मानसिक दिवालियापन या परिपक्वता की कमी?

सुनें तो होगे ही है ‘दिल बहलाने को मिंया, ख्याल अच्छा है’। ठीक ऐसा ही हाल हो गया आज भारत सरकार का जिसका पूरा ध्यान अब सिर्फ इस बात पर है कि कैसे वे अरब देशों की नाराज़गी को मिटाएं। हद है मियां उनको मनाते मनाते ये क्यूं भूले जा रहे हैं कि सत्ता की चाबी भारत की जनता ने आपको सौंपी है न कि अरब देशों ने।

नुपुर शर्मा के एक बयान (जोकि तथ्यों के हिसाब से सही है) के चक्कर में ये मुस्लिम देश क्या नाराज हुए आपने ने तो नुपुर शर्मा को अपनी राजनीतिक पार्टी से ही बाहर कर दिया। क्या मियां अब वे अरब देश भारतीय नागरिकों को बताएंगे कि भारतीय को क्या और कैसे बोलना है जिनके खुद के देश में ना संविधान है और ना कोई मानवीय अधिकार।

खैर अब हम भारतीय भी क्या ही कहें, आखिर हमारे प्रधानमंत्री जी की कुर्सी भी तो बचनी जरूरी है और तो और उन्हें कुछ तथाकथित मानवतावादी विचारकों और शांतिदूतों को भी तो खुश करना था। आखिर ‘सबका साथ’ वाले विचार के व्यक्ति हैं।

थोड़ा सा अतिरिक्त प्रयास करने की और आवश्यकता है प्रधानमंत्री जी शायद कुछ सीटें अरब देशों में भी निकल आएं आखिर 56 इंच का सीना जो है आपका।

अच्छा एक अंदर की बात बात बताता हूं आपको प्रधानमंत्री जी ठीक जैसे आप अरब देशों को खुश करने में लगे हुए हैं ना ठीक वैसे ही एक थोड़ी सी दुर्लभ ‘पर उदार ह्रदय वाले लोगों की’ भीड़ भी अरब देशों के लिए तहे दिल से प्यार दिखाने में लगे हुए हैं। परिस्थितियां तो ऐसी हो चुकी है कि कभी कभी तो समझ ही नहीं आता मैं भारत में हूं या किसी अरब देश में। हद तो तब हो गई जब एक मौका ऐसा आया जब मुझे अपने दूरभाष यंत्र पर अपनी वर्तमान स्थिति ‘करेंट लोकेशन’ देखनी पड़ी कि कहीं गलती से हम भी तो शेख साहब के मोहल्ले में तो नहीं आ गए। खैर जाने दीजिए हम तो सेकुलर हैं हमें इन सबसे क्या।

कभी अरब जाना हुआ तो याद करना ‘माननीय’…..

                  धन्यवाद

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