मनुस्मृति में नारी का स्थान: सनातन धर्मी का एक वामपंथी से शास्त्रार्थ

मित्रों जैसा कि आप अब तक हमारे वामपंथी मित्र को जान चुके होंगे, जो कि जन्म से तो सनातन धर्मी है, परन्तु कर्म से वामपंथी हैं। उन्हें एक बार पुन: सनातन धर्म में बुराई दिखाने कि महत्वकान्छा और उनकी प्रवृत्ति ने विवश कर दिया और वो बड़े हि वेग से मेरे पास आए और आते हि कुशलक्षेम पूछने और जानने की औपचारिकता को परे रखते हुए प्रश्न किया “तुम सनातन धर्मी नारियो का सम्मान नहीं करते और तुम्हारी जो मनुस्मृति है वो सच में जलाने लायक ही है।

मैंने पूछा मित्र नारियो के संबंध में तुमने ऐसा क्या मनुस्मृति में पढ़ लिया, जो तुम्हें इतना बुरा लगा। व्वामपंथी मित्र ने उत्तर देते हुए कहा कि मित्र तुम्हारी मनुस्मृति संस्कृत में है इसलिए मैं नहीं पढ़ पाया परन्तु जिन्होंने पढ़ा है, उन्होंने बताया है कि इसमें नारी को दोयम दर्जे का बताया गया है।

मैंने पुन: पूछा कि मित्र जिन्होंने तुम्हें बताया है, क्या वे भी “लाल सलाम” वाले हैं तो वामपंथी मित्र ने कहा हाँ। मैंने पुन: पूछा कि क्या वे संस्कृत जानते हैं तो मित्र ने तपाक से कहा कि नहीं वो भी संस्कृत नहीं जानते पर वो ब्रिटेन से पढ़ कर आए हैं और अंग्रेजी बहुत अच्छी प्रकार से जानते हैं। मै वामपंथी मित्र कि मूर्खता और अज्ञानता पर जोर से हँसा फिर उनकी प्रकृति को ध्यान में रख उन्हें मनुस्मृति में नारियो के संदर्भ में दिए गए ज्ञान में से कुछ ज्ञान से अवगत कराया जो निम्न प्रकार से है:

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५५

पितृभिर्भ्रातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा । पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणं ईप्सुभिः।।

बहु कल्याण के इच्छुक पिता, भाई, पति और देवर भूपण (गहने) और वस्त्रों से स्त्री की पूजा करें अर्थात् स्त्री को सन्तुष्ट करें। इसे और खुले रूप में हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि पिता, भ्राता, पति और देवर को योग्य है कि अपनी कन्या, बहन, स्त्री और भौजाई आदि स्त्रियों की सदा पूजा करें अर्थात् यथायोग्य मधुरभाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रक्खें जिन को कल्याण की इच्छा हो वे स्त्रियों को क्लेश कभी न देवें । इस प्रकार इस श्लोक से मनुस्मृति “स्त्री” अर्थात “नारी” के संतुष्टि या प्रसन्नता को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है। वो पुरुष को सावधान करते हुए कहती है कि यदि बहुधा प्रकार के कल्याण कि कामना करते हो तो अपनी कन्या, बहन, स्त्री (पत्नी) और भौजाई (बड़े भाई की पत्नी) को यथायोग्य मधुरभाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रक्खें उनसे किसी प्रकार का क्लेश ना करें।

मैंने पूछा वामपंथी से कि उक्त श्लोक तो किसी आसमानी किताब का नहीं अपितु मनुस्मृति का हि है फिर तुम्हारा आरोप तो मिथ्या अपवन्चना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। मेरे जनम से सनातन धर्मी पर कर्म से वामपंथी मित्र चिढते हुए ढिठाई से बोले तो क्या एक दो श्लोक से मनुस्मृति थोड़े अच्छी हो जाएगी।

मैंने पुन: पवित्र मनुस्मृति से एक तथ्य और उसके समक्ष रखा जो इस प्रकार है:- मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५६

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

हे वामपंथी सुनो:-जिस कुल में स्त्रियों की पूजा होती है उस कुल में देवता रमते (विहार करते) हैं। और जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ सब क्रियायें निष्फल होती हैं। अब इसे और  सरल शब्दों में जानो: जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात् सत्कार होता है उस कुल में दिव्य गुण – दिव्य भोग और उत्तम सन्तान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा अर्थात उनके सुख और संतुष्टि पर ध्यान ना देकर उनके साथ क्लेश किया जाता हो, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५७

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् । न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।।

जिस कुल में स्त्रियों को कष्ट होता है वह कुल शीघ्र ही नाश हो जाता है। और जहाँ नारियों को सुख होता है वह कुल सदैव फलता फूलता है। दूसरे शब्दों में  जिस कुल में स्त्रियां अपने – अपने पुरूषों के अधार्मिक कार्यों अर्थात वेश्यागमन, अत्याचार वा व्यभिचार आदि दोषों से शोकातुर रहती हैं वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल में स्त्रीजन पुरूषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।

मैंने अपने जन्म से सनातन धर्मी पर कर्म से वामपंथी मित्र को एक और श्लोक मनुस्मृति में दिखलाया और उसका अर्थ बताया जो कुछ इस प्रकार है:

