‘द वायर’ के निशाने पे शौर्य दोवाल भले दिखें, पर असली निशाना कहीं और है

हाल ही में वेब पोर्टल ‘द वायर’ द्वारा प्रतिष्ठित थिंक-टैंक ‘इंडिया फ़ाउंडेशन’ के सम्बंध में छपी एक रिपोर्ट ने मीडिया के सम्बंध में यह छवि और पुख़्ता कर दी है कि आज का मीडिया ख़बरें कम और राजनैतिक निशानेबाज़ी में ज़्यादा संलिप्त है।

यह ख़बर मीडिया जगत में जाली-ख़बरों के लिए कुख्यात स्वाति चतुर्वेदी की तथाकथित ‘खोजी पत्रकारिता’ पर आधारित है, जिसमें ना तो कोई खोज हैं, ना ही पत्रकारिता, और ना ही पत्रकार। स्वाति चतुर्वेदी के माध्यम से इस वेब पोर्टल में ‘इंडिया फ़ाउंडेशन’ पर निशाना लगाते हुए यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि फ़ाउंडेशन और उसकी गतिविधियाँ दरअसल देसी-विदेशी कॉरपोरेट्स और सरकार के मंत्रियो को क़रीब लाने का बहाना भर है।

और ना सिर्फ़ इतना, बल्कि फ़ाउंडेशन के बहाने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पर उनके पुत्र शौर्य दोवाल के ज़रिए निशाना साधने की कोशिश की गयी हैं। दरअसल रिपोर्ट का शीर्षक ही फ़ाउंडेशन के बारे में नहीं बल्कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बेटे’ द्वारा चलायी जा रही संस्था के बारे में है।

परंतु रिपोर्ट पर एक सरसरी निगाह ही यह समझने के लिए काफ़ी हैं की इसमें ना तो कुछ भी तथ्य हैं और न ही शब्दों के मायाजाल में कोई करणीय संबंध।

यह कहना कि समकालीन भारत सरकार के कुछ मंत्री इंडिया फ़ाउंडेशन में निदेशक हैं और इसीलिए यह ग़लत है, तर्कहीन बात है। पहला की ये सदस्य सरकार बनाने से पहले से ही फ़ाउंडेशन में निदेशक पद पर आसीन थे और दूसरा सरकार का कोई भी क़ानून या आचरण सम्बंधी निर्देश उन्हें इस प्रकार के मानद निदेशक का पद स्वीकार करने से नहीं रोकता है। इनका फ़ाउंडेशन की दैनिक गतिविधियों से या वित्तीय कार्यों से कोई लेना देना नहीं होता है।

यहाँ ये याद दिलाना आवश्यक है कि सोनिया गांधी, पी चिदंबरम, मनमोहन सिंह इत्यादि यू॰पी॰ए॰ के कार्यकाल में अपने-अपने पद पर रहते हुए भी राजीव गांधी फ़ाउंडेशन में शामिल थे। वही राजीव गांधी फ़ाउंडेशन, जिसे ज़ाकिर नाइक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) ने यू॰पी॰ए॰ के कार्यकाल में 50 लाख का फ़ंड दिया था। वही ज़ाकिर नाइक जिस पर आतंकवाद को समर्थन और बढ़ावा देने का आरोप हैं और जिसके मलेशिया से प्रत्यर्पण की तैयारी राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है। वही इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन जो भारत में इस्लामिक स्टेट के लिए भर्ती करने वाले अबू अनस को भी फ़ंड करती थी और आज मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग के चलते अलकायदा जैसे संगठनों के साथ प्रतिबंधित सूची में है।

दूसरा यह कहना की सरकार के मंत्रियो का उद्योग-जगत, शिक्षा-जगत, सिविल-सॉसाययटी, लेखकों व अन्य लोगों से मिलना कोई संदिग्ध गतिविधि हैं अपने आप ही में हास्यपद हैं। सरकार और उसके मंत्री-अधिकारी हर क्षेत्र के लोगों से मिलते हैं और बातचीत करते हैं और उसके लिय उन्हें किसी फ़ाउंडेशन के प्लाट्फ़ोर्म की आवश्यकता नहीं है।

फ़ाउंडेशन द्वारा किए गए सम्मेलनों, परामर्शों की सारी सूचना सार्वजनिक हैं। उनके विडीओज़, वक्ताओं, प्रायोजकों सभी की जानकारी किसी से भी छुपी हुई नहीं हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट में आख़िर ‘न्यूज़’ क्या हैं यह पता करना मुश्किल है। हाँ ज़ाकिर नाइक और माओवादी तरीक़े की कन्स्पिरसी-थेओरीस बहुलता में हैं।

और रही बात शौर्य दोवाल और उनकी कम्पनी की, तो जब तक यह नहीं दर्शाया जाता की कोई ग़ैरक़ानूनी गतिविधि हुई है या फिर कोई लॉबीइंग हुई और उसके एवज़ में फ़ंड ट्रान्स्फ़र हुए हैं, सिर्फ़ यह कहना की किसी निदेशक की कोई वित्तीय कंपनी हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में डील करती हैं और इसीलिए कुछ ‘गड़बड़’ हैं सिर्फ़ व्यर्थ का प्रवाद हैं। शौर्य दोवाल फ़ाउंडेशन के अनेको निदेशको में से सिर्फ़ एक हैं, लेकिन रिपोर्ट में यह दर्शाने की क़ोशिश की गई हैं जैसे इंडिया फ़ाउंडेशन उनकी संस्था है।

दरअसल निशाना तो वो भी नहीं हैं, जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट हैं की निशाने पर तो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और सुरक्षा नीति हैं। मीडिया के कई लोगों ने लगातार दोक़लम मुद्दे पर फ़ेक न्यूज़ चलाई हैं और पूरे मुद्दे तो भारत की पराजय के रूप में दिखाने की कोशिश की है।

दोक़लम पर भारत सरकार, सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार द्वारा उठाए गए कठोर और अप्रत्याशित क़दम और कश्मीर में अलगाववादी और नक्सलियों पर कड़ी कार्रवाई ने ना सिर्फ़ चीन बल्कि भारत में भी ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारों का अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर समर्थन करने वालों को बड़ा सदमा पहुँचाया है। ऐसे में इस रिपोर्ट का असल उद्देश्य क्या हैं यह भी एक प्रश्नचिह्न है?

यह प्रश्न इसलिए भी उठता हैं क्यूँकि रिपोर्ट में रक्षा-क्षेत्र की अमेरिका और इजरायल की कम्पनीज़ को ख़ास तौर पर टार्गेट किया गया हैं। एक ऐसा पोर्टल जिसे सिद्धार्थ वरदराजन नाम का एक विदेशी नागरिक चलता हैं, जिसकी ख़ुद की फ़ंडिंग भी पारदर्शी नहीं हैं, और जो जाली न्यूज़ के लिया बदनाम हैं उसमें एक ऐसी ‘पत्रकार’ द्वारा, जिसे उसके अखबार ने जॉर्ज फर्नांडीस के फ़र्ज़ी इंटर्व्यू के लिए बर्खास्त कर दिया था, एक ऐसी रिपोर्ट छपवाना जिसे कोई भी ज़िम्मेद्दर और विश्वसनीय मीडिया हाउस ख़ारिज कर देगा एक गम्भीर मुद्दा है।

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