मै पत्थर हुँ, मुझे खुन पिने वाला मलेच्छ ना बनाओ

जब मुझे सनातनधर्मियों के हाथ स्पर्श करते हैँ तो मै देवता या देवी के रूप में ढलकर किसी मंदिर की आत्मा बन जाता हुँ और सम्पूर्ण विश्व के सनातनधर्मियों द्वारा पूजा जाता हुँ  या फिर खेल्-खिलौनो के रूप में ढलकर नन्हें मुन्नो की मुस्कान बन जाता हुँ।

सनातनधर्मी मुझे कलाकृतियों में ढाल देते हैँ  तो कंही श्यामपट का या स्वेतपट का रूप देकर विद्यालय में स्थापित करते हैँ और शिक्षा का एक अभिन्न माध्यम मुझे बना देते हैँ।

सनातनधर्मी मुझसे विशालतम, दिव्य, अद्भुत और अलौकिक मंदिर परिसरों का निर्माण करते हैँ, जिनकी वास्तुकला और अभियांत्रिकी को देख सम्पूर्ण विश्व आश्चर्य में पड़ जाता है।

मै एक पत्थर हुँ, जब जब मै सनातनधर्मियों के सम्पर्क में आता हुँ, मुझे स्वयं पर गर्व होता है। विशालतम भवन, विशालतम स्तम्भ और विशालतम परिसर के रूप में मुझे ढालकर ये सनातनी मुझे एक गौरवमय इतिहास का साक्षी बनाते हैँ।

विश्व के सबसे सुंदर, पवित्र और अद्भुत प्रेम की सच्ची कथा के काळजयी नायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने भी मुझसे हि अपने साध्य का मार्ग बनाया जो रामसेतु के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विख्यात है।

सनातनधर्मियों ने मुझसे हि पटरी और पेन्सिल की रचना की और आगे चलकर लेखनी का निर्माण किया। सनातनधर्मियों ने मेरे द्वारा हि अग्नि प्रज्वलित कर एक नई क्रांति की रचना की।

कृषि का आरम्भ भी सनातनियों ने मुझे हल के रूप में ढालकर किया। मुझसे हि गोलाकार पहिये का निर्माण किया। मै पत्थर हुँ। सनातनधर्मी सदैव मेरा सदुपयोग करते आये हैँ और आज भी कर रहे।

मै पत्थर हुँ, मेरे भाग्य का सितारा उस दिन डूब गया, जब अजीब से दिखने वालो की बुरी और भयानक दृष्टि मेरे ऊपर पड़ी। इन अजीब से दिखने वालो  ने सनातनियों द्वारा दिये गये मेरे पवित्र अस्तित्व को हि अपवित्र कर दिया। इन अजीब से दिखने वालो  ने मुझे एक घातक और जानलेवा हथियार के रूप में बदनाम कर दिया।

ये अजीब से दिखने वाले बचपन से हि मेरा उपयोग असमाजिक कार्यों के लिए करना शुरु कर देते हैँ, कभी मेरा उपयोग कर किसी मासूम गिरगिट को मारने के लिए करते हैँ तो कभी किसी कुत्ते या सुवर को मारने के लिए करते हैँ।

इनसे भी इन नामुरादों का पेट नहीं भरता है तो मेरा उपयोग इंसानो का खुन बहाने के लिए करते हैँ। अभी हाल हि में हुए दिल्ली, पेरिस, हरियाणा और मणिपुर में इन अजीब से दिखने वालो  ने मेरा जमकर दुरूपयोग किया। मुझे कंही भी मुंह दिखाने लायक़ नहीं  छोड़ा। आज मै अपने माथे पर लगे खुन के धब्बो को देख कर शर्मसार हो जाता हुँ।

आज मेरा सबसे ज्यादा उपयोग ये खूंखार पत्थरबाज हि कर रहे। पहले कश्मीर में मुझे हथियार बनाया गया पर भला हो भारत के प्रधानमंत्री का जो उन्होंने कश्मीर के पत्थरबाजों की नकेल कस दी, अब मेरी लुटी पिटी इज्जत वंहा तो वापस आ रही है, पर दिल्ली और हरियाणा में अब लुटी जा रही है।

अवसर कोई भी हो ये अजीब से दिखने वाले मुझे बदनाम करने से नहीं चूकते। अपने नापाक हाथों के स्पर्श से इन आतंकियों ने मुझे पूर्णतया अपवित्र कर दिया है।

क्या मेरा सम्मान बच नही पायेगा? क्या दुनिया में मेरी इज्जत ऐसे हि इन अजीब से दिखने वालो  के द्वारा लूटी जाती रहेगी। मेरा या सम्पूर्ण पत्थर प्रजाती का क्या अपराध है, जो इन अजीब से दिखने वालो  के नापाक इरादों के सहयोगी बन जाते हैँ।

अरे हमारे गौरवमय इतिहास के पैर की धूल भी नहि हैँ  ये अजीब से दिखने वालो ।हम पर लिखे शिलालेखों से विश्व की बड़ी से बड़ी और प्राचीन से प्राचीन मानव सभ्यताओं के विषय में जानकारी मिलती है। पुरातत्व विभाग पूर्णतया हमारे इतिहास पर निर्भर करता है। आज कार्बन डेटिंग वाले विज्ञान के सबसे चहेते पक्ष हम हि हैँ। पर ये झुण्ड में रहने वाले दो पावों वाले आतंकी जीव क्या जानें। इन्हें तो प्रत्येक ज्ञानवर्धक वस्तु से घृणा जो रहती है।