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५८

जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः । तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः ।।

मैंने अर्थ बताते हुए कहा हे मित्र “जिन कुल और घरों में अपूजित अर्थात् सत्कार को न प्राप्त होकर स्त्रीलोग  गृहस्थों को शाप देती हैं वे कुल तथा गृहस्थ जैसे विष देकर बहुतों को एक बार नाश कर देवें वैसे चारों ओर से नष्ट – भ्रष्ट हो जाते हैं। अर्थात मित्र जिस भी कुल में स्त्रियों को उचित सम्मान संतुष्टि और सुख प्राप्त नहीं होता तो उनके द्वारा दिए गए शाप् से उस कुल का सर्वनाश हो जाता है।

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ५९

तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः । भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्करेषूत्सवेषु च ।।

इस हेतु धनेच्छुक मनुष्यों को चाहिये कि वह अपनी स्त्रियों को आवश्यकता से सन्तुष्ट रक्खें जिससे वे उत्तम सन्तान सुप्रसव करें।इस कारण ऐश्वर्य की इच्छा करने वाले पुरूषों को योग्य है कि इन स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में भूषण, वस्त्र, खान – पान आदि से सदा पूजा अर्थात् सत्कारयुक्त प्रसन्न रखें।

मनुस्मृति अध्याय ३ श्लोक ६२

स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद्रोचते कुलम्। तस्यां त्वरोचमानायां सर्वं एव न रोचते।।

स्त्री के प्रसन्न रहने से सब कुल प्रसन्न रहता है और स्त्री के अप्रसन्न रहने से सब कुल अप्रसन्न रहता है।

उपरोक्त श्लोको से मैंने अपने वामपंथी मित्र कि मिथ्या अवधारणा को चकनाचुर कर दिया और फिर पूछा कि हे वामपंथी मित्र मनुस्मृति के उपरोक्त श्लोक जिस प्रकार स्त्री अर्थात नारी को सम्मान देने कि प्रेरणा देते हैं, क्या कोई और किताब ऐसा कहती है, जिसे तुम मानते हो या तुम्हारे वो मित्र मानते हैं जो ब्रिटेन से अंग्रेजी सिख आये हैं। वामपंथी मित्र तो एक बार पुन: निरुत्तर हो चुके थे अत: मैंने सनातन धर्म में नारियो को दिए गए उच्चतम स्थान को दर्शाता एक और श्लोक सुनाकर उसका अर्थ समझाया जो इस प्रकार है:-

नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।

अर्थात माँ के समान कोई छाया नहीं, माँ के समान कोई सहारा नहीं। माँ के समान कोई रक्षक नहीं है और माँ के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं है और हे वामपंथी मित्र माँ बनने का सौभाग्य तो परमेश्वर ने केवल नारी को हि दिया है।

मैंने पुन: कहा हे मित्र “नारी अस्य समाजस्य कुशलवास्तुकारा अस्ति।” अर्थात नारियां समाज की आदर्श शिल्पकार होती हैं और यही सोच, समझ और विश्वास तो मनुस्मृति मनुष्य समाज में उत्पन्न करती है, फिर आप लोग इसे अपमानित क्यों करते हैं। और हे वामपंथी तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि जो अंग्रेजी भाषा का जानकार है वहीं सब कुछ जानता है या वहीं विद्वान् है। मित्र ये तो हीन भावना का परिचायक है। अंग्रेजी तो ब्रिटेन के भिखारी और अनपढ़ भी बोलते हैं इसका अर्थ ये तो नहीं कि वे भिखारी और अनपढ़ होते हुए भी चुंकि अंग्रेजी जानते हैं तो श्रेष्ठ है और विद्वान है।

मैंने पुन: कहा हे वामपंथी तनिक सोचो क्या  साहित्य विषय से स्नातक उपाधि अर्जित करने वाला व्यक्ति विज्ञान के अंतर्गत किसी संज्ञा जैसे Gravity को समझा सकता है नहीं ना क्योंकि साहित्य में Gravity का अर्थ कुछ और है और विज्ञान में कुछ और। इसी प्रकार क्या साईकिल चलाने वाला व्यक्ति विमान उडा सकता है, नहीं ना, उसे विमान उडाने के लिए प्रशिक्षण लेकर प्रशिक्षित पायलट तो बनना पड़ेगा ना। मेरे मित्र ठीक उसी प्रकार अंग्रेजो के देश से अंग्रेजी सीखकर आया कोई व्यक्ति भला संस्कृत कैसे जान सकता है, उसे संस्कृत में लिखी गई पुस्तकों को समझने के लिए “संस्कृत” भाषा तो सीखनी पड़ेगी।

मेरे दिए गए उदाहरण से संतुष्ट होकर भी असंतुष्ट होने का भाव प्रकट करते हुए मेरे जन्म से सनातन धर्मी पर कर्म से वामपंथी मित्र अपने शीश को झटका देते हुए पराजित भावभंगिमा के साथ वंहा से चलें गए। और मैं वामपन्थियों की कुटिलता और सनातन धर्म से वैमनस्यता को इसी प्रकार उत्तर देने का संकल्प लेकर अपने कार्यों में व्यस्त हो गया।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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