क्या आप जानते हैं कि भारत का संविधान हस्तलिखित है?

मित्रों आप और हम तो यह अच्छी प्रकार से जानते हैं कि प्रत्येक वर्ष २६ जनवरी के दिन को हम गणतंत्र दिवस के उत्सव के रूप में मनाते हैं। इसका कारण यह है कि २ वर्ष ११ महीने और १८ दिन के मैराथन वैचारिक संघर्ष के पश्चात २६ जनवरी १९५० को हमारे राष्ट्र ने संविधान को अंगिकार किया था। दुनिया का सबसे सरल और लिखित रूप में सबसे बड़ा संविधान हमारे राष्ट्र को भारत रत्न बाबा साहेब श्री भीमराव रामजी अम्बेडकर जी के नेतृत्व में तत्कालीन राष्ट्रपति और भारतवर्ष के प्रथम नागरिक डा. राजेंद्र प्रसाद जी के हाथो में सौपा गया था।

कितने भारतीय जानते हैं कि भारत का संविधान हाथ से लिखा गया है। जी हाँ आपको इस तथ्य से अवगत होने में आश्चर्य महसूस होगा कि पूरे संविधान को लिखने के लिए किसी भी उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया गया था अपितु दिल्ली के रहने वाले स्व श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हाथों से इटैलिक शैली में इस विशालग्रंथ, अर्थात संपूर्ण संविधान को लिखा था।

प्रेम बिहारी उस समय के प्रसिद्ध सुलेख लेखक थे। उनका जन्म १६ दिसंबर १९०१ को दिल्ली के एक प्रसिद्ध हस्तलेखन शोधकर्ता के परिवार में हुआ था। उन्होंने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। वह अपने दादा श्री राम प्रसाद सक्सेना और चाचा श्री चतुर बिहारी नारायण सक्सेना के सानिध्य में पढ़े लिखें और सुलेख लेखक बन गए। उनके दादा श्री राम प्रसाद सक्सेना भी एक कुशल सुलेखक थे। वह फारसी और अंग्रेजी के विद्वान थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों को फारसी पढ़ाने का भी कैरी किया था।

दादाजी ने कम उम्र से ही सुंदर लिखावट के लिए प्रेम बिहारी को सुलेख कला का ज्ञान देना और अभ्यास करना शुरू कर दिया था। सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से स्नातक होने के बाद, प्रेम बिहारी ने अपने दादा से सीखी गई सुलेख कला का उच्च स्तर पर अभ्यास शुरू किया। धीरे-धीरे सुंदर लिखावट के लिए उनका नाम उनके दादाजी के साथ प्रसिद्धी प्राप्त करने लगा।

नेहरू संविधान को हस्तलिखित सुलेख में प्रिंट के बजाय इटैलिक अक्षरों में लिखना चाहते थे अत: जब संविधान छपाई के लिए तैयार हुआ, प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रेम बिहारी को बुलाया। प्रेम बिहारी के उनके पास आने के बाद नेहरूजी ने उन्हें इटैलिक शैली में संविधान को हस्तलिखित करने के लिए कहा और उनसे पूछा कि वह क्या शुल्क लेंगे।

प्रेम बिहारी ने नेहरू जी से कहा, “एक पैसा भी नहीं। भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है और मैं अपने जीवन से काफी खुश हूं। इतना कहने के बाद उन्होंने नेहरू जी से निवेदन किया कि “मेरा एक निवेदन है- कि संविधान के प्रत्येक पृष्ठ पर मैं अपना नाम लिखूंगा और अंतिम पृष्ठ पर अपने दादा के नाम के साथ अपना नाम लिखूंगा।” नेहरूजी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। उन्हें यह संविधान लिखने के लिए एक विशेष घर दिया गया था। प्रेमजी ने वहीं बैठकर पूरे संविधान की पांडुलिपि लिखी।

प्रेम बिहारी नारायण लेखन शुरू करने से पहले २९ नवंबर १९४९ को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद के साथ नेहरूजी के कहने पर शांतिनिकेतन आए। उन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बसु के साथ चर्चा की और तय किया कि प्रेम बिहारी कैसे और किस हिस्से से लिखेंगे और श्री नंदलाल बसु पत्ते के बाकी खाली हिस्से को सजाएंगे।

श्री नंदलाल बोस और शांतिनिकेतन के उनके कुछ छात्रों ने इन अंतरालों को त्रुटिहीन कल्पना से भर दिया। मोहनजोदड़ो की मुहरें, रामायण, महाभारत, गौतम बुद्ध का जीवन, सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार और विक्रमादित्य की बैठक इत्यादि का जिवंत चित्रण किया।

श्री प्रेम बिहारी को भारतीय संविधान लिखने के लिए ४३२ पेन होल्डर की जरूरत थी और उन्होंने निब नंबर ३०३ का इस्तेमाल किया था। ये लिखने वाली निब इंग्लैंड और चेकोस्लोवाकिया से लाए गए थे। उन्होंने भारत के संविधान हॉल के एक कमरे में छह महीने तक लगातार परिश्रम कर पूरे संविधान की पांडुलिपि लिखी।

संविधान लिखने के लिए २५१ पन्नों के चर्मपत्र कागज का इस्तेमाल करना पड़ा। संविधान जब लिखकर तैयार हुआ तो इसका वजन ३ किलो ६५० ग्राम है। संविधान २२ इंच लंबा और १६ इंच चौड़ा है। अपनी सुंदर लिखावट से संविधान के एक एक अक्षर को जिवंत कर देने वाले स्व श्री प्रेम बिहारी का निधन १७ फरवरी १९६६ को हुआ था।

संविधान में अब तक अनगिनत संसोधन किये जा चुके हैं, परंतु सबसे खतरनाक और अलोकतांत्रिक ढंग से ४२ वा संसोधन किया गया जब इमर्जेंसी थोप के पूरे विपक्ष को जेल में ठूस कर मनमाने ढंग से संविधान कि आत्मा अर्थात Prembale (उद्देशिका) में संसोधन करते हुए “सेक्युलर” और “सोशल” जैसे शब्दों को जोड़ दिया गया और इन्ही शब्दों कि आड़ में सनातन समाज के जरूरी अधिकार और हक छीन लिए गए।

जय हिंद
वन्देमातरम्।
नागेन्द्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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