मोदी विरोध के नाम पर देश विरोध कब तक?

पुलवामा का दुःखद और दर्दनाक आतंकी हमला हुआ। हमारे जवान शहीद हुए। किसी ने अपना पति तो किसी ने अपना पिता तो किसी ने अपना बेटा खोया। इस हमले के तुरंत बाद पूरा देश मे आक्रोश का माहौल उत्पन हो गया है। पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ रही है और सरकार इसे पूरा करने के लिए दिन रात लगी हुई है। परंतु इन सब के बीच हमारे ही देश से आतंकियो के समर्थन में कई आवाजें उठी और बाहर आई जो अकेले पाकिस्तान को यह अहसास दिलाने के लिए काफी है कि वो अकेले नही है। उनके साथ हमारे ही देश के कुछ लोग है जो कभी अफ़ज़ल गुरु को अपना हीरो मानते है तो कभी बुरहान वाणी को।

इस हमले के बाद ऐसा लगा था कि देश राजनीति से ऊपर उठकर एक साथ पाकिस्तान को जवाब देगा। लेकिन इन सब के बीच कई सारे राजनेता अगर एक उंगली पाकिस्तान पर उठाते है तो बाकी के चार सरकार पर। जिस समय इन राजनेता को पाकिस्तान से सावल पूछना चाहिए था उस समय वो राजनीति नफा नुकसान को ध्यान में रखकर उल्टा सरकार की नाकामी गिनाने में मग्न है। क्या मोदी का विरोध करना इतना आवश्यक है कि हम कुछ समय पाकिस्तान पर ध्यान नही दे सकते। इमरान खान साहब ने तो कह दिया कि भारत पकिस्तान को उसके खिलाफ सबूत दे लेकिन हमारे देश के नेता सिद्धू साहब ने तो कह दिया कि आतंकवाद का कोई देश नही होता।

बिना सोचे इन्होंने पाकिस्तान को क्लीन चीट दे दिया। सिर्फ राजनेता ही नही हमारे देश की जनता का एक खास वर्ग जो मोदी के विरोधी सनातनी से रहे है, उनसे तो ये तक सुनने को मिलेगा की इलेक्शन के कारण इन हमलों को मोदी ने प्रायोजित किया है। अब ऐसे तर्क का क्या करे साहब, क्या इसे देश के साथ गद्दारी कहे और अगर यह कह दे तो कही ऐसा न हो कि बोलने की आज़ादी खतरे में आ जाए। क्या हर घटना को राजनीति के चश्मे से देखना आवश्यक है? कब तक अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल देश के खिलाफ किया जाएगा।

किसी को मोदी से नफरत या मोदी से घृणा हो सकती है लेकिन कब ये नफरत देश से नफरत में बदल जाती है ये कहना मुश्किल है। यह वही मानसिकता है जो कभी सर्जिकल स्ट्राइक को फ़र्जीकल बना देती है तो कभी देश की सेना को रेपिस्ट कह डालती है। पाकिस्तान के विचारधारा को समर्थन करने वाले कहने को तो 1947 में ही हमसे अलग हो गए लेकिन आज की परिस्थितियों को देख कर लगता है कि कई सारे यही छूट गए। इन सब को देखकर कई दफा खून खौलता है लेकिन फिर दिल रोता है और पीड़ा होती है।

कब तक मोदी के विरोध की आड़ में देश का विरोध किया जाएगा? यह सवाल बहुत बड़ा हैं और उससे भी बड़ा शायद इसका उत्तर। समय आ गया है कि मोदी विरोधी और देश विरोधी में लक़ीर खिंचे।

Alok Choudhary: Columnist | Writes on Politics, Society, education | Nation first
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