गणतंत्र

गण तो हुए हैं शिव के लाल,
एक पश्चिमी षड्यंत्र ही रह गया हमारी पहचान,
न्याय समानता अधिकारों के तंत्रों को पूजते जन सामान्य,
बिन प्राण प्रतिष्ठा बिन भाव बिन, क्या होगा? संविधानिक चेतना का उदभाष्य!

भाषा वही अंकित है, परतंत्रता की ऋचाओं के मधुभाष्य में,
निलंबित है तो बस सत्य,
वंदे मातरम की हुंकार से,
जय जयकार करो किसी ब्रह्म विरोधी का प्रचार करो,
प्रसार करो किसी निर्मूलित जाति व्यवस्था का,
या स्वीकार करो वेदों की वर्ण व्यवस्था का!!

अन्याय है कहीं न्याय नहीं,
ब्रिटिशर्स के बोएं बीजों में फिर तिरंगा लहराओगे,
खुद को राष्ट्र भक्त कहकर, भारत माँ पर अधिकार भी जमाओगे,
ससहस्त्र वर्षों की श्रृंखलाओं में जय भी होगी पराजय भी,
अस्तित्व सनातन का रहेगा फिर भी,
पर तुम सब इतिहास बन जाओगे!!

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