मोदी के चरखा छूते ही लोगों को गाँधी और खादी याद आने लगा

पांचवी क्लास में हिंदी के टीचर एक दिन किसान पर लेख लिखवा रहे थे। एक दो भारी भड़कम वाक्यों के बाद वो बोले, ‘किसान भगवान् का रूप होता है’, फिर रूककर सबसे पूछा, ‘क्या लिखे?’ पूरी क्लास ने गूंजते हुए बोला, ‘किसान भगवान् का रूप होता है’। इसके कुछ दिन बाद यूँ ही बात करते करते उन्होंने कभी ये भी कह दिया कि ग़रीब भगवान् का रूप होता है। स्कूल से लौटते समय रास्ते में मैंने कई बार सड़कों पर खड़े, फुटपाथों पर बैठे और गलियों में घूमते कई ग़रीबों को देख कर सोचा करता था कि क्या वाक़ई ये भगवान् के रूप हैं? मैं भगवान् की परिभाषा समझने की कोशिश ही कर रहा था कि एक दिन गांधी जयंती आ गयी। सुबह सुबह स्कूल के लड़के गांधी की तस्वीर के सामने आँख बंद करके प्रार्थना कर रहे थे। कोई लंबी आयु मांग रहा था, किसी को परीक्षा में अच्छे नंबर चाहिए थे, कोई थोड़ा सा आँख खोल के दूसरे बच्चों को देख कर हस रहा था, तो कोई टेबल पर पड़े लड्डू-समोसा को ताक रहा था। एक ताबड़तोड़ स्पीच हुई, गांधी के बलिदान पर खून में जोश दिल देने वाली बातें की गई, उनकी सादगी पर एक मुहाबरे बोले गए, उनकी मृत्यू की बात आते ही भाषण का स्वर रुआँसा हो गया। आज महात्मा गाँधी भगवान् थे।

अगर इतिहास पलट कर देखा जाए तो गाँधी का योगदान पहाड़ जैसा दिखेगा। गाँधी ने अपने जिद्द और प्रतिबद्धता (डेडिकेशन) से जो एकता देश में स्तापित की, वो शायद ही कोई और कर पाता। गाँधी के क्रांति का तरीका भी अलग होता था। उन्हें मालूम था कि टूकड़ों में बंटे देश में अगर लोगों को एकजुट करना है तो कुछ ऐसा पकड़ना होगा जो आम आबादी समझती हो, इसलिए उन्होंने अपनी क्रंति के लिए कभी नमक, कभी नील, और कभी सूती का चरखा उठाया। लेकिन कुछ निजी और कुछ वैचारिक कारणों से गाँधी से कई लोग काफी घृणा भी करते थे। गाँधी बेहद रोचक चरित्र हैं। बचपन से आज तक गाँधी को द्विचर (बाइनरी) में ही पढ़ा और सुना है। कभी गाँधी बहुत महान हो जाते हैं, कभी बहुत घृणित; कभी गाँधी आज़ादी के सबसे बड़े नेता बन जाते हैं, कभी गाँधी के कारण आज़ादी दो साल बिलंब हो जाती है; कभी निःस्वार्थ गाँधी त्याग के प्रतीक बन जाते हैं, तो कभी नेहरू के लिए पक्षपात करते हुए एक वृद्ध। गाँधी पर कितना भी तर्क-वितर्क, स्तुति-आलोचना, दाएं-बाएं हो जाए लेकिन एक बात तो तय है — देश के राजनीतिक और सामाजिक डीएनए में गाँधी का नाम हिलाना मुश्किल है। इसलिए मोदी से लेकर सीताराम यचुरी तक सभी गांधी के सामने सर झुकाते हैं।

