ई श्रम पोर्टल एक सार्थक कदम

भारत सरकार ने असंगठित मजदूरों, कामगारों के संगठित करने हेतु ई श्रम पोर्टल की शुरुआत की है। यह एक सकारात्मक और समावेशी प्रयास है। कोरोना वायरस का भयावह रूप के दौर में प्रवासी मजदूरों की लाचारी, बेरोजगारी, मजबूरी सड़कों पर जन सैलाब की मंजर पूरे देश ने देखी। संभव है उसी की बाद सरकार को होश आया हो कि देश को 90 फीसदी से अधिक श्रम शक्ति को संगठित किया जाय। भारत में असंगठित श्रम काम करना बंद कर दे, या आंदोलन छेड़ दे, तो सरकारों और निजी उधोगों को असंगठित श्रम की शक्ति का एहसास हो जाएगी क्योंकि आंकड़ों के अनुसार, भारत में मात्र 3.75 प्रतिशत लोगों के पास सरकारी नौकरी है। निजी संगठित क्षेत्र की बात करें, तो यहां कुल नौकरियों का 10 प्रतिशत रोजगार है। रोजगार के शेष अवसर असंगठित क्षेत्रों में उपलब्ध है, या ऐसा कहें कि असंगठित क्षेत्र भारत की वह आर्थिक रीढ़ है, जिसने आर्थिक मंदी जैसी वैश्विक चुनौतियों से विगत बरसों में भारत को बचाए रखा है।

इसके बावजूद असंगठित कार्यबल के साथ ढेरों मुश्किलें हैं। अंततः भारत सरकार ने ई श्रम पोर्टल की शुरुआत की है, ताकि असंगठित कामगारों का एक संगठित डाटाबेस तैयार किया जा सके। जिस तरह से देश में कोरोना के कारण लगे पूर्ण तालाबंदी से महानगरों में काम धंधा बंद होने से श्रमिकों को बेरोजगार होकर वापस घर आना पड़ा और यातायात की असुविधा को भुगतना पड़ा। उन्हे खाने–पीने के लिए दर–दर भटकना पड़ा। स्वास्थ्य सुविधा के लिए मारे–मारे फिरना पड़ा, बड़ी मुश्किल से जहोदजद के बाद किसी तरह से अपने आप को बचा पाने में सक्षम हुए हैं। अपने परिवार, बाल-बच्चे को लेकर लंबी दूरी की यात्रा पैदल करना पड़ा। रास्तों में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा, यह बात किसी से छिपी नहीं है। उन देवदूतों का बहुत–बहुत आभार है कि इस विकट परिस्थितियों उन श्रमिकों को अनेक बड़ी मुश्किल से कुछ देवदूतों के सहारे अपने गाँव को पहुंचे। इस दौरान कितने मजदूरों की जान चली गयी, कितने यातायात की सुविधा न होने के कारण अफरा–तफरी के माहौल में अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। इस बेचारगी भरा माहौल पूरे देश ने देखा है। देश की राजनीतिज्ञ सिर्फ टीवी पर बैठकर बयानबाजी में व्यस्त थे। आरोप–प्रत्यारोप का दौर का सिलसिला का स्थगन कोरोना की विभीषिका की कहर भी नेताओं के समक्ष रोकने में नाकामयाब रही। हालांकि बयानबाजी और निजी हमले सभी राजनीति पार्टियों का चरित्र बन चुका है। ऐसे मतभेद भारत की राष्ट्रीय चरित्र है और होना भी चाहिए, क्योंकि एक लोकतान्त्रिक देश में अपना–अपना मत व्यक्त करने का अधिकार सबों को है। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी का स्वरूप जनता के लिए हितकर कार्यों से इतर सिर्फ निजी हस्तक्षेप बनकर रह जाय तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोरोना रूपी त्रासदी में श्रमिकों एवं कामगारों की मुसीबतों का समाधान देश के नियंता के तरफ किया गया कोशिश ई -श्रम पोर्टल बहुत ही सार्थक कदम है।

इन सब परिस्थितियों से निबटने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई डाटाबेस नहीं था, जिसके आधार पर समुचित सहायता राशि या अन्य राहतें मुहैया कराई जा सकती थी। ऐसे में कई कामगार सहायता से वंचित रह गए जो  इस पोर्टल के माध्यम से अपनी पंजीकरण करा सकते हैं और पंजीकृत हो भी रहे हैं। हालांकि अभी इसकी समीक्षा होनी शेष है कि इस दिशा में केंद्र सरकार कितनी सफल हो पाई है। सरकार का मानना है कि लगभग 38 करोड़ असंगठित कामगारों का पंजीकरण हो चुका है। जिसमें करीब 87 फीसदी ओडिशा के हैं, जो सर्वाधिक आंकड़ा है। उसके बाद पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड ऑर बिहार के असंगठित श्रमिक हैं। लेकिन मंजिल अभी दूर है। अभी तक की डाटा से स्पष्ट है कि करीब 41 फीसदी असंगठित कामगार ओबीसी वर्ग के हैं। करीब 28 फीसदी सामान्य वर्ग, करीब 24 फीसदी अनुसूचित जाति ऑर 8 फीसदी जनजाति के हैं। पोर्टल में कामगारों, श्रमिकों एवं अन्य कर्मचारियों का पेशा, हुनर, धंधा आदि को शामिल किया गया है ताकि पहचान किया जा सके कितने असंगठित कामगारों की कौशल कितनी है ऑर वे किस पेशे से जुड़े हैं। पोर्टल के अनुसार कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक 54 फीसदी पंजीकरण हुए हैं। उसके बाद निर्माण कार्य में करीब 12 फीसदी, घरेलू सहायक या कर्मचारी करीब 9 फीसद हैं।

कोरोना के कारण कई क्षेत्र बर्बाद हो चुका है। कई क्षेत्र में सामान्य से कम कार्य हो रहे हैं अर्थव्यवस्था ऋणात्मक हो चुकी है। लेकिन धीरे –धीरे सब कुछ बदल रहा है।लेकिन कोरोना की तीसरी लहर की संकेत चुनौती बनी हुई है। एक तरफ सबकुछ सामान्य होकर रफ्तार पकड़ रही थी, वहीं दूसरी ओर कोविड की तीसरी लहर जनता और सरकार को मुसीबत खड़ी कर सकती है। परंतु भी अर्थव्यवस्था का विकास दर भी 8.9 रहने की उम्मीद है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा असंगठित श्रमिकों का डाटाबेस बनाना बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगी। केंद्र सरकार उनके लिए कुछ योजनाओं को घोषित कर सकती है। ऐसा डाटाबेस निजी कंपनियों को भी बनाने का निर्देश सरकार दे, जहां कर्मचारियों की संख्या इतनी है कि सभी कर्मियों को पीएफ काटा जा रहा हो। जो श्रमिकों और कामगारों के लिहाज से बहुत ही सार्थक कदम होगा। यह श्रमिक पोर्टल अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।

ज्योति रंजन पाठक -औथर व कौल्मनिस्ट  

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