गुलाम नबी आज़ाद क्या जम्मू कश्मीर के हेमंत विश्व शर्मा सिद्ध होंगे

BJP wants to come to power in Kashmir with the help of Ghulam Nabi

मित्रों याद करिये संसद के उस दिन के परिदृश्य को जब गुलाम नबी आज़ाद के विदाई का दिन था और हम सबके प्रिय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी उनकी प्रसंशा के गीत गा रहे थे, उनकी आँखों से आंसू निकल रहे थे, बड़े ही भावुक थे तब शायद गुलाम नबी को इस बात का एहसास नहीं था की आखिर उनकी पार्टी को समाप्त करने की कस्मे खाने वाला मनुष्य उनकी क्यों इतनी प्रसंशा कर रहा है। खैर प्रधानमंत्री जी के भावुक और ह्रदय से निकले शब्दों से प्रभावित होकर गुलाम नबी ने भी उनकी प्रसंशा की और बात आयी गयी जो गयी।

मित्रों अब जरा याद करिये जब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद ३७० और ३५ अ को हटाने की कवायद शुरू होते ही मेहबूबा मुफ़्ती, फारुख अब्दुल्ला उनका पुत्र उमर अब्दुल्ला और अन्य अलगाववादी जीवों को नजरबन्द कर दिया गया था परन्तु गुलाम नबी पूर्णतया आज़ाद थे। ऐसा नहीं था कि गुलाम नबी, मेहबूबा मुफ़्ती और फारुख और उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओ की तरह भाजपा के नीतियों की आलोचना नहीं कर रहे थे अपितु वे भी जबरदस्त आलोचना कर रहे थे परन्तु उन्हें आलोचना करने के लिए आज़ाद छोड़ दिया गया था। वे भाजपा की आलोचना कर रहे थे और भाजपा चुपचाप उसे सुन रही थी।

याद करिये जब उन्होंने जब उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के विरोध में कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओ द्वारा बनाये गए संगठन का नेतृत्व किया तो इससे सबसे ज्यादा ख़ुशी भारतीय जनता पार्टी को ही हुई थी। इन सभी तथ्यों के साथ मैं  अभी आपको यही छोड़कर, गुलाम नबी आज़ाद के पृष्ठभूमि की ओर लेकर चलता हूँ :-

गुलाम नबी आज़ाद का जन्म जम्मू और कश्मीर के डोडा जिले  में गंडोह तहसील (भालेसा) के सोती नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रहमतुल्लाह बट्ट और माता का नाम श्रीमती बासा बेगम था। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई अपने गांव के स्थानीय स्कूल में की। बाद में उच्च अध्ययन के लिए वे जम्मू चले गए और जी.जी.एम. साइंस कॉलेज से विज्ञान संकाय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके अलावा, उन्होंने वर्ष १९७२ में कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर से जूलॉजी में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की।

गुलाम नबी आज़ाद ने 1980 में एक प्रसिद्ध कश्मीरी गायिका  शमीम देव आज़ाद से निकाह किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पुत्र के रूप में सद्दाम नबी आज़ाद और पुत्री के रूप में सोफिया नबी आज़ाद की प्राप्ति हुई।

राजनितिक उतार चढ़ाव :-

गुलाम नबी आज़ाद ने अपने राजनितिक करियर की शुरुआत वर्ष १९७३ में भालेसा के ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में किया और दो वर्ष के पश्चात ही उन्हें जम्मू और कश्मीर प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया। गुलाम नबी आज़ाद का परिश्रम रंग लाया और वर्ष १९८० में, उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष १९८० में महाराष्ट्र के वाशिम (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से सातवीं लोकसभा के लिए सांसद चुने जाने के पश्चात, आज़ाद को वर्ष १९८२  में कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय के प्रभारी उप मंत्री के रूप में केंद्र सरकार में प्रवेश दिया गया।

