RLD पर फिर मंडराया मान्यता रद्द होने का ख़तरा

चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय लोकदल की कमान उनके बेटे जयंत चौधरी के हाथों में आ गयी हैं. अपने पिता अजित सिंह के निधन के बाद उपजी सहानुभूति और कथित किसान आंदोलन के नाम की नैय्या के सहारे अपनी पार्टी आरएलडी की मान्यता बचाने के लिए बड़ी छलांग लगाने की कोशिश की थी. पिछले दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों बुरी तरह से पटखनी खाने के बाद पार्टी के अस्तित्व बचाने का दारोमदार जयंत चौधरी के कंधो पर हैं.

दरअसल लोकसभा चुनाव 2019 के बाद चुनाव आयोग ने तीन राष्ट्रीय पार्टियों और छह राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टियों की मान्यता रद्द करने का नोटिस दिया था, इसमें राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) सहित पांच पार्टियाँ शामिल थी. इन सभी छह पार्टियों ने राज्य स्तरीय पार्टी होने के लिए आवश्यक पांच शर्तों में से एक शर्त को भी पूरा नहीं किया था. जिसकी वजह से उनकी राज्य स्तरीय पार्टी की मान्यता खतरे में आ गयी थी. हालांकि निर्वाचन आयोग ने सभी छह पार्टियों को सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखने का आखिरी मौका दिया था. गौरतलब है कि इससे पहले चुनाव आयोग के नोटिस के जवाब में सभी पार्टियों ने गुहार लगाई थी कि उनकी राज्य स्तरीय पार्टी की मान्यता खत्म न की जाए और उन्हें अगले चुनाव तक अपनी लोकप्रियता सिद्ध करने का अवसर दिया जाए.

बता दे कि क्षेत्रीय पार्टी की मान्यता बरकरार रखने के राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को विधानसभा सीटों की 3% सीटें यानि कम से कम 13 सीटें या फिर कोई भी सीट जीते बगैर 8% वोट हासिल करना जरूरी था. जयंत चौधरी ने अपनी पार्टी की मान्यता बचाने के लिए बहुत ही सोच-विचार कर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन के लिए वेस्ट यूपी की 36 सीटें मांगी थी. जयंत चौधरी को मुस्लिम और जाट के साथ गुर्जर वोटों के सहारे कम से कम 30 सीटें जीतने का भरोसा था.

मगज फार्मूला हुआ फेल

जयंत चौधरी ने अपने पिता के हिट फ़ॉर्मूला मजगर यानि मुस्लिम-जाट-गुर्जर-राजपूत के पिछले तीन चुनावों में असफ़ल होने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ मिलकर मगज फार्मूला यानि मुस्लिम- -गुर्जर-जाट के मतों का गठबंधन बनाने का दांव चला था . गुर्जरों के वोट अपने पाले में करने के लिए जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने पांच गुर्जर समाज के प्रत्याशियों को टिकट दिए तथा सम्राट मिहिरभोज को लेकर उपजे विवाद की आग में घी डालने की कोशिश की थी,हालांकि चुनाव परिणाम बता रहे हैं गुर्जर मतदाता भाजपा के साथ खड़ा रहा. ये मुज्ज़फरनगर दंगों के दंश का ही प्रभाव था आखिरी समय में जयंत चौधरी ने मुज्ज़फरनगर जिले में मुस्लिम प्रत्याशियों के टिकट काट दिए थे तथा पुरे जिले में किसी भी सीट से मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा था. यूपी विधानसभा चुनाव में जाट समाज ने अपने समाज के प्रत्याशी के लिए राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) को वोट दिया मगर दूसरी जगह मुस्लिम कैंडिडेट को वोट ना करके वो भाजपा के जाट कैंडिडेट के साथ खड़ा दिखा. भाजपा की कुशल रणनीति और घेराबंदी के सामने अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का मगज फार्मूला धराशाही हो गया था.

गठबंधन की हवा हुई फुस्स

लुटियंस मिडिया और कुछ पत्रकारों ने जिसप्रकार से पश्चिमी उ॰प्र॰ में भाजपा का पुरी तरह से सूपडा साफ होने का नरेटिव गढकर चलाया, कहीं ना कही भाजपा समर्थकों के मन में ये संशय अवश्य पैदा कर दिया था कि इसबार सपा-रालोद गठबंधन से भाजपा को पार पाना मुश्किल होगा। पहले चरण के मतदान के बाद जमीनी स्तर की रिपोर्ट से जयंत चौधरी को समझ आ गया था कि उसके हाथ अब कुछ नहीं लगने वाला हैं, ये ही कारण रहा जयंत चौधरी ने दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के बीच में प्रचार से किनारा कर लिया था तथा वे पुरे चुनाव में कहीं नही दिखाई दिए।चुनाव परिणाम से भी साफ हो गया है कि आरएलडी केवल पहले चरण में जीत सकी जिसमे आठ सीटों पर कामयाब हो सकी। भाजपा के लिए जिस तरह से वेस्ट यूपी के पहले दो चरणों मे भरी नुकसान की कहानियाँ गढी गयी थी, जनता जनार्दन ने उसको पुरी तरह से ध्वस्त कर कर दिया।

 चुनाव परिणाम के बाद पार्टी के भीतर का अंतर्द्वंद अब खुलकर सामने आ रहा हैं, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने टिकट बेचने और दलित-मुस्लिम गठजोड को दरकिनार करने जैसे आरोप लगाकर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया हैं, पार्टी के प्रवक्ता सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी ने  मसूद अहमद के आरोपों को आधारहीन और झूठे बताया हैं हालांकि इसपर आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी हैं, पार्टी के भीतर मचे कलह को दबाने की कोशिश की जा रही हैं। जयंत चौधरी ने चुनाव में हुए भारी नुकसान पर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओ द्वारा भीतरघात करने की आशंका जताते हुए अपनी पार्टी की सभी इकाईयों को भंग कर दिया हैं।

मान्यता बचाने का मौका गंवाया

विधानसभा चुनाव 2022 में 36 सीटों पर लड़ने वाली आरएलडी 2.8 प्रतिशत मत के साथ केवल 8 सीटें जीतने में कामयाब हो पायी हैं,चूंकि पार्टी को अपनी मान्यता को बचाने के लिए 3 प्रतिशत से अधिक मत के साथ कम से कम 13 सीटें जीतनी बहुत  की आवश्यक थी, इसलिए माना जा रहा हैं चुनाव आयोग जल्दी ही पार्टी को मान्यता रद्द करने के संबंध में नोटिस जारी कर सकता हैं और इसबार किसी भी प्रकार की रियायत देने का मौका ना दे.

सोशल मीडिया पर आरएलडी के छह विधायकों के भाजपा में जाने की अटकलें भी तेज़ी से वायरल हो रही हैं, इसमे कितनी सच्चाई हैं ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, इस बात को बल इसलिए भी मिल रहा हैं, 2017 में पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब हुई थी, पार्टी ने अपने विधायक पर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर पार्टी से बाहर कर दिया था, एकमात्र विधायक ने भाजपा का दामन थम लिया था.राष्ट्रीय लोकदल का इतिहास रहा हैं दल और गठबंधन बदलने का इसलिए माना जा सकता हैं भविष्य में ऐसा होता हैं तो कोई बड़ी बात नहीं होंगी.

रिपोर्ट – अभिषेक कुमार

(Political & Election Analyst / Follow on Twitter @abhishekkumrr )

Abhishek Kumar: Politics -Political & Election Analyst
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