नए संसद भवन के भूमि पूजन के समय, मोदी जी ने उथिरामेरूर का उल्लेख किया था: क्यों?

मित्रों लोकतन्त्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। इस प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जनादेश का दबाव नीतिगत विचलनों पर रोक का काम करता है, क्योंकि नियमित अन्तरालों पर सत्ता की वैधता हेतु चुनाव अनिवार्य होता है। हमारे देश में लोकतंत्र प्राचीनकाल से हि विद्दमान है और आप ब्रह्मार्षि और महान भुगोलवेत्ता वाल्मीकि जी द्वारा मर्यादा #पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवनकाल में हि रचित “सम्पूर्ण रामायण” में या महर्षि वेद व्यास द्वारा परमयोगी भगवान श्रीकृष्ण के हि जीवनकाल में रचित “जय संहिता महाभारत” में या बिलकुल सृष्टि के आरम्भ में चलें जाए तो “मनुस्मृति” में लोकतंत्र कि अवधारणा को स्थापित किया गया है और रामराज्य तो सदा सर्वदा के लिए लोकतंत्र का सर्वोत्तम मॉडल है।

गुप्तकाल में भी भारतवर्ष में लोकतंत्र अपने चर्मोत्कर्ष पर था, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का साम्राज्य तो सम्पूर्ण विश्व में फैला था।अर्थशास्त्र के द्वारा आचार्य चाणक्य ने भी लोकतंत्र कि अद्भुत ब्याख्या कि है। चन्द्रगुप्त मौर्य का शाशनकाल भी लोकतंत्र का पर्याय माना जाता है।

भारतवर्ष में यदि बाहरी बर्बर और मक्कार हूण, अरब, मुग़ल और ईसाई जंगली समुदाय के द्वारा बिताये गए समय को छोड़ दे तो लोकतंत्र कि परम्परा अनवरत शासन व्यवस्था के रूप हर वक़्त विद्दमान थी।

खैर हम यंहा उथिरामेरूर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं।

मित्रों उथिरामेरूर चेन्नई से लगभग ९० किमी दूर कांचीपुरम जिले में स्थित है, जो अपने आप में १२५० वर्षों का इतिहास समेटे हुए है। और आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में विद्दमान लोकतंत्र का सर्वोत्तम मॉडल है। कांचीपुरम ज़िला भारत के राज्य तमिलनाडु का एक जिला है। इसे कांची तथा कांजीवरम के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्यालय कांचीपुरम है। यहां मुख्यतः वन्नियार समुदाय के लोग रहते हैं। हिंदू धर्म के चार प्रसिद्ध पीठों में से एक कांचीपुरम का पीठ है।

उथिरामेरूर में तीन महत्वपूर्ण मंदिर हैं। और इन तीन मंदिरों में बड़ी संख्या में शिलालेख हैं, विशेष रूप से राज राजा चोल (९८५-१०१४ ईस्वी), उनके पुत्र राजेंद्र चोल और विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय के शासनकाल के हैं।

वास्तव में, तमिलनाडु के कई हिस्सों में विभिन्न शासन काल के दौरान स्थापित किये गए मंदिराें की दीवारों पर लिखें गए शिलालेख ग्राम सभाओं का उल्लेख करते हैं। तमिलनाडु के पुरातत्व विभाग के पुरालेखविद् आर. शिवानंदम कहते हैं, कि “उथिरामेरूर में स्थापित किये गए मंदिरो कि दीवारो पर ही सबसे पुराने शिलालेख पाये जाते हैं, जिनमें इस बारे में पूरी जानकारी मिलती है कि निर्वाचित ग्राम सभा कैसे काम करती है।” विदित हो कि परान्तक चोल [९०७-९५५ ई.] के शाशन- काल की अवधि के दौरान ग्राम प्रशासन को चुनावों के माध्यम से एक आदर्श ग्राम प्रणाली के रूप में सम्मानित किया गया था।

उथिरामेरूर में स्थापित किये गए मंदिरो कि दीवारो पर रचे गए शिलालेख एक ऐतिहासिक तथ्य की गवाही देते हैं कि लगभग ११०० वर्ष पुर्व, एक गाँव में एक विस्तृत और अत्यधिक परिष्कृत चुनावी प्रणाली प्रयोग में थी और यहाँ तक कि इनका एक लिखित संविधान भी था जो चुनावी प्रक्रिया को निर्धारित करता था।

ऐच्छिक ग्राम लोकतंत्र की इस प्रणाली का विवरण ग्राम सभा (ग्राम सभा मंडप) की दीवारों पर अंकित है, ग्रेनाइट स्लैब से बनी एक आयताकार संरचना “यह भारत के इतिहास में एक उत्कृष्ट दस्तावेज है। यह ग्राम सभा का एक सत्य लिखित संविधान है जो 1,000 साल पहले काम करता था, ”डॉ. नागास्वामी प्रसिद्ध पुरातत्वविद् कहते हैं कि “शिलालेख, वार्डों के गठन, चुनाव के लिए खड़े उम्मीदवारों की योग्यता, और अयोग्यता के मानदंड, चुनाव का तरीका, निर्वाचित सदस्यों के साथ समितियों का गठन, उन समितियों के कार्यों, गलत करने वाले को हटाने की शक्ति के बारे में आश्चर्यजनक विवरण देता है। आदि…”।

