भारत को भिखारियों का देश कहने वाला अमेरिका आज खुद भीख मांग रहा

जी हाँ मित्रों आप एक बार फिर चौंक गए, आप सोच रहे होंगे, दुनिया की एक मात्र महाशक्ति अमेरिका भला भीख क्यों मांगेगा, चलिए मैं आपको बताता हूँ की आखिर पूरा मामला है क्या?

पृष्ठभूमि:-

चीन से युध्द समाप्त हुए अभी कुछ ही समय बीते थे। देखते ही देखते नेहरू जी को अपने इस जीवन से मुक्ति मिल चुकी थी। श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश की बागडोर अपने मजबूत कंधो पर उठा रखी थी। उस समय प्राकृतिक रूप से भी देश बड़े ही बुरे दौर से गुजर रहा था। बारिश ना होने के कारण पुरे देश के किसान बेहाल थे। सूखे के कारण खेतों की उपजाऊ भूमि पत्थर की तरह कठोर हो चुकी थी और देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। मित्रों उस दौरान हम अमेरिएक से गेंहू का आयात करते थे। ये अमेरिकन हमें सबसे खराब गेंहू (जो सुवरो को खाने के लिए दीया जाता था) का निर्यात करते थे, परन्तु विवशता थी अत: हमें उस गेंहूँ को ही भारत में लाना पड़ता था।

उधर अमेरिका से खैरात में मिले आयुध सामग्री (खासकर पैटन टैंको के जखीरे) और भीख में मिले डॉलर से नापाक पाकिस्तान के असुरों को यह आभाष हुआ की यही सही वक्त है यदि हम भारत पर आक्रमण कर दे, तो गजवा ए  हिन्द करने से हमें कोई नहीं रोक पायेगा

बस फिर क्या था, पाकिस्तान ने अपनी औकात देखी नहीं और उसने इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया की भारत की बागडोर अब नेहरू के हाथो में नहीं अपितु श्री लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे सीधे-सादे, सरल पर गंभीर व्यक्तित्व के हाथो में आ चुकी है। खैर उसने भारत पर आक्रमण करने की भूल कर दी और परिणामस्वरूप  शास्त्री जी के आदेश पर भारतीय सेना ने अद्भुत पराक्रम और शौर्य का परिचय देते हुए सिमित संसाधनों के बावजूद नापाक पाकिस्तानियों  को लाहौर और क्रंची में घुस कर जमीन पर घिसरा घिसरा के मारना शुरू किया, पुरे पाकिस्तान में हड़कंप मच गया। नापाक पाकिस्तान का हुक्मरान जनरल अयूब खान भारतीय प्रधानमंत्री का अद्भुत नेतृत्व और साहस देखकर भौचक्का रह गया। पुरे पाकिस्तान में भारतीय  सेना ने वो वीरता और पराक्रम दिखाया  की पाकिस्तान के साथ साथ अमेरिकी स्वाभिमान के प्रतीक उसके टैंकों की धज्जियाँ उड़ा के रख दी।

युद्ध में बुरी तरह परास्त हो रहा पाकिस्तान घबड़ा कर अपने आका अमेरिका के पास पहुंचा और गिड़गिड़ाया की भारत को रोको वरना पाकिस्तान मिट जायेगा। फिर क्या था ताकत के नशे में चूर अमेरिका ने भारत पर दवाब डालते हुए कहा की भारत तुरंत युद्ध रोक दे वरना हम उसको गेंहूँ का निर्यात बंद कर देंगे। मित्रों अमेरिका को लगा की खाद्यान्न संकट से जूझ रहे भारत के पास कोई चारा नहीं होगा ये धमकी सुनने के बाद। पर अमेरिका भूल गया की अब भारत के पास एक राष्ट्रभक्त और स्वाभिमानी नेतृत्व है।

