क्या अध्यक्ष बदलने से कांग्रेस पार्टी के दिन बदलेंगे?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आजादी के बाद से आज तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, 2 राज्यों में अपने दम पर व 2 राज्यों में गठबंधन की बैसाखी के सहारे दम भर रही है राहुल गांधी आम जनता की नब्ज भांपने में अभी तक नाकामयाब रहे हैं, व उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी का नेतृत्व भी 1 सीट से आगे पार्टी को परिणाम नहीं दिला पाया।

राजस्थान हर 5 वर्ष बाद सत्ता परिवर्तन के लिए जाना जाता रहा है अगर यह भी चला गया तो कांग्रेस अपने दम पर केवल छत्तीसगढ़ में काबिज रहेगी इन सब के इतर 2019 में चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, उस घटना को 3 वर्ष गुजर जाने के बाद कांग्रेस पार्टी अपना नया अध्यक्ष नहीं चुन पाई है पिछले 3 वर्षों से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर कार्य कर रही है बीते सप्ताह मधुसूदन मिस्त्री ने काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की घोषणा की जिसके बाद यह चर्चा ज्यादा नहीं है कि नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनेगा इससे भी ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या कांग्रेस का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष उनकी पटरी से उतर चुकी गाड़ी को वापस रफ्तार से दौड़ा पाएगा।

राजस्थान सीएलपी की मीटिंग के दिन हुए घटनाक्रम के बाद अशोक गहलौत राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ से बाहर हो चुके हैं, अब शशि थरूर व मल्लिकार्जुन खड़गे ही टक्कर हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि गांधी परिवार किसको अध्यक्ष बनाना चाहेगा, दिग्विजय सिंह ने शुरुआती दिलचस्पी दिखाने के बाद अपना नामांकन वापस लेने की घोषणा कर दी है वो वैसे भी  अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं हिंदू आतंकवाद शब्द भी उन्हीं के द्वारा ईजाद किया गया था जिस पर उनकी काफी आलोचना भी हुई राजनीतिक तौर पर भी उन्हें इस बयान से काफी नुकसान उठाना पड़ा, मल्लिकार्जुन नौ बार के विधायक व मंत्री, सांसद रह चुके है दलित परिवार से आते है।

वही शशि थरूर पढ़े लिखे व पूर्व में विदेश में राजदूत के तौर पर कई देशों में कार्य कर चुके हैं इनकी अंग्रेजी के चर्चे दूर-दूर तक है अच्छे खासे पढ़े-लिखे व्यक्ति को भी उनकी अंग्रेजी समझने के लिए डिक्शनरी लेकर बैठना पड़ता है, क्या उनका हिन्दी में संवाद ना कर पाना उनके अध्यक्ष बनने की राह में रोड़ा होगा क्योंकि देश में अधिकांश सीटें हिन्दी बेल्ट के राज्यों में है, व शशि थरूर अभी तक एक जन नेता के तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर पाए हैं, मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के दलित नेता है, लेकिन काँग्रेस के लिए दलित कार्ड कभी लाभ का सौदा नही रहा, चाहे पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का उदाहरण हो या बाबू जगजीवन राम का दोनों ही एक्सपेरिमेंट फेल साबित हुए है, और खड़गे तो स्वयं के राज्य के शीर्ष दो नेताओं में भी शामिल नही है।

देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आलाकमान का आशीर्वाद किस नेता को मिल पाता है। अध्यक्ष बनने के बाद भी कांग्रेस की चुनोतियाँ कम नहीं होंगी, गुजरात, हिमाचल प्रदेश के चुनाव में चंद महीने शेष है, परंतु काँग्रेस का संगठन विलुप्त है, कर्नाटक में डीके शिवकुमार व सिद्धारमैया के बीच शक्ति प्रदर्शन जारी है, महाराष्ट्र में संगठन का अता पता नही है, झारखंड के विधायक लाखों रुपये के साथ पकड़े जा चुके है, चारों तरफ कांग्रेस अध्यक्ष के लिए संकट ही संकट दिखाए दे रहा है।

राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे है, पर यात्रा चुनावी राज्यों से दूर रहेगी! इस प्रकार लड़कर काँग्रेस अपना अस्तित्व बचा पाएगी, क्या नया कांग्रेस अध्यक्ष नरेंद्र मोदी व अमित शाह के सांगठनिक कौशल को टक्कर दे पाएगा? यह काँग्रेस नेतृत्व के लिए सोचने का विषय है।

गैर गाँधी नेहरू परिवार के अध्यक्षों की एक खास बात जरूर रही है, सभी का कोई खास जनाधार नहीं रहा है, इस बार भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है, आमजन को दिखाने हेतु चुनाव भी हो रहा है, व गाँधी परिवार को कोई चुनौती न मिल पाए उस बात की ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष भी बिना जनाधार वाला नेता ही बनेगा।

मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों के नाम पढ़कर तो यह स्पष्ट हो ही चुका है कि उनका अध्यक्ष बनना तय है, लेकिन शशि थरूर भी कमजोर चुनाव नही लड़ेंगे जैसा दिखाई पड़ रहा है, कांग्रेस का एक युवा गुट शशि थरूर के साथ भी दिखाई पड़ रहा है, लेकिन एक बात तो तय है कांग्रेस पार्टी को अब हर की जिम्मेदारी डालने के लिए नया अध्यक्ष मिल जाएगा। 

Author note: (For Main: ऑपइंडिया).

Aditya Rathi: Living in India. Pursuing Ph.D from Glocal University. Working as Political analyst in CryproMize.
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