गांधी के नाम से आज तक देश में सत्ता बनती और छिनती आई है। गांधी के ब्रांड वैल्यू का मूल्य सबको मालूम था, किसी ने टोपी अपना लिया, किसी ने पोस्टर चिपका लिया, किसी ने मूर्ती लगवा दिया और कुछ लोगों ने गांधी का उपनाम ही उठा लिया। विडम्बना ये है कि कई संगठनों और प्रचलनों में गाँधी का नाम जोड़कर लोग उसे भूल गए। ऐसा ही कुछ खादी के साथ भी हुआ। चरखा चलाते हुए गाँधी को खादी का लोगो बना दिया गया और खादी का गाँधी का पर्यायवाची बना दिया गया। समय के साथ खादी आम आदमी की आम ज़रूरतों से दूर ही होता गया। गाँधी ने भी नहीं सोचा होगा कि कुछ कुछ अवसरों पर याद आने वाली खादी एक दिन एरिस्टोक्रेसी और एलीटिस्म का सिंबल बन जायेगी।

मज़ेदार बात देखिये। इस साल खादी ग्रामोद्योग आयोग के कैलेंडर पर डिज़ाइनर खादी में मोदी की तस्वीर आयी है। आपने आज तक इस कैलेंडर का नाम नहीं सुना होगा, लेकिन इस साल ये कैलेंडर किंगफ़िशर और डब्बू रतलानी के कैलेंडर से ज्यादा चर्चे में है। लोगों का आरोप है कि मोदी ने गांधी की जगह कैसे ले सकते हैं। मैं तो मानता हूँ कि बिलकुल नहीं ले सकतें हैं। लेकिन गाँधी माने खादी या खादी माने गाँधी तो नहीं होता। क्या जहाँ जहाँ गाँधी का ब्रांड लग गया, वहां गाँधी की जगह किसी और को एम्बेसडर नहीं बनाया जा सकता? कुछ रिपोर्ट के अनुसार पिछले 2 साल में खादी की बिक्री में 34 % की वृद्धि हुई है जिससे लघु उद्योग और रोजगार में भी इज़ाफ़ा हुआ है। क्या हमें ये सब कुछ नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए? यदि खादी को बढ़ना है, तो उसे गाँधी के स्टीरियोटाइप से बाहर निकलना होगा, उसके लिए हमें ब्रांड एम्बेसडर और नयी स्ट्रेटेजी चाहिए

खादी से एक कदम पीछे आते हैं। क्या गाँधी को सामान्य मनुष्य की तरह देखकर राजनितिक चर्चाएं नहीं की जा सकती? गाँधी को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा मैस्कॉट बनाया गया। सड़क, मोहल्ला, हॉस्पिटल, स्कूल और यहाँ तक की करेंसी में भी गांधी को अपनाया गया। लेकिन वक़्त के साथ हमें पुराने के साथ-साथ नए नायक भी चाहिए। एक समय तक परम पवित्र माने जाने वाले गाँधी के कई विचार आज के समय में गलत माने जाते हैं। गाँधी के संयम और जाति पर रखे गए विचारों को आज के दिन यौन शोषण और रूढ़िवादिता से जोड़ा जाता है। समय के साथ नायक भी बदलते रहते हैं, तभी दुनिया आगे की ओर बढ़ पाती है। न्यूटन के भी कई शोध, जिसे एक समय परम सत्य माना जाता था, उसे आइंस्टीन ने गलत साबित कर दिया। गाँधी और गांधीगिरी के लिए भी ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ अच्छा उदाहरण क्या होगा। राजकुमार हिरानी के नए तरीके से पेश किये गए गांधीगिरी ने सालों से घिसे जा रहे नीरस गांधीगिरी से ज्यादा प्रभाव डाला। साथ ही साथ वो सन्देश आधुनिक और कूल भी था, जिसे नई पीढ़ी के युवाओं ने स्वीकार भी कर लिया।

गाँधी को भगवान् बनाना गाँधी के लिए उनकी सबसे बड़ी हार होगी।  गाँधी ने कहा था, “खादी वस्त्र नहीं, विचार है”। विचार की जगह शायद हम गांधी की मूर्ति-पूजन में जुड़ गए हैं।

Rahul Raj: Poet. Engineer. Story Teller. Social Media Observer. Started Bhak Sala on facebook
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