हिजाब, विवाद और क्रिकेट

एक पोशाक को लेकर इतनी उग्रता! सुप्रीम कोर्ट से लेकर विदेशों तक हंगामा!
कौन है ये लोग?
कहां से आते हैं?

आखिर इस सब का कारण क्या है? इसका कारण शायद वर्षों से चली आ रही तुष्टिकरण की नीति है। तुष्टीकरण की नीति के परिणामस्वरूप ही कुछ लोगों को यह भ्रम हो गया है कि वे इस देश के संविधान से ऊपर हैं। उन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। देश का कानून उन पर लागू नहीं होता। वह अपने नियम खुद बनाएं और उनके अनुसार चलें। इसी के चलते मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाएं भी अस्तित्व में हैं। जबकि संविधान समान नागरिक संहिता की बात कहता है। तुष्टीकरण का कोई अंत नहीं, यह वर्षों से चला आ रहा है। शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटना हो, या राष्ट्रगीत वंदे मातरम में संशोधन, कभी सड़क पर नमाज, कभी विद्यालय में हिजाब, कभी गजवा ए हिंद, कभी भारत तेरे टुकड़े होंगे, कभी पाकिस्तान जिंदाबाद, यहां तक कि ये भी कहा गया कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। ये सब लंबे समय से चलता रहा है। जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने हैं।

हिजाब के विरोध में अन्य छात्र भी भगवा धारण कर विद्यालय पहुंच गए। किंतु यहां एक अंतर है। वे भगवा धारण कर विद्यालय आने की जिद नहीं कर रहे हैं। वे केवल प्रतीकात्मक विरोध स्वरूप भगवा धारण कर रहे हैं। हिजाब धारी छात्रा द्वारा नारा लगा कर उकसाने पर भी छात्रों ने अपना विरोध जारी रखा और कोई अमानवीय व्यवहार नहीं किया। क्योंकि ये भारत है। ये शिवाजी और महाराणा प्रताप की परंपरा का देश है। यह बाबर या अकबर की परंपरा का देश नहीं जिनके कारण जौहर जैसी घटनाएं होती रही हैं। यह चीन, पाकिस्तान या अफगानिस्तान भी नहीं है। यह भारत है। यहां सब को अपनी बात रखने और और विरोध करने का अधिकार है। विरोध छात्रा का नहीं बल्कि विचार का है। बात-बात पर मुंह उठाकर भारत की तुलना तालिबान से करने वाले जरा कल्पना करें, यदि कोई अल्पसंख्यक छात्रा पाकिस्तानी या तालिबानी भीड़ के सामने पाकिस्तान या अफगानिस्तान में यही उकसाने का कार्य करती तो उसका क्या हाल होता? शायद वही होता जो भेड़ियों के सामने बकरी का होता है? किंतु यहां तालिबानी या पाकिस्तानी भेड़िए नहीं बल्कि स्वस्थ परंपरा के नागरिक रहते हैं। इतनी स्वतंत्रता के बाद भी भारतीय धर्म और संस्कृति पर निरंतर प्रहार होते रहे हैं। विधर्मी देश की छवि को धूमिल करने का कोई अवसर नहीं चूकते आखिर क्यों?

आइए समझें, कुछ वर्षों पहले क्रिकेट जगत में ऑस्ट्रेलिया ने एक रणनीति खूब अपनाई, जिसे अंग्रेजी में ‘स्लेजिंग’ कहते हैं। जब बल्लेबाजों की कोई जोड़ी टिककर खेल रही होती थी और रन भी अच्छे बन रहे होते थे, तो खिलाड़ियों का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से ऑस्ट्रेलियाई टीम उनका मजाक उड़ाना, गाली देना और कभी-कभी तो बॉल मार कर विवाद उत्पन्न करने जैसी हरकतें करना शुरू कर देती थी। बहुत बार वे इसमें सफल भी होते थे। किंतु ऐसे समय में धैर्य आवश्यक है। ठीक उसी रणनीति पर कुछ ताकतें चल रही हैैं।

भारतीय धर्म और संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं। कोई हिंदू और हिंदुत्व में अंतर बता रहा है। कोई पुराने हिंदुत्व को अच्छा और नए हिंदुत्व को खराब बता रहा है। कोई कह रहा है कि भारत एक राष्ट्र ही नहीं है। गाय-गोबर, शंख-झालर, ताली-थाली, मंदिर-दीपक, आदि का मजाक बनाया जा रहा है। कोई कह रहा है बिकिनी पहनकर भी स्कूल जा सकते हैं। कोई पाकिस्तान जिंदाबाद जैसे शब्दों का प्रयोग करके उकसाने की कोशिश कर रहा है। इस सब छटपटाहट का क्या अर्थ है? इसका सीधा अर्थ है, कि आपकी टीम के दोनों सलामी बल्लेबाज विरोधी टीम की धुआंधार ठुकाई कर रहे हैं। और आने वाला बल्लेबाज और भी ज्यादा खतरनाक है। इसलिए धैर्य बनाए रखिए और अच्छी टीम का चयन करते रहिए। जिस अनुपात में भारत पर चारों ओर से मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक आक्रमण हो रहे हैं, उसके अनुसार दो मैच जीतने से कुछ नहीं होगा, बल्कि पूरी सीरीज क्लीनस्वीप करनी होगी। लक्ष्य सम्मुख है।

“उठो! जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको” – स्वामी विवेकानंद।
लेकिन लक्ष्य क्या है?
लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है-
“परंवैभवन्नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्”
अपने राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाना ही लक्ष्य है। समय परिवर्तनकारी है।
लक्ष्य निकट है। प्रयास करते रहिए।
“इदम् राष्ट्राय इदं न मम्।”

इस भाव से लोकतंत्र के यज्ञ में अपने वोट की आहूतियां देते रहिए। वातावरण शुद्ध हो जाएगा। विघटनकारी बादल छंट जाएंगे। आसुरी अट्ठाहास करने वाली शक्तियां स्वयमेव भस्म हो जाएंगी। चरैवेति-चरैवेति। और अंत में संघ गीत (सिर्फ 4 लाइन लिखना चाहता था किंतु गीत के शब्द इतने अच्छे थे कि दो अंतरे लिखने पड़े।)

संस्कृति सबकी एक चिरंतन, खून रगों में हिंदू है।
विराट सागर समाज अपना, हम सब इसके बिंदु हैं।
रामकृष्ण गौतम की धरती, महावीर का ज्ञान जहां।
वाणी खंडन मंडन करती, शंकर चारों धाम यहां।
जितने दर्शन राहें उतनी, चिंतन का चैतन्य भरा।
पंथ खालसा गुरूपुत्रों की, बलिदानी यह पुण्य धरा।
अक्षय वट, अगणित शाखाएं, जड़ में जीवन हिंदू है।
विराट सागर…..
हरिजन गिरिजनवासी वन के, नगर ग्राम सब साथ चलें।
ऊंच-नीच का भाव घटाकर, समता के सद्भाव बढ़ें।
ऊपर दिखते भेद भले हों, जैसे वन में फूल खिले।
रंग बिरंगी मुस्कानों से, जीवन रस पर एक मिले।
एक बड़ा परिवार हमारा, पुरखे सबके हिंदू हैं।
विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदु हैं।

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