह अगर किसी ने भरी थी तो वह धोनी हैं।

धोनी जिस दिन भी संन्यास लेंगे उनके साथ एक और चीज सन्यास लेगी वह है उनकी मैदान के बीच की शांति और उनकी 7 नंबर की जर्सी।

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

AKASH: दर्शनशास्त्र स्नातक, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी परास्नातक, दिल्ली विश्वविद्यालय PhD, लखनऊ विश्वविद्यालय
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