ग्रामवासियों को यह अधिकार भी था कि वे निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने कर्तव्य में विफल होने पर वापस बुला(Recall) सकते हैं।

उथिरामेरूर में प्रयोग में लायी जाने वाली लोकतंत्रात्मक प्रक्रिया की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:-

१:-गाँव को 30 वार्डों में विभाजित किया गया था, जिसमें प्रत्येक वार्ड के लिए एक प्रतिनिधि चुना गया है।

२:-जो लोग चुनाव लड़ना चाहते थे उनकी आयु ३५ वर्ष से अधिक और ७० वर्ष से कम होनी आवश्यक है।

३:-जो लोग (TAX) कर देते हैं, वे ही चुनाव लड़ सकते हैं।

४:-ऐसे मालिकों के पास कानूनी रूप से स्वामित्व वाली साइट (सार्वजनिक पोराम्बोक पर नहीं) पर बनाया गया घर होना चाहिए।

५:-किसी भी समिति (Committee) में सेवारत व्यक्ति अगले तीन कार्यकालों के लिए फिर से चुनाव नहीं लड़ सकता है, प्रत्येक कार्यकाल एक वर्ष तक चलता है।

६:-निर्वाचित सदस्य जिन्होंने रिश्वत स्वीकार की, दूसरों की संपत्ति का दुरूपयोग किया, अनाचार किया, या जनहित के विरुद्ध कार्य किया, उन्हें अयोग्यता का सामना करना पड़ता है।

७:-चुनाव होने पर बच्चों सहित पूरे गांव को ग्राम सभा मंडप में उपस्थित होना पड़ता है केवल बीमार और तीर्थ यात्रा पर जाने वालों को ही छूट है।

आपको क्या लगता है आज का चुनाव आयोग जिस प्रक्रिया का प्रयोग करके चुनाव सम्पन्न कराता है, वो कायदे क़ानून कंहा से लिए गए हैं…. चलिए आप बताइए क्या आपको स्वर्गीय श्री टी. एन. शेशन जी याद हैं, इन्होनें हि तो सुधार लागू किये जो अब तक प्रयोग में लाए जा रहे हैं।

दरअसल, स्वर्गीय श्री. टी एन शेषन, (पूर्व चुनाव आयुक्त), जब उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था, तो वे थोड़े निराश थे और उसी निराशा में वे “परमाचार्य” जी से मिले, परमाचार्य जी, जो उस वक़्त ९७ वर्ष के थे और् उन्होंने तुरंत स्वर्गीय श्री. टी एन शेषन की निराशा के कारण को भांप लिया और उन्हें भारतीय जनता की सेवा करने के लिए भगवान द्वारा दिए गए एक अवसर के रूप में इस नियुक्ति को चरितार्थ करने की सलाह दी।

परमाचार्य जी ने सुझाव दिया था कि श्री शेषन उथिरामेरुर मंदिर जाएं और लगभग 1000 साल पहले भारत में प्रचलित चुनावी नियमों का उल्लेखनीय विवरण पढ़ें, जिसमें चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की योग्यता का विवरण भी शामिल है।

स्वर्गीय श्री. टी एन शेषन जी के शब्दों में, “चुनावी सुधारों का श्रेय कांची महास्वामी को जाता है जिनके परामर्श के बिना उनके लिए चुनावी प्रक्रिया में क्रन्तिकारी सुधार करना संभव नहीं होता।

स्वर्गीय श्री. टी एन शेषन जी ने बताया कि ९७ वर्ष की उम्र में भी उनके पास इतनी स्पष्टता थी कि उन्होंने उथिरामेरुर मंदिर की उत्तरी दीवारों पर उभरे चुनावी नियमों का सूक्ष्म विवरण दिया और मुझे बताया कि इन सुधारों के दसवें हिस्से को लागू करना भी भारत के लिए कि गई एक महान सेवा होगी। आप हम और् ये समस्त विश्व जानता है कि उसके बाद जो कुछ हुआ वो इतिहास बन गया।

स्तंभकार टी.जे.एस. जॉर्ज के शब्दों में, “शेषन ने दिखाया कि एक व्यक्ति यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर सकता है कि लोकतंत्र एक हाइड्रा-सिर वाला राक्षस न बन जाए। परन्तु समय रहते शेषन सेवानिवृत्त हो गए और राक्षस मुक्त हो गया। ”

मुझे संदेह है कि तमिलनाडु या हमारे देश में घड़ी घड़ी लोकतंत्र को बचाने के लिए दंगे फसाद करने वाले कितने राजनेता हैं जो इसके बारे में जानते हैं।

यह अद्भुत था कि हमारे प्रधान मंत्री ने इसे राष्ट्रीय मंच पर साझा किया ताकि देश भर में सभी को हमारी संस्कृति की समृद्धि को जानने का अवसर मिले। उथिरामेरुर में विष्णु मंदिर बहुत ही अनोखा है क्योंकि इसे विश्वकर्मा ने बनाया था और यह बनाया जाने वाला पहला अष्टांग विमान है। चेन्नई के बेसेंट नगर में अष्टलक्ष्मी मंदिर में विम ग्वाना का डिजाइन और निर्माण इसी विमान की नकल करते हुए किया गया था।

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
aryan_innag@yahoo.co.in

Nagendra Pratap Singh: An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.
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