द बॉलीवुड फाइल

आजकल एक फिल्म जो ना सिर्फ धूम मचा रही है बल्की खूब सुर्खियां बटोर रही है, द कश्मीर फाइल। जिसकी सफलता की गूंज संसद मैं भी सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री तक जिसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। नित नई नई रिकॉर्ड बनाती हुई यह फिल्म आम लोगों की खास बन गई है।

इन सब के बीच एक जगह ऐसी भी है जहां ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ है जैसे मातम मनाया जा रहा हो। जी बिल्कुल सही समझे हैं आप, द बॉलीवुड। क्या बॉलीवुड के फिल्म मेकर, इस फिल्म की सफलता को, अपनी मोनोपली के जनाजे, की तैयारी मान बैठे हैं। क्या अपने से भिन्न विचारधारा वाले, व्यक्ति, फिल्म की सफलता से वह डरे हुए हैं। पूरी तरह से बायकाट करने के बावजूद भी किसने हिमाकत की इस फिल्म को सफल करने की। भाग्य विधाता तो वह है, तो किस ने इस फिल्म का भाग्य बदला।आम जनता को कीड़े मकोड़े समझने वाले इन बॉलीवुड हस्तियों को, यह समझना चाहिए कि आम जनता ही, जिसको चाहे अर्श बैठा सकती है और जिसको चाहे फर्श पर। आम जनता ने ही उन्हें अनजाने में ही भाग्यविधाता बना दिया है।

90 के दशक से बॉलीवुड एक खास विचारधारा वाले लोगों के चुंगल में बुरी तरह फंस गया। वरना इससे पहले तो बॉलीवुड, साहित्य की एक विधा थी। जहां योग्य लोगों का सम्मान होता था, बिना किसी भेदभाव के। जहां आम जनता, इन कलाकारों की योग्यता परखती और उनकी भाग्यविधाता बनती थी। लेकिन अब आम जनता की जगह मूवी माफियाओं ने ले ली है।

क्या आप जानते हैं फिल्म द कश्मीर फाइल और बॉलीवुड में भी बहुत सी समानताएं हैं। शायद इसीलिए बॉलीवुड वालों ने मौन व्रत धारण किया हुआ है। जैसे उस समय कश्मीर अलगाववादी ताकतों के पूरी तरह से नियंत्रण में था, ठीक वैसे ही बॉलीवुड भी एक खास विचारधारा वाले लोगो के नियंत्रण में है। जैसे अलगाववादी ताकतों की विरुद्ध बोलने वालों को मार दिया जाता था ,ठीक वैसे ही बॉलीवुड में किंग मेकर की चमचागिरी ना करने वालों को, या तो इंडस्ट्री से बाहर कर दिया जाता है या फिर उसका बहिष्कार करके, उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जाता है। यह अपने से विरुद्ध विचारधारा वालों को इंडस्ट्री में टिकने ही नहीं देते ।कश्मीर में नारे लगते थे कश्मीर में रहना है तो अल्लाह हू अकबर कहना होगा, ठीक वैसे ही बॉलीवुड में रहना है तो उनकी विचारधारा में जीना होगा। अगर यह गलत है तो क्यों यहां के नामी कलाकार देश की उस यूनिवर्सिटी में जाकर, अपनी फिल्म का प्रमोशन करते हैं ,जहां भारत तेरे टुकड़े टुकड़े होंगे के नारे लगाए जाते हैं।

जहां भारत विरोधी गतिविधियां होती है, यह लोग, उनसे आशीर्वाद लेने जाते हैं। यह लोग वहां जाकर अपने किन आकाओं को खुश करना चाहते हैं। जिससे कि इंडस्ट्री में टिके रहें। इतने स्वार्थी होते हैं कि इन्हें सिर्फ अपने से मतलब है, देश से इनका कोई लेना देना नहीं। देश में कितनी भी बड़ी त्रासदी आ जाए लेकिन इन अरबपतियों की जेब से देश के लिए एक पैसा नहीं निकलता। स्वार्थी, लोभी लोगों को आम जनता ने सर आंखों पर बैठाया हुआ है। उस जनता ने जिन्हें यह सिर्फ एक कीड़े मकोड़े समझते हैं। अब वक्त आ गया है इन्हें अर्श से फर्श पर लाने का।