इसके पश्चात उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, वर्ष  १९८४  में गुलाम नबी आज़ाद आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए और राज्य सभा में उन्हें महाराष्ट्र राज्य का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। स्व श्री नरसिम्हाराव की सरकार के दौरान, आजाद ने संसदीय मामलों और नागरिक उड्डयन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। इसके पश्चात वो दिनांक ३० नवंबर १९९६ से दिंनाक २९ नवंबर २००२ और दिनांक ३० नवंबर २००२ से दिनांक २९ नवंबर २००८ तक की अवधि के दौरान जम्मू और कश्मीर से राज्यसभा के लिए चुने गए, परन्तु दिनांक २९ अप्रैल २००६ को उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्होंने दिनांक २ नवंबर२००५ को जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी राजनीती की नयी शुरुआत की।

विदित हो कि जम्मू और कश्मीर में गुलाम नबी की सरकार, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने अपना समर्थन देकर बनवाई थी परन्तु किसी कारणवश उस पार्टी ने गुलाम नबी आज़ाद की सरकार के लिए दिया गया अपना समर्थन वापस ले लिया, और गुलाम नबी आज़ाद ने दिनांक ७ जुलाई २००८ को अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में, श्री गुलाम नबी आज़ाद ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में शपथ ली। वे दिनांक ३०  नवंबर १९९६  से दिनांक  २९  नवंबर २००२  की अवधि के दौरान जम्मू और कश्मीर से चौथे कार्यकाल और तीसरे कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुने गए। उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का विस्तार करने की मुहीम उठाई  और जबरदस्त सफलता अर्जित की।

नेता प्रतिपक्ष

जून २०१४ में अभूतपूर्व परिवर्तन के दौरान जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता के रूप में आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने लोकसभा में बहुमत हासिल किया और केंद्र में सरकार बनाई, तब गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त किया गया।

वर्ष २०१५ में, आज़ाद को जम्मू और कश्मीर से राज्यसभा के लिए फिर से निर्वाचित किया गया, परन्तु उसके पश्चात कांग्रेस पार्टी में पनप रही गंदगी कि सडांध ने गुलाम नबी की आत्मा को झकझोर डाला और अपनी कुचली गयी भावनाओ के बयार को वो रोक नहीं पाए और अगस्त २०२२ में, आखिरकार आज़ाद ने अपनी नियुक्ति के कुछ घंटों के पश्चात ही  जम्मू-कश्मीर कांग्रेस अभियान समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस को नष्ट करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाली सोनिया गांधी ने आजाद का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। दिनांक २६ अगस्त २०२२ को, उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा दे कर स्वय के वजूद को पूर्णतया कांग्रेस के चंगुल से आज़ाद करा लिया।

मित्रों चलिए गुलाम नबी के पृष्ठभूमि से बहार निकलकर फिर से वर्तमान में आ जाते हैं और जम्मू कश्मीर के परिदृश्य में गुलाम नबी की भूमिका को देखने का प्रयास करते हैं। गुलाम नबी आज़ाद की पकड़, किसी फारुख अब्दुल्ला, मेहबूबा मुफ़्ती या गिलानी वगैरा से कम नहीं है। जम्मू कश्मीर के मुसलमानो के मध्य गुलाम नबी की छवि अन्य समकालीन नेताओ से कहीं ज्यादा प्रभावकारी है। ऐसे में जबकि पाक अधिकृत कश्मीर के लोग भी भारत के साथ विलय करने हेतु जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं और पाकिस्तानी धूर्त और मक्कार सैनिको से जमकर लोहा ले रहे हैं, गुलाम नबी आज़ाद एक तुरुप का पत्ता भाजपा के लिए साबित हो सकते हैं।