मित्रों अमेरिका की धमकी सुनने के बाद भी हमारे प्रिय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने तत्काल दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली की और एक अमरता को प्राप्त होने वाला नारा “जय जवान जय किसान” देते हुए पुरे देश से  विनती की “अगर हर देशवासी एक वक्त का खाना त्याग दे तो हम इस खाद्यान्न संकट से मिलकर छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं” और फिर क्या था अपने प्रधानमंत्री के इस प्रार्थना को आदेश मानकर देश की जनता ने मिलकर खाद्यान्न संकट से मुकाबला किया और एक वक्त के भोजन का त्याग कर अमेरिका के अभिमान को अपने पैरों तले कुचल डाला।

खैर मित्रों उसके पश्चात किस प्रकार एक षड़यंत्र के तहत उज्बेकिस्तान के ताशकंद में हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी की हत्या करवा दी गयी ये इतिहास के पन्नों में अनदेखे और अनसुलझे रहस्य की भांति विद्यमान है।

मित्रों इसके पश्चात जब श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अमेरिका की यात्रा की, तब उस देश के बड़े बड़े अखबारों में खबर छापी गयी “भिखारियों के देश की प्रधानमंत्री कटोरा लेकर”, खैर ये बाते अब इतिहास हो चुकी हैं। पर समय करवट जरूर लेता है और बड़ी बड़ी शक्तियों को भी कभी न कभी झुकना ही पड़ता है।

भारत के विरुद्ध प्रोपेगेंडा:-

मित्रों हम ब्रिटेन, जर्मनी या अमेरिका जैसे देशो की धूर्तता और चालाकी से तो परिचित है। यूक्रेन और रसिया के मध्य युद्ध शुरू होने से पूर्व यूरोप में सब कुछ ठीक ठाक था। यूरोप में मुख्यत: यूक्रेन और रसिया ही मुख्य गेंहू उत्पादक देश हैं। अमेरिका में भी कुछ हद तक गेंहू की पैदावार होती है, खैर इन देशो ने मिलकर भारत के विरुद्ध प्रोपेगेंडा फैलाया और जोर शोर से कहने लगे कि “भारत का गेंहू बिलकुल बेकार गेंहू है”, इस प्रोपेगण्डे का असर ये हुआ कि “मिश्र” ने भारत से गेंहू खरीदने के सौदे को वापस ले लिया। पर जैसे ही यूक्रेन और रसिया का युद्ध आरम्भ हुआ सबके हाथ पाँव फूल गए।सबको बस एक ही देश नजर आने लगा और वो था भारत। मिश्र ने फिर से भारत से बातचीत आरम्भ की और हेकड़ी  दिखाते हुए कहा कि पहले हम जाँच करेंगे फिर संतुष्ट होने पर ही खरीदेंगे।

मित्रों भारत चाहता तो इंकार कर सकता था, परन्तु उसे ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका के प्रोपेगेंडा का जवाब भी तो देना था, अत: मिश्र के सरकार की शर्त मानकर भारत ने उन्हें जांच करने के लिए आमंत्रित किया|  नियत दिन और समय पर मिश्र के जांचकर्ता भारत में आये और उन्होंने गेंहू के कई किस्मों की जाँच की और कहा कि “हमने अब तक जितने भी गेंहू के सेम्पल देखे, उनमे से ये सर्वश्रेष्ठ हैं”, तो मित्रों मिश्र का ये कहना जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका के मुंह पर एक करारा तमाचा था जिसकी गूंज उन्हें कई वर्षों तक सुनाई देगी।  

यूरोप में खाद्यान्न संकट:-

मित्रों पहले कोरोना फिर विश्वव्यापी मंदी और अब यूक्रेन और रसिया का युद्ध इन तीनों  का जबरदस्त असर खद्यान्न व्यवस्था पर पड़ा है। चूँकि भारत में हमारे अन्नदाताओ के कड़ी मेहनत से जबरदस्त पैदावार हुई थी अत: भारत ने पुरे कोरोना काल के दौरान ना केवल देश के ८२ करोड़ जनता को मुफ्त में राशन दिया अपितु कोरोना के कारण भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके कई छोटे और गरीब देशो को भी अन्नदान दिया।

