विपक्ष भुला अपना दायित्व– कर्तव्य और जिम्मेदारी, हर कदम पर हो रहा उजागर

जब जब चुनाव आता है भले ही वो विधानसभा चुनाव हो या आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव, सारे राजनीतिक दल अपनी अपनी ताकत झोंकते हुए सत्ता में अपनी भागीदारी को मजबूत मजबूत करने की कोशिश करते है। छोटे से छोटा दल भी अपनी पार्टी और विचारधारा को मजबूत करने का प्रयास करता है और हर चुनाव में अपने दल के बड़े नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ता एक मशीन की भांति जीत के लिए हाथ पांव मारते है। सत्ता से दूर रहे दल सत्ता पर बैठी सरकार को कोसते है। उनकी स्कीमों को कोसते है। उनकी कार्य करने की व्यवस्था को कोसते है और घोटालों से लेकर हर छोटी से छोटी गलती को उजागर कर सबके सामने रखने की हिम्मत करते है। और जनता के सामने ऐसे मामले को प्रस्तुत करते है जैसे अगर सता की चाबी आपके पास होती तो ना जाने विकास की गंगा बहा देते, भावुक और भोली जनता ये सब देखती है। गुस्से और जोश में वो अपना लोकतांत्रिक अधिकार उस समय उसी दल को दे देती है। अब देश और उसका विकास हो ना हो, उन राजनीतिक दलों का जरूर होने लगता है और ये सिलसिला चलता रहता है दशकों से… अब तो उसकी सदी भी पूरी होने को है।

शिक्षा – स्वास्थ्य और रोजगार जैसे गंभीर मसलों पर सत्ता पर बैठी सरकारें विकास का दावा करती है कुछ हद तक उन दावों पर बात करने का प्रयास भी करती है पर विपक्ष क्या करता है केवल सत्ताधारी दल के निर्णयों का विरोध, उसके खिलाफ प्रदर्शन, आगजनी, तोड़फोड़, हड़ताल, दंगा फसाद और काफी कुछ, पर इन सबसे राजनीतिक दलों और तथाकथित विपक्ष को भला हो सकता है पर देश को भारी नुकसान होता है जनता की कमर टूट जाती है

आपने अमूमन देखा होगा कि विपक्ष आंकड़े पेश करती है पर उन आंकड़ों पर कभी काम नहीं करती, जैसे सत्ताधारी सरकार देश से बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई योजना लेकर आती है तो विपक्ष उसे गलत बताकर रोना धोना शुरू कर देता है। जबकि विपक्ष को चाहिए कि बेरोजगारी के उन आंकड़ों को उजागर कर लोगो को जागरूक करे, उदाहरण के तौर पर अब जब केंद्र सरकार ने अग्निपथ योजना को लागू करने का एलान किया, सारा विपक्ष लगा विरोध करने जबकि असल विपक्ष वो होता जो किसी भी योजना की घोषणा के साथ ही उसकी सीटें पूरी करके नई योजना या नई रोजगार व्यवस्था को लागू करने के लिए दवाब बनाता। अग्निपथ योजना में सालाना 40/50 हजार भर्तियां होनी है पर वास्तविक बेरोजगारी का आंकड़ा चिंताजनक है।

इसलिए सत्ताधारी सरकार की किसी भी योजना के लागू करते ही लोगो को, खासतौर पर अपने अपने दल को सहयोग करने वाले कार्यकर्ताओं को कहे कि वो जुड़े और जुड़कर बेरोजगारी के आंकड़ों को कम करने का प्रयास करे। जब उस योजना से जुड़ने के बाद भी रोजगार में कमी रहती है तो फिर नई भर्तियां लाने का दवाब बनाए, अब जिनको किसी भी योजना का फायदा दिलवाना चाहिए वहीं विपक्ष उसका विरोध के रूप में दुरुपयोग करता है केंद्र सरकार की तरफ से 250+ सरकारी योजनाएं है, जिसमे बच्चे, बूढ़े, नौजवान, माताएं, बहनों का पूरा ध्यान रखा गया है उसी आधार पर केंद्र में मंत्रालय बने है विपक्ष को चाहिए कि इन मंत्रालयों का बजट घोषणा होने के 90 दिन में खत्म करवा दे। लोगो को योजना के प्रति जागरूक करे पर असल में इन बजट का 15/20 प्रतिशत से ज्यादा उपयोग ही नही होता क्योंकि उपयोग करने वाले तो सड़को पर टायर जला रहे है, विरोध कर रहे है ।विपक्षी दल की राजनीति का निवाला बन रहे है।

