वक्फ बोर्ड या हिन्दुओ की ज़मीन पर अवैध कब्जा करने वाला गिरोह

मित्रों यदि किसी कांग्रेसी या विपक्ष के किसी अन्य म्लेच्छ से पुछेंगे की भारत अगर एक हिन्दू राष्ट्र बन जाए तो क्या गलत है, तब वो तपाक से उत्तर देगा की ये नहीं हो सकता क्योंकि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है जिसका कोई धर्म नहीं।

परन्तु उस म्लेच्छ से यदि ये पूछो आप की इस्लाम धर्म के नाम पर फिर वक्फ बोर्ड को क्यों बनाया और वक्फ अधिनियम १९९५ क्यूँ बनाया है, तब वहीं म्लेच्छ इसे अपना अधिकार बताना शुरू कर देगा और फिर उसकी धर्म निर्पेक्षता विलुप्त हो जाएगी।

मित्रों इन कांग्रेसियों ने हम सनातन धर्मीयों के साथ हमेशा धोखा किया है। इन्होने अपनी म्लेच्छ तुष्टिकरण कि निति के कारण और वोट बैंक तैयार करने के चक्कर में हम हिन्दुओ के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया।

आपको याद होगा Places Of Worship Act 1991 भी कांग्रेसियों की हि देन है जिन्होंने हिन्दुओ की आस्था के साथ क्रूर खिलवाड़ करते हुए उनसे उनके पूजा स्थलों के वापस लेने के अधिकार को इस अधिनियम के द्वारा छीन लिया और यही नहीं हमारे इन्ही दुश्मनों ने “वक्फ अधिनियम १९९५” पारित कर वक्फ बोर्ड को वक्फ की आड़ में किसी भी सम्पत्ति को अवैध रूप से कब्जा कर लेने की असीमित शक्ति प्रदान कर दी और ज़रा रुकिए बात यही नहीं ठहरिये और सुनिए अपने पोपट और गुसलखाने में रेनकोट पहन कर नहाने वाले मौलवी मनमोहन सिंह ने ८ मार्च २०१४ को एक अधिसूचना जारी करके दिल्ली की करीब १०० से ज्यादा सरकारी सम्पत्तियो को वक्फ की सम्पत्ति घोषित कर दिया।

खैर ये ताज़ा मामला है तमिलनाडु वक्फ बोर्ड द्वारा एक पूरे गाँव की ज़मीन को हड़प लेने का।

ज़रा सोचिए, ईश्वर ना करें, पर आपको अपनी बेटी या बहन की शादी करनी है। आपके पास पैसे नहीं है, ले देकर केवल एक ज़मीन का टुकड़ा है। आप उसे हि बेचकर इस शादी का खर्च वहन करना चाहते हैं। आप अपनी ज़मीन के उस टुकड़े को बेचने का सौदा करके रजिस्ट्रार के कार्यालय में खरीदने वाले व्यक्ति के पक्ष में रजिस्ट्री कराने जाते हैं और फिर वो रजिस्ट्रार दांत निपोर कर बताता है की ये ज़मीन तो आपकी है ही नहीं, इस पर तो वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोका हुआ है, आप इसे बेच नहीं सकते और फिर भी बेचना चाहते हैं तो जाइये वक्फ बोर्ड से NOC लेकर आइये। भाई क्या आपका कलेजा मुँह को नहीं आ जाएगा। क्या आप का खून नहीं खौल उठेगा।

बस यही सब हुआ तमिलनाडु में त्रिची जिले के तिरुचेंथुरई गांव के रहने वाले राजगोपाल भाई के साथ। जब ये खबर लेकर वो अपने गांव में गए तो पूरे गांव में खलबली मच गई। जब सभी ने पूछ्ताछ की तो पता चला ज़मीन जिहादियों ने वक्फ बोर्ड की आड़ में गांव में स्थित १५०० वर्ष पूर्व मंदिर सहित पूरे गांव के ३६९ एकड़ ज़मीन पर दावा ठोक दिया है, अब पूरा का पूरा गांव उन जिहादियों का है।

मेरे भाइयों केवल राजगोपाल भाई की जमीन ही नहीं तिरुचेंथुरई गांव के सारे खेत-खलिहान गांव की जमीनें-मकान इत्यादि सब पर तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने कब्जा कर लिया है। पुरे के पुरे गाव को ठग लेने का ऐसा वाक्या इससे पहले कभी नहीं देखा गया।

आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा की ज़मीन के मामले में सेना और रेलवे के बाद इसी वक्फ बोर्ड का नंबर आता है अर्थात सेना के पास लगभग १८ लाख एकड़ जमीन पर संपत्तियां हैं, जबकि देश में रेलवे की चल-अचल संपत्तियां करीब 12 लाख एकड़ में फैली हैं और इस वक्फ बोर्ड के पास करीब ८.५० लाख एकड़ की ज़मीन है।

