कुछ दिन तो गुजारिये गधराज में!

अकलेस भैया ने गुजरात के गधो का प्रचार कर रहे अमिताभ बच्चन पर जो टिप्पडी की है उससे कोई इंसान ही होगा जो सहमत नहीं होगा। दर-असल हिंदी साहित्य की मांद उत्तरप्रदेश से आने वाले हमारे प्यारे अकलेश भैया के यदि मनोभाव को समझना है तो आपको कृष्ण चन्दर द्वारा रचित “एक गधे की आत्मकथा” को पड़ना आवश्यक है।

जब से ये उपन्यास पढ़ा है तब से मैं हर गधे के अंदर छुपे इंसान और हर इंसान में छुपे गधे को पहचानने में परिपक़्व हो गया हूँ। इसलिए अखिलेश जी की “गुजरात के गधो का प्रचार बंद करने की” मार्मिक अपील सुन कर मुझे बाकी अंध भक्तो की तरह गुस्सा नहीं आया।

दरअसल भईया जी ने एक बहुत ही गंभीर विषय की ओंर इशारा किया है। उन्होंने एक ही “हैंचू” में वाइब्रेंट गुजरात के दावो की पूरी पोल खोल दी। मतलब मोदी के इतने वर्षो के कार्यकाल में गधे इतने कम रह गए की अब उन्हें बचाने के लिए अमिताभ जी को अभियान चलाना पढ़ रहा है। और दूसरी तरफ समाजवादी की सरकार है, जिनके कार्यकाल में क्या नहीं किया गया गधो के संरक्षण के लिए। नतीजा सामने है..गधो की गधमार हो गयी है उत्तर प्रदेश में। उन्हें किसी महानायक की आवश्यकता नहीं है ये बताने के लिए की भैया उत्तरप्रदेश में गधे हैं, क्योंकि बच्चा बच्चा जानता है की वहा कितने गधे है।

अमेठी रायबरेली और सैफई के गधे तो न केवल जगत विख्यात अपितु ऐतेहासिक भी हैं। दरअसल राजनीती की प्रयोगशाळा कहे जाने वाले उत्तरप्रदेश में गणतंत्र को गधातंत्र कैसे बनाया जाता है ये यूपी के नेताओ से अच्छा भला कौन बता सकता है।

यहाँ अभी तक गधो के लिए, गधो के द्वारा, गधो की ही सरकारे बनती आयी है।

इसलिए यहाँ के गधो को किसी अमिताभ बच्चन की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि यहाँ हर गधा अपने आप में अमिताभ बच्चन है जो व्हाइट हाउस में भी हैंचू-हैंचू करने की दम रखता है, विश्वास न हो तो अमर सिंह से मिल लो।

दरअसल यहाँ कई गधे आधुनिकता वादी भी है जिन्हें पता था की कंप्यूटर भले ही अमेठी के गधो की पीठ पे रख के लाया गया था पर संभवतः कुछ ठेकेदारो के निक्कमेपन के कारण उत्तर प्रदेश तक नहीं पहुचने दिया। अब ऐसे में कुछ अत्याधुनिक गधो को ही पता था की ये वर्षो पुराना काम सैफई के कुछ चुनिंदा गधे ही पूरा कर सकते है।

राजीव गाँधी सूचना प्रौद्योगिकी अभियान के अन्तर्गत आने वाले डेस्कटॉप की राह देख देख कर थक चुके लोगो को “सरकार बनवाओ अभियान” के अन्तर्गत लैपटॉप के सपने दिखाने शुरू कर दिए थे।

यूँ तो ये सपना कुछ जन्मजात गधो ने देखना शुरू किया था पर धन्य हो उनका नेतृत्व कौशल जो बाकी जनता ने भी जाती प्रजाति के भेद को भुला कर खुद गधा बनने में हिचक नहीं की।

दरअसल ये गधा बनने-बनाने का अभियान जो इंदिरा जी के समय से शुरू हुआ था वो अब अकलेस भैया के दौर और भी तीव्र गति से बढ़ने लगा। गांधीवादी गधावादी हो गए और लोहियाइट जो की पहले लोफराइट हुए फिर वो भी धीरे धीरे गधावादी ही हो लिए।

वैसे कुछ गधे तो सर्वजन हिताय की भावना को इतना अधिक आत्मसात कर गए की प्रजाति के भेद से ऊपर उठ कर हाथियों के ही स्मारक लगवाना शुरू कर दिए, हाँ पर उन हाथियों के साथ ये भी दिखाना नहीं भूले की इन्हें बनवाने वाले गधे कौन है। अब इतना परोपकार किया है हाथियों पे तो थोड़ा बहुत शो ऑफ तो बनता ही है।

दरअसल सदियो से पिछड़े समाज ने बमुश्किल केवल हाथी बनने का ही सपना जैसे तैसे देखा था पर वर्षो से सोया भाग्य भी ऐसा चमका की उन्हें गधा बनने का भी अवसर प्राप्त हो गया। अब वो खुद हाथी बनने की जगह केवल हाथी की मूर्तियां बना कर ही ज़्यादा खुश है। आखिर गधे बनने के इस दौर मै केवल जातीय पिछड़ेपन के आधार पे यदि कोई इस सुनहरे अवसर से वंचित रह जाए तो ये कहा का सामाजिक न्याय हुआ। सामाजिक समरसता का ये अद्भुत उद्धरण पूरे देश में अद्वितीय है।

वैसे गधो की इन उत्कृष्ट नस्लो को बचाने के लिए यहाँ भी जल्लीकटटू जैसे आयोजन होते रहते है। इन आयोजनों की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की रहती है और इसमें एक से बढ़ कर एक नस्ल के गधे मैदान मेँ उतरते है। गधो का इससे उज्जवल भविष्य और कहाँ होगा।

तो बच्चन साब माना की आप भी इसी राज्य से हो पर इस गधावादी अभियान से आप अछूते कैसे रह गए ये समझ नहीं आया। अमर सिंह को तो हम बहुत उत्कृष्ट गधा समझते थे पर आप उतने बड़े नहीं बन सके। अब तो आप को समझ आ ही गया होगा की उत्तरप्रदेश मेँ गधो के संरंक्षण के लिए अलग से वन अभ्यारण बनाने की ज़रूरत नहीं है, भई यहाँ तो गधे ही राज्य का संरक्षण करते आये है अभी तक।

और जो अंधभक्त बौखला रहे है अकलेश भैया के इस भाषण पे वो ये समझ ले की भईया जी ने कुछ गलत नहीं कहा है। क्योंकि यहाँ किसी महानायक की ज़रूरत नहीं पड़ती गधो को प्रसिद्ध करने के लिए, उल्टा उनको ज़रूरत पड़ती है गधो की, प्रसिद्ध होने के लिए।

यदि अब भी न समझ आया हो तो आइये.. कुछ दिन तो गुजारिये गधराज में

– इसी गधराज्य का एक भटका हुआ गधा

Pushpendra Singh Raghav: Satirist in infancy..
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