लताजी से सम्बन्धित कुछ यादगार वाकये

आध्यात्मिक गुरू विद्या नरसिम्हा भारती द्वारा ‘स्वर मौली’ की उपाधि से सम्मानित स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकरजी को अन्तिम विदाई पूरे राजकीय सम्मान के साथ दी गयी। इनके बारे में जितना भी लिखें कम ही पड़ेगा। फिर भी प्रबुद्ध पाठकों से जैसा याद है, कुछ खास वाकये साँझा करना चाहता हूँ। जो इस प्रकार है-

1] भारतीयता व राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत सदैव हँसमुख, दृढ़प्रतिज्ञ लताजी ने 1942 से अभी तक अर्थात सात दशकों से अधिक समय तक हिंदी, मराठी, तमिल, कन्नड़ और बंगाली समेत 36 भारतीय भाषाओं में लगभग 30,000 एकल, युगल या सामूहिक गीत संगीत जगत को दे कर स्वर्गलोक के लिये प्रस्थान किया है।

2] दूरदर्शन पर मोदीजी ने बिल्कुल ठीक ही कहा कि “मेरे जैसे बहुत से लोग गर्व से कहेंगे कि उनका उनके साथ घनिष्ठ संबंध था, आप जहां भी जाते हैं, आप हमेशा उसके प्रियजनों को ढूंढ सकते हैं”। उनकी सुरीली आवाज हमेशा हमारे साथ रहेगी, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं।

3] जैसा सर्वविदित है महान गायिका ने वर्ष 2013 में कहा था कि वह मोदीजी को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देखने की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं।

4] दृढ़प्रतिज्ञ लताजी ने 50 के दशक में उस समय के सर्वाधिक लोकप्रिय गायक ग़ुलाम मुहम्मद दुर्रानी के व्यवहार के चलते अपमानित महसूस किया। तब बिना समय गँवाये उसी समय संगीतकार नौशाद साहब को स्पष्ट कर दिया की मैं इस शख़्स के साथ गाना नहीं गाऊँगी और उसके बाद उन्होनें जी एम दुर्रानी के साथ कभी भी गाना नहीं गया।

5] लताजी को क्रिकेट खेल से बहुत ज्यादा लगाव था, जो इस तथ्य से विदित होता है जब लताजी ने मीना और उषा के साथ विश्वकप 2011 में पाकिस्तान के खिलाफ अंत के पहिले के मुक़ाबले के दौरान कुछ खाया-पिया नहीं अर्थात उनलोगों ने निर्जल व्रत रखा था ।पूरे खेल के दौरान भारत की जीत के लिए प्रार्थना की और भारत की जीत के बाद ही सभी ने अन्न-जल ग्रहण किया।

6] 1960 के आस-पास इंदौर में एक कार्यक्रम के दौरान एक बार ऊंचा सुर लगाते वक्त लताजी को जब उनके स्वर-रज्जु में किसी परेशानी के चलते अपनी आवाज फटती महसूस हुई तब उन्होंने अपनी इस परेशानी को इंदौर के मशहूर शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से साँझा की। उसके बाद खाँ साहब के सलाह अनुसार उन्होंने मायानगरी मुंबई से कुछ समय तक बाहर रह ‘‘मौनव्रत’’ रखा। और मौनव्रत समाप्ति पश्चात ‘‘बीस साल बाद’’ (1962) का गीत ‘‘कहीं दीप जले, कहीं दिल’ गा कर संगीत की दुनिया में वापसी की। यहाँ यह भी बता दूँ कि इस गीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था।

7] लताजी एक सनातनी धार्मिक महिला थीं। वे कृष्ण भक्त थीं और वे हमेशा ‘श्री कृष्ण’ लिख कर ही लेखन की शुरुवात करतीं थीं। यही कारण रहा कि भजन गाते वक्त उनके आंसू छलक जाते थे।

8] एक साक्षात्कार के दौरान लताजी ने स्वीकार किया कि सीआईडी (CID) श्रृंखला की तो मुझे लत जैसी लग गयी है। मैं इसे 19 साल से जब से यह शुरु हुआ है तब से देखती आ रही हूँ। इस में भाग लेने वाले सभी कलाकार वगैरह हर साल गणपति पूजा के दौरान मेरे घर आते हैं।

9] आजतक के कार्यक्रम ‘सीधी बात’ में लताजी ने बताया था कि राजकपूर संग उनका (रॉयल्टी) मालिकाना अधिकार शुल्क को लेकर झगड़ा हुआ था और कपूर साहब के मना कर देने पर उन्होनें उनके फिल्मों मे न गाने का निर्णय बता दिया। लेकिन दो-एक फिल्म करने का पश्चात वो मेरे पास आए और उन्होंने मुझे (रॉयल्टी) मालिकाना अधिकार शुल्क दिया। उसके बाद फिल्म बॉबी के वक्त आकर उन्होंने मुझे गाने के लिये कहा।

10] लताजी को लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल अल्बर्ट हॉल में (लाइव) सीधा प्रसारण प्रस्तुति देने वाली पहली भारतीय कलाकार होने का गौरव प्राप्त है।

उपरोक्त वाकयों के अलावा भी लताजी से जुड़े अनेकों ऐसे ऐसे वाकये हैं जो आपको सुनने, पढ़ने में मिलेंगे जहाँ उनकी शालीनता, विनम्रता की छाप ऐसी है कि बड़े से बड़ा दिग्गज भी उनके सजदे में झुका नजर आये तो अचरज मत करियेगा क्योंकि उन्होनें अपने त्याग, सत्यता, कर्तव्यनिष्ठता, व्यावहारिकता, मिलनसारिता वगैरह वगैरह से एक बहुत बड़ी शख्सियत खड़ी की है। यही कारण है कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद बड़े गुलाम अली के कानों में रियाज करते समय जब लताजी के गाने के बोल पड़े तब बड़े ध्यान से लता जी का गाना सुन लेने के पश्चात बरबस बोल पड़े-  ‘कमबख्त, कहीं बेसुरी नहीं होती’।

इसी प्रकार पंडित कुमार गंधर्व लिखते हैं- ‘जिस कण या मुरकी को कंठ से निकालने में अन्य गायक-गायिकाएं आकाश-पाताल एक कर देते हैं, उसी कण, मुरकी, तान या लयकारी का सूक्ष्म भेद वह अर्थात लताजी बड़े ही सहज करके फेंक देती हैं’।

अन्त मेँ आप सभी को संगीत जगत में उनके अतुलनीय योगदान को याद कराते हुये उनकी अनन्त यात्रा पर मैं सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।

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