राजनीतिक दलों ने अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए भाई भाई को लड़ा दिया है। राजधानी दिल्ली से लेकर गांव गांव तक सत्ताधारी दल ने योजना पहुंचाने का प्रयास किया अगर असल विपक्ष हो तो उसे गांव गांव तक पहुंचाने में मदद करते हुए लोगो को जोड़कर केंद्र के आंख करवा देवे ताकि केंद्र सरकार भी किसी भी योजना को लाने से पहले सोचे, अब आजकल तो केंद्र को भी पता होता है कि स्कीम लागू तो होगी नहीं और लागू हो गई तो पूरी तरह से उपयोग नही होगी। और वो कहते है ना “ना नौ मण तेल होगा और ना राधा नाचेगी” इसी आधार पर सत्ता में बैठी सरकार की बात रह जायेगी और विपक्ष अपना विरोध भी दर्ज करवा देगा, जनता इस बात से खुश होगी कि अपने विरोध कर देश का भला कर दिया जबकि असल में वो अपनी भावी पीढ़ी के लिए खड्डे खोद रहे बस…।

आज भी देश में भुखमरी चर्म पर है 28% लोग आज भी एक समय का भोजन कर पाते है उन्हे दोनो समय का भोजन नसीब नही होता, अगर केंद्र या राज्य में बैठी सरकारों ने कोई व्यवस्था कर भी रखी होगी तो विपक्ष ने कभी उसे अवगत नही करवाया अपने मतदाताओं को….। आज भी 37% बच्चों ने स्कूल का मुंह तक नही देखा, जबकि केंद्र और राज्य सरकारें लगातार स्कूल से जोड़ने का प्रयास करते है पर विपक्ष क्या करता है। विपक्ष कभी कोशिश नही करता कि वो उन परिवारों तक पहुंचे जो शिक्षा से वंचित रह रहे है। उन्हे जागरूक कर स्कूल तक पहुंचाए, जब वो ऐसा करेंगे तभी तो शिक्षा पर जो केंद्र या राज्य सरकार का बजट है। उसका उपयोग होगा और नए फंड के लिए विपक्ष अपना किरदार अदा करेगा। वहीं आज भी 34% जितने लोग खुले आसमान के नीचे सोते है उनको घर नसीब नही हुआ, कोई पुल के नीचे, कोई फुटपाथ पर तो कोई कोई तो सड़क पर ही सोया नजर आएगा। इनके लिए केंद्र और राज्य सरकारें नई नई योजना लाती है पर जागरूकता की कमी कहिए या सभी द्वारा धांधली, जरूरतमंद तक ये योजनाएं नही पहुंचती और राजनीति पर काबिज लोग ही इसका दुरुपयोग करते हुए अपने लोगो के सहयोग से खुद ही कब्जा कर लेते है। जबकि विपक्ष को चाहिए कि वो ऐसे तमाम छतविहीन लोगो को छत उपलब्ध करवाने में सत्ताधारी दलों का सहयोग करे ताकि देश में वास्तविक विकास की गंगा बहे। अब खुद के सत्ता में आने पर विकास करवाने का दावा करने वाले भूल जाते है। उनके सत्ता में आने पर भी तो एक विपक्ष होगा जो वही भूमिका निभाएगा जो आज का विपक्ष निभाएगा, ना तो आज के विपक्ष का लक्ष्य जनता का भला है। और आने वाले समय में विपक्ष का लक्ष्य होगा… इन सबमें मरेगा कौन आम जनता।

सच्चा विपक्ष वो होता है जो सत्ता में काबिज दलों के योजना को लागू करते ही उसका बजट का उपयोग करवाकर दवाब बनाए कि और बजट दीजिए अभी ये योजना सभी तक नहीं पहुंची, होता इसका उल्टा है जो आप सबके सामने है। विपक्ष तो केवल अपना वोटबैंक साधने का कार्य करता है।

अब आजकल तो हर मसौदे पर जाति और धर्म की ही राजनीति रह गई है सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों को पता चल गया कि ये आम जनता धर्म और जाति के नाम पर खुद को मिटा सकती है अब आप भले ही कन्हैयालाल टेलर को ले लो या उमेश कोल्हे को, धर्म के नाम पर लड़ाई पक्ष और विपक्ष दोनों ने जीत ली होगी पर इस जंग को हार कौन गया, इन दोनो के परिवार, उन्होंने अपने घर का कमाता हुआ व्यक्ति खो दिया, बलि दे दी धर्म के नाम पर अब आगे क्या ? फिर कोई मुद्दा और फिर कोई बलि… आखिर ये सब कब तक ?

विपक्ष को चाहिए कि आगे आए, लोगो को केंद्र की और राज्य की योजनाओं से जोड़कर सत्ता में बैठी सरकारों के पसीने छुड़ा देवे और दवाब बनाएं कि देश के विकास में आने वाली रुकावटों में मुख्य घटक, शिक्षा – स्वास्थ्य और रोजगार पर अच्छी से अच्छी नीति बनाए और कोई बेघर ना हो कोई भूखा ना सोए।

Sampat Saraswat: Author #JindagiBookLaunch | Panelist @PrasarBharati | Speaker | Columnist @Kreatelymedia @dainikbhaskar | Mythologist | Illustrator | Mountaineer
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