अनपढ़ कौन: प्रधानमंत्री या दिल्ली के मुख्यमंत्री?

मित्रों आपने यादी ध्यान दिया होगा तो अबकारी (शराब) मंत्री श्री मनीष सिसोदिया के तुरूंगवासित होते हि, (वर्ष २०१६ के पश्चात )श्री अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी को “अनपढ़” कहना और उनकी डिग्रियों (BA/MA) को मांगना शुरु कर दिया है। जिज्ञासा यंहा ये उत्पन्न होती है कि आखिर वो ऐसा कर क्यों रहे हैँ? इसके पीछे का असली उद्देश्य क्या है?

आइये इसकी पृष्ठभूमि पर एक दृष्टि डालते है।

मित्रों हमारे प्रधानमंत्री को अपमानित करने के लिए विपक्ष के नेता भिन्न भिन्न प्रकार के आरोप लगाते रहते हैँ और यही नहीं अनेक अपमानित करने वाले उपमाओ से सम्बोधित करते रहते हैँ, उसी प्रक्रिया से जुड़ा है यह प्रधानमंत्री को अनपढ़ साबित करने वाली कारगुजारी।

आपको बताते चले की ९ मई २०१६ को गुजरात यूनिवर्सिटी ने अपनी वेबसाइट पर प्रधानमंत्री जी के डिग्रियों को अपलोड कर दिया था, अत: इंटरनेट की सामान्य जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी आसानी से गुजरात यूनिवर्सिटी के वेबसाइट पर जाकर उन डिग्रियों को प्राप्त कर सकता है।

आपको यह भी विदित होगा कि, श्री अरविन्द केजरीवाल हमारे प्रधानमंत्री जी के विरुद्ध वाराणसी संसदीय सिट के लिए चुनाव भी लड़ चुके हैँ, अत: चुनाव आयुक्त के समक्ष प्रधानमंत्री द्वारा प्रेषित किये गये शपथ पत्र में भी उनकी डिग्रियों और शिक्षा दीक्षा के संदर्भ में उचित उल्लेख हुआ है, इस तथ्य से भी श्री अरविन्द केजरीवाल जी भली भांति परिचित थे। इन सब के बावजूद भी श्री अरविंद केजरीवाल जी ने जानबूझकर इस कारगुजारी को जन्म दिया।

अरविन्द केजरीवाल ने गुजरात यनिवर्सिटी में सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत एक अर्जी प्रेषित कर प्रधानमंत्री जी के डिग्रियों की मांग की थी। गुजरात यूनिवर्सिटी के भारसाधक अधिकारियों ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत डिग्री की प्रतिलिपि देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मांगी गयी सूचना “सूचना के अधिकार” के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली “सूचना” के दायरे में नहीं आती।

अब श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने गुजरात यूनिवर्सिटी के इस उत्तर को चुनौती दे दी, जिस पर मुख्य सूचना अधिकारी (CIC) ने गुजरात यूनिवर्सिटी को आदेश दिया कि आप डिग्री की प्रतिलिपि केजरीवाल को प्रदान करे।

अब गुजरात यूनिवर्सिटी के समक्ष ये समस्या थी की यदि एक बार उन्होंने किसी विद्यार्थी के डिग्री को सूचना के अधिकार के अंतर्गत किसी अन्य व्यक्ति को दे दिया तो फिर यह एक प्रकार से अन्य लोगो के लिए भी मार्ग प्रसस्त करने जैसा होगा और फिर लोग अकारण भी एक दूसरे की डिग्रियां मांगना शुरु कर देंगे और ऐसे में सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्रेषित किये जाने वाले अर्जियों की बाढ़ सी आ जाएगी। गुजरात यूनिवर्सिटी का यह तर्क भी विधि के अनुसार था की जब गुजरात यूनिवर्सिटी के वेबसाइट पर डिग्री अपलोड कर दी गयी है तो, जिसको आवश्यकता है, वो वंहा से प्राप्त कर सकता है।

मामला तूल पकड़ने लगा तो, दिनांक १० मई २०१६ को स्व श्री अरुण जेटली जी श्री अमित शाह जी के साथ जनता के सामने आये और उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स करते हुए आदरणीय प्रधानमंत्री जी के डिग्रियों को ना केवल श्री अरविन्द केजरीवाल जी के लिए अपितु सम्पूर्ण विपक्ष के लिए सामने लेकर आये और सबको बताया।