आइये इस अधिनियम के अंतर्गत वक्फ बोर्ड को प्रदान की गई अवैधानिक शक्तियो पर एक दृष्टि डाल लेते हैं।
धारा ८५ . सिविल न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-किसी वक्फ, वक्फ संपत्ति या अन्य मामले से संबंधित किसी विवाद, प्रश्न या अन्य मामले की बाबत जिसका इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अधिकरण द्वारा अवधारित किया जाना अपेक्षित है, किसी [सिविल न्यायालय, राजस्व न्यायालय और कोई अन्य प्राधिकरण] में कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं होगी ।

अर्थात भले हि आप हिन्दू हैं, जैन हैं, पारसी हैं, सिक्ख हैं या बौद्ध हैं, यदि आपकी ज़मीन पर जिहाद हो गया और वक्फ बोर्ड को लगा की ये तो उसकी सम्पत्ति होनी चाहिए तो आप अपनी जमीन वापस लेने के लिए दीवानी न्यायालय मे नहीं जा सकते, अपु उन्हीं म्लेच्छ लोगों के पास अपनी फरियाद लेकर जानी होगी और जिन लोगों ने ज़मीन जिहाद किया है वो क्या आपकी ज़मीन छोड़ देंगे, क्या लगता है आपको? तो इस धारा से हि न्याय पाने की आशा भी आपको छोड़ देनी होगी।अगर वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल को आप संतुष्ट नहीं कर पाते कि ये आपकी ही जमीन है तो आपको जमीन खाली करने का आदेश दे दिया जाएगा। ट्रिब्यूनल का फैसला ही अंतिम होगा। कोई सिविल कोर्ट, वक्फ ट्रिब्यूनल कोर्ट के फैसले को बदल नहीं सकती है।

अब ज़रा धारा ४० को देख लेते हैं।
धारा ४०. यह विनिश्चय कि क्या कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है-(1) बोर्ड किसी ऐसी संपत्ति के बारे में जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह वक्फ संपत्ति है, स्वयं जानकारी संगृहीत कर सकेगा और यदि इस बाबत कोई प्रश्न उठता है कि क्या कोई विशिष्ट संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं अथवा कोई वक्फ सुन्नी वक्फ है या शिया वक्फ तो वह ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह उचित समझे, उस प्रश्न का विनिश्चय कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन किसी प्रश्न पर बोर्ड का विनिश्चय जब तक कि उसको अधिकरण द्वारा द्वारा प्रतिसंहृत या उपांतरित न कर दिया जाए, अंतिम होगा।

(3) जहां बोर्ड के पास यह विश्वास करने का कारण है कि भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 (1882 का 2) के अनुसरण में अथवा सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन या किसी अन्य अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी न्यास या सोसाइटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है वहां बोर्ड, ऐसे अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी संपत्ति के बारे में जांच कर सकेगा और यदि ऐसी जांच के पश्चात् बोर्ड का समाधान हो जाता है कि ऐसी संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह, यथास्थिति, न्यास या सोसाइटी से मांग कर सकेगा कि वह ऐसी संपत्ति को इस अधिनियम के अधीन वक्फ संपत्ति के रूप में रजिस्ट्रीकृत कराए या इस बात का कारण बताए कि ऐसी संपत्ति को इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत क्यों नहीं किया जाए !परन्तु ऐसे सभी मामलों में, इस उपधारा के अधीन की जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई की सूचना, उस प्राधिकारी को दी जाएगी जिसके द्वारा न्यास या सोसाइटी रजिस्ट्रीकृत की गई है।

(4) बोर्ड, ऐसे हेतुक पर सम्यक् रूप से विचार करने के पश्चात् जो उपधारा (3) के अधीन जारी की गई सूचना के अनुसरण में दर्शित किया जाए, ऐसे आदेश पारित करेगा जो वह ठीक समझे, और बोर्ड द्वारा इस प्रकार किया गया आदेश अंतिम होगा जब तक कि वह किसी अधिकरण द्वारा प्रतिसंहृत या उपांतरित नहीं कर दिया जाता है।

अब इसे भी ध्यान से पढ़ लीजिये क्योंकि यदि बोर्ड को बस ऐसा लग जाए की अमुक सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति है, इतना काफी है उस सम्पत्ति को विवाद की वस्तु बनाकर उसे बोर्ड में लेकर, वाद चलाकार ये तय कर ले की इसे शिया घोषित करें या सुन्नी । यंहा पर सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न ये है कि वक्फ बोर्ड को ये साबित नहीं करना है कि अमुक सम्पत्ति वक्फ की सम्पत्ति है अपितु सम्पत्ति के मालिक को साबित करना होगा की उसकी सम्पत्ति वक्फ की सम्पत्ति नहीं है।

यानी अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर दावा कर दे तो समझो वो जमीन उसकी हो गई। तमिलनाडु में भी यही हुआ है। दिल्ली हाई कोर्ट में इसी साल अप्रैल में एक याचिका दायर की गई है जिसमें वक्फ एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी गई है.