मित्रों अनुच्छेद ३७० और ३५ अ के कलंक से बाहर निकलकर जम्मू कश्मीर में विकास की जो नई परिपाटी खींची जा रही है, वर्तमान सरकार द्वारा उसे देखकर पाक अधिकृत कश्मीर के लोगो को भी अपना सुनहरा भविष्य अब भारत के साथ ही दिखाई दे रहा है। जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण से जम्मू में तो भाजपा को स्पष्ट रूप से लाभ मिलता प्रतीत हो रहा है, परन्तु कश्मीर में मेहबूबा मुफ़्ती और फारुख अब्दुल्ला की पकड़ भी मजबूत है अत: जम्मू कश्मीर के लिए भाजपा को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो मुलत:जम्मू कश्मीर से ही हो और मुस्लिम आबादी में जिसका अच्छा खासा प्रभाव हो और वो तलाश अब गुलाम नबी आज़ाद पर आकर केंद्रित हो गयी है।

मित्रों याद रखिये पाक अधिकृत कश्मीर को बिना युद्ध किये भारत में शामिल कर लेने के उद्देश्य की पूर्ति करने हेतु सिमा रेखा से जुड़े चिनाब विधानसभा जैसी सीटों पर विजय प्राप्त करना भाजपा के लिए अत्यधिक आवश्यक है और यदि गुलाम नबी आज़ाद भाजपा के लिए दूसरे श्री हेमंत विश्व शर्मा साबित हो जाते हैं तो पुरे उत्तर पूर्व राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर भी भाजपा के झंडे तले विकास की नयी कहानी रचने सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर हो जायेगा। गुलाम नबी आज़ाद निश्चित ही कांग्रेस की बदबू भरी  सड़ांध से बाहर निकलकर ताज़ी और प्रकाशयुक्त स्वतंत्र हवा में सांसे लेकर अपने जम्मू कश्मीर के उज्जवल भविष्य के लिए भाजपा से जुड़कर एक नए मुकाम को हासिल कर सकते हैं। वैसे आपको बता दे की भाजपा के शासन काल में ही गुलाम नबी आज़ाद को मार्च २०२२ में पदमभूषण से सम्मानित किया गया था।

अब शायद आप अपने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी और गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के राजनितिक और कूटनीतिक व्यवहार को समझने के लिए अपने मस्तिष्क पर और दबाव अधिरोपित किये बिना इस तथ्य को समझ सकते हैं की कांग्रेस के शीर्ष नेता अपने दम्भ और झूठे घमंड के कारण जिन नेताओ के पर कतरने का प्रयास करते हैं, वही नेता अपनी प्रतिभा का उचित उपयोग भाजपा का साथ प्राप्त करते ही करने लगते हैं और देश के विकास के साथ साथ इसकी एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने में अभूतपूर्व योगदान करने लगते हैं, श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, श्री हेमंत विश्व शर्मा और  श्री जितिन प्रसाद इत्यादि तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। और सच ही है की सतसंगति का असर तो ह्रदय पर छाप छोड़ ही जाता है। इसीलिए महान संत कबीरदास जी ने कहा है की:-

कबीर संगत साधु की,नित प्रति कीजै जाय।

दुरमति दूर बहावसी,देसी सुमति बताय॥

कबीर संगत साधु की,जौ की भूसी खाय।

खीर खांड भोजन मिले,साकट संग जाए॥

अर्थात:- संत कबीर कहते हैं कि, सज्जन लोगों की संगत  प्रतिदिन करनी चाहिए। ज्ञानी सज्जनों की संगत में, प्रतिदिन जाना चाहिए। इससे दुर्बुद्धि (दुरमति), दूर हो जाती है, मन के विकार, नष्ट हो जाते है और सदबुद्धि (सुमति), आती है। कबीरदासजी कहते हैं कि साधु की संगत में रहकर यदि जौ की भूसी का भोजन भी मिले, तो भी उसे प्रेम से ग्रहण करना चाहिए। लेकिन दुष्ट के साथ यदि खीर और मिष्ठान आदि स्वादिष्ट भोजन भी मिले,तो भी उसके साथ यानी की दुष्ट स्वभाव वाले के साथ कभी नहीं जाना चाहिए।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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