इन सभी परिस्थितियों से अवगत होने के पश्चात भी हमारे पढ़े लिखे और कटटर ईमानदार श्री अरविन्द केजरीवाल जी गुजरात उच्च न्यायालय में एक याचिका प्रेषित कर माननीय न्यायालय से प्रार्थना करते हैँ कि वो गुजरात यूनिवर्सिटी को आदेश दे कि वो प्रधानमंत्री की डिग्री सत्यापित प्रतिलिपि उन्हें सौपे।

मित्रों गुजरात उच्च न्यायालय ने ना केवल श्री अरविन्द केजरीवाल जी की याचिका को ख़ारिज कर दिया अपितु उन पर न्यायालय का विशेष समय नष्ट करने हेतु रुपये २५ ०००/- का जुर्माना भी लगा दिया, जो निम्न बिन्दुओ पर आधारित था:-
१:- जब प्रधानमंत्री जी की डिग्री गुजरात यूनिवर्सिटी के वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी गयी है।
२:- जब उक्त तथ्य की सूचना श्री अरविन्द केजरीवाल जी भलीभांति है।
(इसके अतिरिक्त अन्य तथ्य आपको न्यायालय के द्वारा पारित निर्णय (Judgement) में आपको पढ़ने को मिल जाएंगे।)

तो फिर अरविन्द केजरीवाल जी ने जानबूझकर निर्र्थक याचिका दायर कर प्रक्रिया का दुरूपयोग किया है।अब इससे सिद्ध क्या होता है:-
१:- अरविन्द केजरीवाल जी को इंटरनेट की जानकारी नहीं है;
२:- अरविन्द केजरीवाल जी को गुजरात यूनिवर्सिटी के वेबसाइट पर जाकर डिग्री खोजना नहीं आता;
३:- अरविन्द केजरीवाल जी को गुजरात यूनिवर्सिटी के वेबसाइट पर भरोसा नहीं है;
४:- अरविन्द केजरीवाल जी को चुनाव आयुक्त को समय समय पर सौपे गये प्रधानमंत्री जी के शपथ पत्र पर भरोसा नहीं है;
५:- अरविन्द केजरीवाल जी कोई भी कार्य या परिश्रम करना नहीं चाहते;
६:- अरविन्द केजरीवाल जी प्रधामंत्री जी के डिग्री को केवल एक राजनितिक मुद्दे के रूप में उपयोग करना चाहते हैँ।

प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्
समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम्।
भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये
न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्॥
भर्तृहरि नीति शतक-श्लोक ४|

अर्थात:-अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला तरह अपने गले में पहन सकते हैं; लेकिन एक मुर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।

अब आइये तनिक एक दृष्टि AAP के विधायकों के डिग्रियों के ऊपर भी डाल कर देखते हैं, कि इनके विधायक और मंत्री कितने पढ़े लिखे हैं?
श्री मनीष सिसोदिया :- १८ विभागों को सम्हालने वालने ये मंत्री जी “पत्रकारिता में डिप्लोमाधारी” हैं, अर्थात इनके पास डिग्री है या नहीं बस ये ही बता सकते हैं।
श्री भगवंत मान :- पंजाब के मुख्यमंत्री बीकॉम (प्रथम वर्ष ) तक की पढ़ाई किये हैं;
इनके २ विधायक :- ८वी पास हैं ; इनके ७ विधायक :- १०वी पास हैं तथा इनके १३ विधायक:- १२वी पास हैं और तो और श्री अरविन्द केजरीवाल जी जिनको अपना गुरु मानते हैं वो श्री अन्ना हजारे जी तो केवल ७वीं पास हैं।

असली कारण ये हो सकता है:-
अब मित्रों आपको अवगत कराते हैँ, असली उद्देश्य से अर्थात श्री अरविन्द केजरीवाल जैसे पढ़े लिखे व्यक्ति का उद्देश्य डिग्री की आड़ में है क्या?

