उत्तर प्रदेश में ताजा बर्फबारी

कुछ दशक पहले तक अधिकतर शादियां गर्मियों में होती थी क्योंकि ज्यादातर लोग किसान थे और मई -जून के महीने में गेहूं की फसल कट जाती थी। धान की रोपाई जुलाई से शुरू होती थी, तो बीच का दो- ढाई महीने का समय खाली रहता था। इसलिए शादी करने का यह उपयुक्त समय होता था।

गर्मियों में शादी करने का एक फायदा यह भी था कि कम और हल्के कपड़ों से काम चल जाता था। रजाई-गद्दे की भी जरूरत नहीं पड़ती थी। शिक्षकों और छात्रों के लिए भी सहूलियत रहती था क्योंकि इस समय ग्रीष्मावकाश होता था।गर्मी की छुट्टियों के कारण बारात को विद्यालय में रुकाने की निःशुल्क सुविधा रहती तथा उनको भोजन कराने हेतु टाट-पट्टी भी वहीं से मिल जाते थी।गर्मियों में ताड़ी भी सहज ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहती थी, तो नागिन से लेकर भांगड़ा तक सारे डांस बाराती पूरी मस्ती से कर पाते थे।

लेकिन पिछले कुछ समय से हम सभी ने देखा है कि अधिकतर शादियां सर्दियों में ही हो रही हैं। इसका कारण यह है कि खेती में मशीनों की सहायता से कुछ ही दिन में सारा कार्य हो जाता है। वैसे भी किसानी अब फुल टाइम जॉब नहीं रह गया है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी है, तो कपड़े से लेकर गद्दा -रजाई तक की टेंशन नहीं रही। टेंट वाले को पैसे दो, वह सारी व्यवस्था कर देता है। शाम वाली दवाई भी अब बोतल में लगभग हर जगह आसानी से उपलब्ध है। सर्दियों की शादी का एक फायदा यह भी है कि किसी भी तरह का भोजन परोसा जा सकता है और उसके खराब होने का भी डर भी नहीं रहता है।

लेकिन मेरे विचार से सर्दियों की शादी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि महिलाओं का मेकअप घंटों खराब नहीं होता है। गर्मियों में सबसे महंगा वाला “डायमंड रोज मेकअप” भी पसीने के साथ कुछ ही देर में बह जाता था।चूंकि मैं महिला सशक्तीकरण का धुर पक्षधर हूँ, इसलिए मुझे सर्दियां पसंद है।

और मैं चाहता हूं कि पूरे देश में विशेषकर मेरे गृह राज्य उत्तर प्रदेश में “मई-जून के महीने में भी शिमला जैसा मौसम रहे।”

नोट- संलग्न तस्वीरें कानपुर और प्रयागराज में हुई ताज़ा बर्फबारी की हैं।

बुलडोजर बाबा पुराने फॉर्म में!

(विनय सिंह बैस)
जून में भी शिमला जैसे मौसम की इच्छा रखने वाले

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