पठान ने “रुबीना” को “बेशरम रंग” बना दिया, क्यों?

पठान चलचित्र में एक मुसलिम महिला को अधनंगा दिखाने पर सनातन समाज नाराज क्यों?

जी हाँ मित्रों पठान फिल्म में दीपिका पादुकोण ने जिस चरित्र् को निभाया है, उसका नाम है “रुबीना”। धिक्कार है उन मुल्ला मौलवीयो पर जो इस्लाम में महिलाये अपने शरीर को ढकने के लिए क्या पहनेंगी, ये तय करने का प्रयास करते हैं।

पठान फिल्म में जिस प्रकार एक मुसलिम महिला “रुबीना” को लगभग वस्त्रहीन अर्थात नंगा दिखाया गया है वो अपने आप में एक पठान का एक मुसलिम महिला के प्रति एक सोच को दर्शाता है और ताज्जुब है कि भारतवर्ष का कोई भी मुसलिम मजहबि गुरु अपने समाज कि महिला को ऐसे फुहड़ता और अश्लीलता के साथ परोसने पर एक शब्द नहीं बोला।

मित्रों आपको याद होगा कि कर्नाटक के एक स्कूल में जब हिजाब पहनने पर आपत्ति की गई तो भारत के लगभग हर राज में जबरदस्त धरना प्रदर्शन हुए। कर्नाटक में तो स्कूल कालेज कई दिनों तक बंद रहे। ये हिजाब का मामला अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया। सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं प्रेषित कर दी गई और अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूलों और कालेजो को अपने नियम बनाने की स्वतन्त्रता को बरकरार रखा।

परन्तु बात बात पर मुसलिम महिलाओ के परीधान को लेकर अपने आसमानी किताब और शरियत से जोड़कर इसे इस्लाम का आवश्यक अंग बनाने और बताने वाले मुल्ला और मौलवी या फिर मुसलिम समाज के ठेकेदार एक मुसलिम महिला को अधनंगा दिखाये जाने पर चुप क्यों हैं?

आज बॉलीवुड के किसी भी मुसलिम कलाकार की बेटियों को आप देख लो चाहे वो जावेद अख्तर कि बेटी हो, चाहे वो आमिर खान कि बेटी हो, चाहे वो शाहरुख़ खान कि बेटी हो चाहे वो सलमान खान के परिवार कि हो या फिर अमिताभ बच्चन कि पोती हो ये खुलेआम मुसलिम समाज के द्वारा महिलाओ के वस्त्र धारण करने वाले नियमों कि धज्जिया उड़ाते हुए लगभग वस्त्रहीन होकर समाज मे विचरण करती रहती हैं, पर मजाल है इन तथाकथित मुल्लाओ और मौलवीयो के मुंह से कुछ भी निकल जाए।

अरे मियां भाई आपके समाज कि एक बेटी “रुबीना”
१:-के हिजाब और बुरखे को पठान ने उतार फेका;
२:- उसके हाथो में शराब पकड़ा दी;
३:- उसे ना तो पाँच वक़्त का नमाजी बताया और ना अल्लाह कि इबादत करते दिखाया;
४:- और तो और उसे नुमाइश कि चीज़ बनाकर परोस दिया;
५:- रुबीना को अश्लीलता के चरम पर पहुंचा दिया, क्योंकि वो पहले “जिम” को खुश करती है और फिर ना जाने किसको किसको…

भाई लोग ज़रा आप बताए कि यदि आपके समाज की बहु बेटियां पठान वाली “रुबीना” को अपना आदर्श मानकर उसी के अनुसार शराब पीना, अर्धनग्न होकर घूमना शुरू कर दे तो क्या होगा शरियत का और पवित्र आसमानी किताब का। परन्तु ना तो मिया भाई, ना कोई मुल्ला और ना कोई मौलवी पठान में दिखाई गई नंगी रुबीना के बारे में बात कर रहा है।

क्या ये पठान फिल्म के द्वारा शाहरुख खान ने उन लुटेरे पठानो को दर्शाया है, जो महिलाओ को केवल सैक्स और हवश की आग को केवल कुछ पलो के लिए शांत करने वाली जिंदा जीव मानते थे।

आज कोई भी मौलाना या मौलवी या हैदराबाद वाले भाईजान के मुँह से विरोध की कोई आवाज क्यों नहीं फूट रही है, क्या अधनंगी और शराब पीकर बड़ी हि अश्लीलता से अपने नितम्बो को गति देने वाली रुबीना मुसलिम समाज को स्वीकार है।

इश निंदा की आड़ में दरिंदगी और हैवानियत की सारी सीमा लांघने वाले ये कट्टर इस्लामिक चरमपन्थि आखिर अपने समाज कि एक लड़की का ऐसा अश्लील चित्रण देख कर भी खामोश क्यों हैं?

आइये अब ज़रा “बेशर्म रंग” गाने के बोल देखते हैं, कि इनके माध्यम से वो अपने शरीर की अश्लील नुमाइश करने वाली रुबीना आखिर संदेश क्या दे रही है:-

हमें तो लूट लिया, मिलके इश्क़ वालों ने,
बहुत ही तंग किया, अब तक इन ख़यालों ने,
नशा चढ़ा जो शरीफी का, उतार फेंका है,
बेशरम रंग कहाँ देखा, दुनिया वालों ने,

पठान ने “रुबीना” को अश्लील कपड़े पहना कर उसकी नुमाइश तो लगा हि दी पर वो यंही पर नहीं रुका, पठान ने रुबीना के मुंह से स्वय को बेशरम रंग भी कहवा डाला। अर्थात एक मुसलिम लड़की अधनंगी हालत में गाने गाती हुई अपने चरित्र् के बेशरम रंग को दुनिया वालों को दिखाने की बात कर रही है और स्वय उसकी आँखों में, उसके शरीर के हाव भाव में वो बेशरम रंग हवस कि आंधी बनकर दुनिया वालों को न्यौता दे रहे हैं।

वाह पठान वाह तुमने इस्लाम के ठेकेदारों के चेहरो पर पड़े चेहरो को उजागर कर दिया और साथ में उनके मंसूबो को भी। पठान का जो विरोध इन इस्लाम के ठेकेदारों को करना चाहिए वो विरोध सनातनधर्मी कर रहे हैं। और ये सब देखकर बार बार पूछने को दिल करता है ” कौन हैं ये लोग” ” कंहा से चलें आते हैं”!
पठान द्वारा रुबीना के नाम पर परोसी गई अश्लीलता यदि आप ख़ामोशी से स्वीकार करते हैं, तब आप १):- शराब को भी स्वीकार करेंगे; २):- अश्लील वस्त्र को भी स्वीकार करेंगे; ३:- एक औरत को बगैर हिजाब और बुरखे में भी स्वीकार करेंगे; ४):- इस प्रकार कि असमाजिकता के साथ नाचते और गीत गाते भी स्वीकार करेंगे और स्वीकार करेंगे उस हर प्रदुषण को जो इस्लाम में हराम है।

मौलाना और मौलवी के साथ साथ इस्लामिक समाज कि पठान के रुबीना पर ख़ामोशी अंत में उन्हीं के समाज को नुकसान पहुंचानेवालि साबित होगी, और होगा ये अवश्य।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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