बात चाहे अफगानिस्तान की हो या श्रीलंका की या फिर रसिया की भारत ने हजारो टन खाद्यान्न सहायता के रूप में इन देशो को दिया। अब भारत को जैसे ही लगा की अब हमारे देश में खाद्यान्न का भंडारण उतना ही है जिसमे आराम से भारत के नागरिको का पेट भरा जा सकता है तो भारत ने गेंहूँ के निर्यात को नियंत्रण में लेकर ये घोषणा कर दी की अब जो भी  गेंहू का निर्यात होगा वो भारत की सरकार और इच्छुक देश के सरकार के मध्य होगा अर्थात अब दूसरे देश भारत में कृषि उत्पादों के आयात निर्यात का करोबार करने वाले प्राइवेट संगठनो या दलालों के माध्यम से गेँहू  की खरीद फरोख्त नहीं कर पाएंगे, उन्हें इसके लिए भारत सरकार से बात करनी होगी।

बस भारत की ये घोषणा ही यूरोप के इन अमिर देशों के गले की हड्डी बन गई है, क्यों आइये समझाते हैं:-

१ सामान्यत: होता ये है कि दुनिया के अमिर देश  ऊँचे मूल्य पर अधिक से अधिक मात्रा में खाद्यान्न खरीदकर अपने यंहा इसका भंडारण कर लेते हैं और जब खाद्यान्न की विशेष रूप से कमी हो जाती है तो यही देश दुगुने या तीन गुने दामों पर इन्हे बेचकर लाभ कमाते हैं;

२:- इससे कालाबाजारी और मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलता है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य

३:- इससे गरीब देश अमीर देशो का मुकाबला नहीं कर पाते और लाचार और असहाय अवस्था में पड़कर सामान्य से ज्यादा कीमत पर अनाज खरीदने के लिए बाध्य हो जाते हैं और जिसके लिए उन्हें मोठे ब्याज दर पर ऋण भी लेना पड़ता है।

अत: भारत ने इन्हीं सब कारकों को ध्यान में रखकर गेंहू के निर्यात को सरकार के नियंत्रण में ले लिया है और दुनिया से आग्रह किया है की आप हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार गेंहू ख़रीदीने का प्रस्ताव भेजो हम उस पर विचार करके निर्यात करने का निर्णय लेंगे। आज अमेरिका भी भारत से गेंहू के निर्यात को प्रतिबंधित न करने की गुहार लगा रहा है, ये वही अमेरिका है जो कभी भारत को भिखारियों का देश कहा करता था, आज भारत से गेंहू मांग रहा है। ये वही ब्रिटेन है जो भारत को साँप और बिच्छुओं का देश  कहकर भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करता था और आज भारत के सामने गिड़गिड़ा रहा है “गेंहू” के लिए।

मित्रों यही होता है एक कुशल नेतृत्व के हाथो में देश की बागडोर सौंपने का परिणाम। सही वक्त पर लोकतंत्र ने सत्ता का परिवर्तन करके नकारे लोगों के हाथों से सत्ता लेकर एक राष्ट्रभक्त और भारत के जनमानस के जीवन को बारीकी से जीने वाले व्यक्तित्व के हाथों में सौंप दी और आज पूरा विश्व भारत के आगे नतमस्तक है। जय भारत का जनमानस आपकी जय हो, निसंदेह आपने ना केवल भारतवर्ष को समृद्ध किया अपितु आपने हजारों वर्ष पुरानी एक मात्र जीवित सभ्यता और संस्कृति को फिर से दुनिया का सिरमौर बना दिया। आप धन्य है, आपको कोटि कोटि धन्यवाद।

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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