क्या LIVE -IN रिलेशनशिप में “विवाह की प्रकृति”जैसे सम्बन्ध होते हैं? भाग-३

मित्रों इस अंक में हम LIVE -IN रिलेशनशिप के दायरे में आने वाले कुछ अन्य मुद्दों को स्पर्श करने का प्रयास करेंगे, जैसे कि क्या लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, २००५ के तहत सुरक्षा प्रदान की जा सकती है तथा यदि इस रिलेशनशिप से कोई बच्चा पैदा हो जाये तो उसकी स्थिति क्या होगी, इत्यादि।

अजय भारद्वाज बनाम ज्योत्सना मामले में पंजाब उच्च न्यायालय के वर्ष २०१६ में पारित किये गए आदेश के अनुसार, महिलाएं लिव-इन रिलेशनशिप में गुजारा भत्ते के लिए भी पात्र हैं।

मालिमथ समिति की रिपोर्ट ने ‘पत्नी’ शब्द की परिभाषा को एक ऐसी महिला को शामिल करने के लिए बढ़ा दिया है, जो काफी समय तक अपनी पत्नी की तरह एक पुरुष के साथ रही है और इस तरह कानूनी रूप से भरण-पोषण का दावा करने की पात्र है।

लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे।

जून २०२२  में, कट्टुकंडी एडाथिल कृष्णन और अन्य बनाम कट्टुकंडी एडाथिल वलसन और अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लिव-इन रिलेशनशिप में पार्टनर से पैदा हुए बच्चों को वैध माना जा सकता है। यह एक तरह से सशर्त है कि रिश्ते को दीर्घकालिक होना चाहिए न कि ‘वॉक इन, वॉक आउट’ प्रकृति का। इस  फैसले में कहा गया है, “पुरुष और महिला के बीच लंबे समय तक साथ रहने से उनके बीच शादी का अनुमान लगाया जाएगा और ऐसे रिश्ते में पैदा होने वाले बच्चों को वैध संतान माना जाता है।” यह ऐसे बच्चों को भी संपत्ति का अधिकार देता है। यदि एक पुरुष और महिला सहमति से लंबे समय तक सहवास करते हैं और उनके बच्चे को पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला सुनाया है कि ऐसे बच्चे पारिवारिक उत्तराधिकार का हिस्सा बनने के योग्य हैं। 

“सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवैध विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ बच्चा एक वैध बच्चा है। इसके अलावा, वे अपनी पैतृक संपत्तियों पर सहदायिकी अधिकारों के भी हकदार हैं।”

कोपार्सनरी अधिकारों की अवधारणा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत ‘मिताक्षरा’ नामक कानूनी ग्रंथ से उत्पन्न हुई है, जबकि इसी अधिनियम के तहत अन्य मौजूदा ग्रंथ ‘दयाभाग’ है। पैतृक संपत्तियों के उत्तराधिकार की प्रकृति के संदर्भ में ये दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं।

आपको बताते चले कि  “हिंदू उत्तराधिकार कानून दो स्कूलों में विभाजित हैं- मिताक्षरा और दयाभाग। दयाभाग बंगाल और असम के हिंदुओं पर लागू होता है जबकि मिताक्षरा में शेष भारत शामिल है। कोपार्सनरी अधिकार की अवधारणा मिताक्षरा स्कूल से आती है जहां जन्म से ही बच्चा पिता के जीवनकाल में भी पैतृक संपत्ति पर स्वत: स्वामित्व प्राप्त कर लेता है जबकि दयाभंग के मामले में स्वामित्व का सवाल पिता की मृत्यु के बाद ही आता है।

लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय समाज द्वारा लंबे समय से टाली जाने वाली प्रथा थी। गाँठ बाँधने से पहले एक साथ रहना भारतीय संस्कृति के लिए पहले एक अपराध है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदू धर्म ‘एक पुरुष, एक पत्नी’ को विवाह के सबसे पवित्र रूप के रूप में पसंद करता है। लेकिन जैसे-जैसे लोग मानसिक रूप से विकसित होने लगते हैं, आने वाली पीढ़ियां कुछ अस्वीकृत प्रथाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाती हैं। एक जीवित संबंध युगल वे हैं जो बिना किसी अपेक्षा के सहवास करते हैं। हालांकि, भारतीय कानून में इस अवधारणा का वर्णन करने के लिए कोई कानूनी परिभाषा नहीं है।

“भारत का संविधान इस भूमि का सर्वोच्च कानून है। जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार इसमें निहित है और इसे एक बुनियादी विशेषता के रूप में माना जाता है। उक्त अधिकार में किसी व्यक्ति का उसकी क्षमता के अनुसार पूर्ण विकास का अधिकार शामिल है। वह, उसकी पसंद और इच्छा और इस तरह के उद्देश्य के लिए अपनी पसंद का साथी चुनने का हकदार है। व्यक्ति को शादी के माध्यम से साथी के साथ संबंध को औपचारिक रूप देने या लिव-इन-रिलेशनशिप जैसा गैर-औपचारिक दृष्टिकोण अपनाने का भी अधिकार है।