जैसा की आपको विदित है, कि श्री अरविन्द केजरीवाल जी के सबसे विश्वसनीय (शराब मंत्री) मनीष सिसोदिया जी पर विपक्षी नेताओं की जासूसी कराने के संदर्भ मे CBI ने एक केस पंजीकृत कर लिया है और आगे की कार्यवाही भी प्रारम्भ कर दी है।

अत: मित्रों, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर नेताओं की जासूसी कराने के आरोप हैं। आरोप के मुताबिक केजरीवाल सरकार ने विजिलेंस डिपार्टमेंट में अवैध तरिके से बनाए गए ‘फीडबैक यूनिट’ से नेताओं की जासूसी कराई। हालांकि इस ‘फीडबैक यूनिट’ को बनाने का उद्देश्य जनता को यह बताया गया था की, इससे वो सरकार के कामकाज से जनता को कितनी संतुष्टि है, इसका पता लगाया जायेगा, परन्तु ज्ञात स्त्रोतो और मीडिया में छपे सूचनाओं के माध्यम से ज्ञात हुआ कि इस ‘फीडबैक यूनिट’ की आड़ में नेताओं की जासूसी कराई जा रही थी।

जनसत्ता मीडिया के वेब पोर्टल पर दिंनाक १० फरवरी २०२३ को छपे लेख के अनुसार इस सीक्रेट ऑपरेशन में खर्च होने वाले पैसे के भुगतान के लिए ‘सीक्रेट सर्विस फंड’ बनाया गया था। वहीं इस फंड को रखने के लिए एक ऐसी तिजोरी का इस्तेमाल हुआ जोकि दो चाबियों को एक साथ घुमाने पर खुलता था।

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस तरह के डिटेल २०१६ में फीडबैक यूनिट (FBU) से जुड़े एक अधिकारी द्वारा लिखे गए एक पत्र में मिलता है। इस यूनिट को २०१५ में सत्ता में आने के बाद कथित तौर पर AAP सरकार द्वारा गठित किया गया था। मालूम हो कि सीक्रेट ऑपरेशंस के लिए नकद में पेमेंट किया जाता था और इसकी डिटेल एक रजिस्टर में रखी जाती थी। इसमें ‘S’ के आगे नंबर लिखा जाता था।

मित्रो CBI को पुख्ता जानकारी और साक्ष्य इस ” फीडबैक यूनिट (FBU)” में कार्य करने वाले अधिकारियों ने हि उपलब्ध कराये हैँ, अत: शक या संदेह का प्रश्न हि नही उठता।

अब समस्या ये है,कि चुंकि श्री अरविन्द केजरीवाल जी ने बड़े हि चतुराई से किसी भी विभाग को अपने हाथों में नहीं लिया, अत: किसी भी भ्र्ष्टाचार में सीधे तौर पर इनकी संलिप्त्तता को दर्शाना मुश्किल हो सकता है, परन्तु जासूसी कांड और शराब घोटाला में इनके पकड़े जाने की पुरी संभावना बन रही है और बस इसीलिए इन्होने एक बार पुन: प्रधानमंत्री को टारगेट करना शुरु कर दिया है, ताकि यदि इनकी गिरफ्तारी हो तो, वो जनता के सामने घड़ियाली आंसू बहाकर प्रधानमंत्री पर यह आरोप लगा सके कि, “चुंकि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के डिग्री पर सवाल उठाया था, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया है।” मित्रों इसे आम बोलचाल की भाषा में धूर्तता कहते हैं। यही धूर्तता यंहा पे इतने बड़े नेता के द्वारा की जा रही है।

लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयत्
पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः।
कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादयेत्
न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्॥
भर्तृहरि नीति शतक-श्लोक ५।
अर्थात:-अथक प्रयास करने पर रेत से भी तेल निकला जा सकता है तथा मृग मरीचिका से भी जल ग्रहण किया जा सकता हैं। यहाँ तक की हम सींघ वाले खरगोशों को भी दुनिया में विचरण करते देख सकते है; लेकिन एक पूर्वाग्रही मुर्ख को सही बात का बोध कराना असंभव है।

धन्य है श्री अरविन्द केजरीवाल, निश्चय हि धन्य है। आज राहुल गांधी हो या तेजस्वी यादव हो या फिर के कविता हो या अन्य विपक्षी नेतागण जो किसी ना किसी कुकर्म के कारण या तो CBI, या ED या फिर अन्य सरकारी एजेंसियो की कार्यवाही का सामना कर रहे हैँ, सबके सब एक हि सुर अलाप रहे हैँ, “राजीनीतिक विद्वेष के कारण उनके ऊपर कार्यवाही की जा रही है, लोकतंत्र खतरे में है और संविधान को बचाना है।”

मित्रों अब तो हालात ऐसे हो गये हैँ कि, आपके घर से पचास पचास कोस की दूरी पर, जब रात में “लोकतंत्र खतरे में है, संविधान बचाओ” का शोर सुनाई देता है, तो आप समझ जाते हैँ कि फिर कोई भ्र्ष्टाचारी पकड़ा गया है।

लेखन और संकलन:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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