आज इन अजीब से दिखने वालो  ने हम पत्थरों को भी हत्यारा बना दिया है। कल तक छोटे छोटे बच्चे हमसे हि कुछ ना कुछ बनाया या बिगाड़ा करते थे, कुछ ना कुछ खेला करते थे परन्तु आज ये हमें हाथ लगाने से भी डरते हैँ। आज हमारी स्थिति खून बहाने वाले सबसे आसान और मुफ्त हथियार के रूप में ढल चुकी है।

इन दैत्य आतंकियों ने हमें भी आतंकी बना डाला है।

आखिर मानव सभ्यता में ऐसी बर्बर और खूनी प्रजाती कब और कैसे पैदा हो गयी। मानवो ने इसे अपने मध्य पनपने कैसे दिया। मै पत्थर हुँ और मेरे सभ्यता में ऐसी बर्बर और खूनी पत्थरों की प्रजाती आपको ढूढ़ने से भी नहीं मिलेगी।

और तो और ये अजीब से दिखने वाले पत्थरो का उपयोग छी मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है, अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए भी करते हैँ। असल में हम पत्थर हि बदकिस्मत हैँ जो इन अजीब से दिखने वालो  के हाथ आसानी से लग जाते हैँ।

मेरी तो रूह काँप जाती है, जब ये किसी औरत को पत्थरों से मार मार के मार डालने का कार्य करते हैँ। कैसे लोग हैँ ये, किस प्रकार इतनी बर्बरता और हैवानियत से अपने मनसूबों को अंजाम देते हैँ। निश्चय हि ये आम इंसान नहीं अपितु दैत्य या राक्षस हैँ।

कई बार मैने सोचा की मै अदालत की शरण में  जावू,  पर जो अदालतें स्व गिरिजा टिक्कू (जिनको सामूहिक बलात्कार करने के पश्चात जिंदा आरे से काट दिया गया) को न्याय देना तो दूर की बात, उसकी आवाज सुनने को तैयार नहीं है, वो भला हम पत्थरों को क्या न्याय दिलाएंगी।

और गजब हो सनातनीयों तुम भी जो ऐसे भेदभाव करने वाली अदालतों पर भरोसा करते हो। 

विश्वाश मानों कई बार मैनें सोचा कि पुलिस के पास जाकर FIR लिखवाऊँ,  पर इन पत्थरबाजों के सामने पुलिस की अपनी स्थिति इतनी डावाडोल होती है कि वो अपनी जान भी नहीं बचा पाते तो मेरी फरियाद क्या सुनेंगे।

मै पत्थर हुँ,  मै इस खूंखार, बर्बर और खूनी मानव प्रजाति के ना तो मुंह लगना चाहता हुँ और ना उनके हाथ लगना चाहता हुँ  और ये तभी संभव है, जब सनातनी अपने धर्म पर आ चुके संकट को पहचानेगें और उसे भविष्य के लिए सुरक्षित रखने हेतु सख्त से सख्त सभी आवश्यक कदम उठाएंगे। मै पत्थर हुँ,  और खुले आम ये कहता हुँ,  यदि सनातनी समय रहते नहीं चेते, तो इस धरा पर उनके लिए एक इंच भूमि भी नहीं बचेगी।

आज आवश्यक है कि हर घर से बच्चे छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, भगवान बिरसा मुंडा, रानी लक्ष्मी बाई, रानी दुर्गावती और शुभाष चंद्र बोस जैसे महानायकों और महान विरंगनाओं से शिक्षा ग्रहण करें, स्व श्री लाल बहादुर शास्त्री, स्व श्री बाळासाहेब ठाकरे, स्व श्री केशव ब हेडेगेवार, स्व श्री राम प्रसाद बिस्मिल और स्व श्री भगत सिंह के अचारों और व्यवहारों को समझे और उसे अमल में लाये।

मै पत्थर हुँ, मै अपना अस्तित्व इन खूंखार अजीब से दिखने वालो से बचाने के लिए संघर्ष कर रहा हुँ, पर ये सनातनी ना जाने किस मुगालते में जी रहे हैँ। मुझे डर है कि अपने समाज, अपने धर्म और अपने लोगों के प्रति इनकी बेरुखी निश्चय हि इनके पतन का कारण बनेगी। 

ये भूल गये “धर्मों रक्षति रक्षित:”, ये भूल गये “यतो धर्मस्य ततो विजय:” और ये भी भूल गये “अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तथैव च”! अरे ज्ञानियों ये छोटी सी बात भेजे में घुसती क्यो नहीं, कोई तुम्हारा साथ नहीं देने वाला, तुम्हें अपनी और अपने धर्म की रक्षा स्वयं करनी है। ये अदालते, ये पुलिस और ये सरकार उस समय तुम्हारे साथ नहीं होंगे जब वो खूंखार दानव तुम्हारा रक्त पिने हेतु तुम पर योजनाबद्ध तरिके से टूट पड़ेंगे। 

आऐंगे ये सभी लोग आएंगे पर तुम्हें बचाने नहीं अपितु तुम्हारी सड़ी गली लाशों पर संविधान के अनुसार घड़ियाळी आँसू बहाने।

मै तो पत्थर हुँ, आज नहीं कल मलेच्छो से छुटकारा पा जावूंगा पर तुम्हारा क्या होगा? वो कहते हैँ ना 

“अपनी तो जैसे तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे, कट जाएगी, आपका क्या होगा जनाबे आली, आपका क्या होगा?

जय हिंद

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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