शिक्षा ने इस अवधारणा के विकास में एक महान भूमिका निभाई। धीरे-धीरे, यह अवधारणा छोटे शहरों और गांवों में भी फैल गई। इससे पता चलता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप की सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है। कानून में, इस तरह के संबंध को प्रतिबंधित नहीं किया गया है और न ही यह किसी अपराध के दायरे में आता है और कानून मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति का जीवन और स्वतंत्रता अनमोल है और व्यक्तिगत विचारों के बावजूद इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।

मित्रों जैसा की आपने स्पष्ट रूप से देखा की Indra Sarma vs V.K.V.Sarma (2013) 15 SCC 755 (on 26 November, 2013 CRIMINAL APPEAL NO. 2009 OF 2013 (@ SPECIAL LEAVE PETITION (CRL.) NO.4895 OF 2012) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने LIVE-IN रिलेशनशिप को “विवाह के प्रकृति जैसा सम्बन्ध” के रूप में  स्थापित करने और इसे क़ानूनी मान्यता दिलाने हेतु कुछ मापदंड स्थापित किये और लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले नर और मादा को इन मापदंडो को पूरा करने हेतु सुझाव और आवशयक दिशा निर्देश दिए, जो की अति आवश्यक प्रतीत होते हैं। और स्पष्ट है की उन मापदंडो को पूर्ण कर लेने के पश्चात लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली मादा (महिला) डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट २००५ के अंतर्गत सुरक्षा प्राप्त कर सकती है तथा इसके साथ ही अपने बच्चे को उसका अधिकार भी दिला सकती है।

मित्रों इस लेख के प्रथम अंक में ही मैंने बताया था की मनुस्मृति में इस प्रकार के लिव इन रिलेशनशिप को गंधर्व विवाह के रूप में निरूपित किया गया है। आइये देखते हैं इस लिव इन रिलेशनशिप के लाभ क्या हैं और हानियां क्या है?

लिव इन रिलेशनशिप से लाभ:

१ :- मित्रों इस प्रकार के रिलेशन में दोनों पक्ष (नर और मादा) विवाह समबन्ध से उत्पन्न होने वाले किसी भी प्रकार के उत्तरदायित्व और कर्तव्य से बंधे नहीं रहते अर्थात लिव इन में रहने वाले नर और मादा स्वेच्छा से संयुक्त रूप से या पृथक पृथक जब भी इच्छा हो एक दूसरे को छोड़ सकते हैं।

२:- मित्रों लिव इन रिलेशनशिप से नर और मादा अपनी इच्छानुसार कितने भी नर या मादा साथी के साथ संसर्ग कर सकते हैं, किसी भी प्रकार का समाजिक बंधन नहीं होता:

३:- ये रिलेशनशिप समाज में उजागर नहीं करना पड़ता, आप समाज में घोषणा किये बिना एक साथ कई पार्टनर के साथ लिव इन रिलेशनशिप बना सकते हैं, यह आपके काबिलियत पर निर्भर करता है;

४:- इसमें यदि नर निकम्मा अर्थात बिना रोजगार या नौकरी का है तब भी वो अपने मादा पार्टनर के भावनाओ के साथ जुड़कर जब तक चाहे उसके कमाए पैसो पर अपना जीवन गुजर सकता है;

५ :- इस प्रकार के लिव-इन रिलेशनशिप में यदि मादा गर्भवती हो जाती है, तो भी वो उस बच्चे को नर का धर्मज पुत्र या पुत्री साबित नहीं कर सकती जब तक की वो सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा स्थापित मापदंडो का पालन नहीं कर लेती;

६:- इस प्रकार का रिलेशनशिप का उपयोग, चालाक नर और मादा अपने अपने पार्टनर को ब्लैकमेल करने के लिए भी करते हैं तथा

७:- मादा अक्सर अपने नर पार्टनर पर बलात्कार करने का आरोप लगाती है, जब नर उसे छोड़ कर जाने को तैयार हो जाता है।

लिव इन रिलेशनशिप से हानि:-

१:- व्यभिचार को बढ़ावा देता है;

२:- व्यभिचार से दुराचार फैलता है और समाज दूषित होने लगता है;

३:- मादाये (स्त्रियां) अक्सर लिव इन रिलेशनशिप के असफल हो जाने पर मानसिक अवसाद (Depression) का शिकार हो जाती हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं;

४:- समाज इस प्रकार के रिलेशन को स्वीकार नहीं करता;

५:- जघन्य हत्या (श्रद्धा वालकर या निक्की यादव) जैसे अपराध की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है

६:- संस्कार और संस्कृति रसातल में जाने लगती है।

मित्रों हमारे शस्त्रों ने विवाह के सम्बन्ध में अत्यंत ही मधुर श्लोक कहा है जो निम्नवत है :-

विवाह दिनं इदम् भवतु हर्षदम्। मंगलम तथा वां च क्षेमदम्।।

प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता। शत गुण कुलं सदा हि मोदता।।

इसी के साथ LIVE-IN रिलेशनशिप पर आपकी क्या राय है, इसी प्रश्न के साथ हम इस लेख के अंतिम भाग को विराम देते हैं।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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