उस समय कश्मीर में भी कुछ ऐसे राष्ट्रभक्त थे, जो ना चाहते हुए भी देशद्रोहियों की हां में हां मिलाने को मजबूर थे, ठीक वैसे ही आज बॉलीवुड में भी कुछ ऐसे राष्ट्रभक्त हैं, जिन्हें बॉलीवुड में टिके रहने के लिए विदेशों में बैठे हुए, मूवी माफियाओं की हां में हां मिलाने पड़ रही है और इन मूवी माफियाओं को लगता है यह जिसे चाहे चढ़ा दे और जिसे चाहे गिरा दे।यह अपने चमचों की फिल्मों की इतनी पब्लिसिटी करते हैं, जिससे वह आम जनता के दिलों दिमाग पर छा जाती है और आम जनता उस फिल्म को देखने के लिए विवश हो जाते हैं। जिस वजह से गंगूबाई जैसी फिल्में भी हिट फिल्मों की कैटेगरी में आ जाती है।बॉलीवुड में राष्ट्र वादियों का अघोषित बहिष्कार किया जाता है, जिसकी बहुत बड़ी कीमत राष्ट्र वादियों को चुकानी पड़ती है।
लेकिन द कश्मीर फाइल की सफलता ने उन मूवी माफियाओं के चेहरे पर एक जोरदार तमाचा मारा है, जिन्हें, यह लगता है कि हम भाग्य विधाता हैं। कोशिश तो पूरी हुई थी इस फिल्म को फ्लॉप करवाने की, इसे प्रमोशन के लिए कोई भी मंच नहीं दिया गया। एनडीटीवी ने तो इसे फिल्में मानने से इनकार कर दिया था ।उनकी नजरों में यह एक फिल्म नहीं प्रोपेगेंडा है। और सच में ही, यह फिल्म नहीं, क्रांति है ।जिस क्रांति में हर एक राष्ट्रवादी शामिल होना चाहता है। इस क्रांति का हिस्सा बनकर, हर एक राष्ट्रभक्त, देश विरोधी विचारधाराओं को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।यह तमाचा है बॉलीवुड में बैठे हुए टुकड़े टुकड़े गैंग के लोगों पर, जो देश को बांटना चाहते हैं।

उस समय कश्मीर में देशभक्त मुसलमान जिन्होंने हिंदु भाइयों की सहायता की उन्हें भी मार दिया गया, ठीक वैसे ही इस समय बॉलीवुड में, टुकड़े टुकड़े गैंग वाले किसी राष्ट्र वादी की फिल्म पर वैसे ही चुप्पी साध लेते हैं। ना तो फिल्म की तारीफ होती है और ना कलाकार की हीं की प्रशंसा। इन्हें गंगूबाई जैसी फिल्म में ‘चाइल्ड आर्टिस्ट’ आलिया भट्ट के अभिनय में, परिपक्वता नज़र आती है। क्या इन्होंने आम जनता को अंधा या मूर्ख समझ रखा है ,कि यह जो भी कह देंगे हम मान लेंगे। लेकिन थलाइवी जैसी फिल्म में कंगना रनोत के अभिनय की कोई बात नहीं करता। द कश्मीर फाइल में अनुपम खेर जैसे, जो अपने आप में ही एक अभिनय का स्कूल है, कि कोई तारीफ नहीं करता।

इसलिए अब वक्त आ गया है ऐसे टुकड़े टुकड़े गैंग की विचारधाराओं वाले लोगों को बॉलीवुड से उखाड़ फेंकने का ।नहीं तो जो हाल कश्मीर में राष्ट्र भक्तों का हुआ था, वही हाल बॉलीवुड में भी होने वाला है। इनकी फिल्में देखना ही बंद कर दो, अपने आप इनके अकल ठिकाने आएगी। वैसे तो यह लोग आम जनता से इतना कमा चुके हैं कि उनके सात पुस्ते भी आराम से खा ले। लेकिन इनके गुरुर को तोड़ना भी बहुत जरूरी है। मूवी माफियाओं को बताना भी जरूरी है कि भाग्य विधाता वह नहीं, आम जनता है।

अब वक्त आ गया है कि हमें यह संदेश उन तक पहुंचाना है, बॉलीवुड में वही राज करेगा जो देश हित की बात करेगा।

इस इंडस्ट्री की दादागिरी तो देखिए, जितनी सफल यह फिल्म हुई है, इसकी जगह कोई और फिल्म होती तो अभी तक इस फिल्म से जुड़े हुए हर व्यक्ति के आगे डायरेक्टर, प्रोड्यूसर की लाइन लग जाती और उन सब को रातों रात स्टार बना दिया जाता। लेकिन इस फिल्म से जुड़े लोगों की यह बदकिस्मत ही कही जाएगी कि ना तो उन्हें, स्टार्स की श्रेणी में रखा जाएगा और ना ही कोई उन्हें अपनी फिल्में देगा। अब शुरू हो जाएगा उनका अघोषित बहिष्कार। इस फिल्म में कुछ नारे लगाए गए थे ,जो यदा-कदा हमें अपने आसपास भी सुनने को मिल जाते हैं- हमें चाहिए आजादी, हम लेकर रहेंगे आजादी, संघवाद से आजादी और मनुवाद से आजादी।

चलो, कुछ नारे हम भी बॉलीवुड के लिए बुलंद करते हैं। हम लेके रहेंगे आजादी, वंशवाद से आजादी और परिवारवाद से आजादी, मूवी माफियाओं से आजादी, देशद्रोहियों से आजादी।क्योंकि अगर यह आजादी नहीं मिलेगी, तो एक समय ऐसा आएगा जब विदेश से कोई डायरेक्टर प्रोड्यूसर आएंगे और बॉलीवुड पर फिल्म बनाएंगे। जिसका नाम होगा “द बॉलीवुड फाइल”

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