अब ज़रा अंत में जाते जाते वक्फ सम्पत्ति की भी परिभाषा देख लेते हैं की कौन से सम्पत्ति वक्फ की सम्पत्ति मानी जाती है इस वक्फ अधिनियम १९९५ के अनुसार:-
धारा ३ (द)”वक्फ” की परिभाषा देती है, इसके अनुसार “वक्फ” से किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रयोजन के लिए जो मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या पूर्त माना गया है, किसी जंगम या स्थावर संपत्ति का स्थायी समर्पण अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत है:-

(i) उपयोगकर्ता द्वारा कोई वक्फ किन्तु ऐसे वक्फ का केवल इस कारण वक्फ होना समाप्त नहीं हो जाएगा कि उसका उपयोग करने वाला समाप्त हो गया है चाहे ऐसी समाप्ति की अवधि कुछ भी हो;

(ii) कोई शामलात पट्टी, शामलात देह, जुमला मलक्कन या राजस्व अभिलेख में दर्ज कोई अन्य नाम;

(iii) अनुदान” जिसके अंतर्गत किसी प्रयोजन के लिए मशरत-उल-खिदमत भी है, जिन्हें मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या पूर्त माना गया है; और

(iv) वक्फ-अलल-औलाद वहां तक जहां तक कि संपत्ति का समर्पण किसी ऐसे प्रयोजन के लिए किया गया है जो मुसलिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या पूर्त माना गया है, परंतु जब कोई उत्तराधिकारी नहीं रह जाता है तो वक्फ की आय शिक्षा, विकास, कल्याण और मुस्लिम विधि द्वारा यथा मान्यताप्राप्त ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए खर्च की जाएगी,

और वाक़िफ़” से ऐसा समर्पण करने वाला कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;]

(v) वक्फ विलेख” से कोई ऐसा विलेख या लिखत अभिप्रेत है जिसके द्वारा कोई वक्फ सृष्ट किया गया है और इसके अन्तर्गत कोई ऐसा विधिमान्य पश्चात्वर्ती विलेख या लिखत है जिसके द्वारा मूल समर्पण के किसी निबंधन में परिवर्तन किया गया है ;

अब इस परिभाषा को पढ़ने से स्पष्ट है की यदि कोई मुसलिम समर्पित होकर मुसलिम विधि द्वारा मान्य की गई किसी धार्मिक, पवित्र या लोकोपयोगि कार्य के लिए अपनी चल या अचल सम्पत्ति का दान कर देता है, तो उस सम्पत्ति को वक्फ माना जाता है अर्थात वक्फ एक्ट (Waqf Act 1995) के नियमों के मुताबिक, वक्फ बोर्ड सिर्फ उस संपत्ति पर दावा कर सकता है जो इस्लाम धर्म को मानने वाले किसी शख्स ने धार्मिक काम के लिए दान में दी हो।

अब प्रश्न ये उठता है की १४०० साल पुराने मजहब के किस मुसलमान ने १५०० वर्ष पुराने मंदिर को दान दे दिया। और यही नहीं एक मंदिर किसी मुल्ले की अपनी सम्पत्ति कैसे हो सकती है। इसी प्रकार वो कौन सा मुसलिम जागीरदार या नवाब या जमींदार था जिसने पूरे के पूरे गांव को दान में दे दिया और १९५४ मे बने वक्फ बोर्ड ने १९९५ मे मिली शक्तियो के आधार पर पूरे के पूरे गांव पर कब्जा कर लिया।

मित्रों क्या एक इस्लामिक वक्फ बोर्ड किसी भी सनातन धर्मी भारतीय नागरिक अपनी व्यक्तिगत ज़मीन को इस वक्फ अधिनियम १९९५ की आड़ में हड़प सकता है। इस अधिनियम की धारा ३ (द) तो यह नहीं कहती फिर किस आधार पर इन मजहबी लोगों ने हिन्दुओ के पूरे के पूरे गांव को हड़प लिया।

मित्रों याद रखिये ज़मीन जिहाद कानूनी रूप से भी हो रहा है। २००९ तक इस वक्फ बोर्ड के पास करीब ४ लाख एकड़ की ज़मीन थी जो २०२२ आते आते ८.५० लाख एकड़ के आस पास हो गई कैसे? ये एक यक्ष प्रश्न है। जिसका जवाब हमें शीघ्र ढूढना होगा समाधान के साथ।

लेखक:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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