त्रिपुरा निकाय चुनाव का संदेश

बीजेपी के खिलाफ त्रिपुरा स्थानीय चुनाव में सभी विरोधी दलों और कुछ कथाकथित पत्रकारों ने बहुत हवा में माहौल बनाने की कोशिश की।त्रिपुरा की छोटी घटना को देश में बडे सांप्रदायिक दंगे के रूप में पेश करके त्रिपुरा को बदनाम करने का प्रयास किया। टीएमसी पश्चिम बंगाल के बाहर बहुत प्रयास किया त्रिपुरा में चुनाव जीतने का, मगर जमीनी हकीकत में बीजेपी की प्रचंड जीत ने सभी को बहुत तगडा झटका दिया हैं।
त्रिपुरा राज्य के स्थानीय चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत ने विपक्ष के साथ पूरे देश को चौंका दिया है। पश्चिम बंगाल में मिली भारी जीत के बाद ममता बैनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा को जिस तरह से अपनी राजनीति का दूसरा प्रमुख केंद्र बिंदु बनाया था और पुरी आक्रमकता से त्रिपुरा राज्य में सदस्यता अभियान और प्रचार-प्रसार अभियान चलाया था, उससे प्रतीत हो रहा था कि भारतीय जनता पार्टी को त्रिपुरा मे तृणमूल कांग्रेस से अच्छी चुनौती मिल सकती है। मगर चुनाव परिणामों ने सबको गलत साबित कर दिया हैं। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला नगर निगम सहित कुल चौबीस नगर निकायों के चुनाव संपन्न हुए, 334 वार्डों मे से बीजेपी अपने दम पर 329 वार्डों पर जीत हासिल करने में सफल हुई। किसी भी पार्टी को इससे बडी सफलता कुछ हो ही नही सकती है। पुरे दम खम लगाने के बाद ममता बैनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को मात्र एक सीट पर संतोष करना पडा।

वेस्ट बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद पूरे देश में माहौल बनाया गया कि भाजपा के ढलान की शुरूआत हो चुकी है और कम से कम पूर्वोत्तर राज्यों में ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस उसे पराजित करने की स्थिति में आ चुकी है। भाजपा के विरूद्घ जिस तरह से विरोधी वातावरण अथवा माहौल बनाने की बात की जाती है ऐसे में विचार करना पडेगा कि आखिर क्यूं वैसा हो नहीं पाता? माकपा को हटाकर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के बाद दूसरा स्थान प्राप्त कर लिया है। दोनों दलो के मध्य वैचारिक मतों मे इतनी दूरी है जिसकी परिकल्पना करना व्यावहारिक नहीं लगता है। 2023 के विधानसभा चुनाव होने में अभी समय है इसलिए अभी किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी करना उचित नहीं होगा। लेकिन सभी को ये स्वीकार करना होगा कि त्रिपुरा मे संपन्न हुए निकाय चुनाव को न केवल टीएमसी, बल्कि पुरे देश के भाजपा विरोधियों ने बडे चुनाव के रूप परिणात कर दिया था।त्रिपुरा की सीमा से लगते बंग्लादेश में हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों पर हिंसात्मक हमले के विरोध में हुए धरना प्रदर्शन के दौरान हुई एक छोटी-सी हिंसक झडप की घटना को बडा बनाकर प्रचारित किया गया, कांग्रेसी नेता राहुल गांधी भी अपने सॉशल मिडिया प्लेटफॉर्म पर कूद पडा था, सबका उद्देश्य बिल्कुल साफ था। मामला सॉशल मिडिया पर पुरी तरह से तोडमरोड कर पेश किया गया तथा न्यायालय तक भी पहुंची गया था। सभी विपक्षियों और कुछ कथाकथित पत्रकारों के झुंड ने इसको भाजपा के खिलाफ ऐसे प्रचारित किया कि मानों भाजपा सरकार के संरक्षण में हिंदुत्ववादी शक्तियां वहां पर अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा कर रही है और पुलिस या स्थानीय प्रशासन भी उनका कुछ नहीं बिगाड पाते हैं। पुरी तैयारी यही थी कि त्रिपुरा में पश्चिम बंगाल दोहराया जा सकता था।

वास्तव में पश्चिम बंगाल चुनाव में के बाद विपक्ष की कल्पना ठीक वैसी लगती है, जैसे कांग्रेस मे 2018 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी जीत के बाद मान लिया था कि भाजपा अब अपने पराभाव की तरफ बढ गयी है तथा कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व का पुनरोदय हो रहा है। मगर विपक्ष की ये खुशी सालभर भी नहीं टिक पाई तथा 2019 लोकसभा चुनाव परिणामों ने इस कोरी कल्पना का गुब्बारा फोड दिया। हमें समझना होगा कि पश्चिम बंगाल का मतलब पुरा भारत बिलकुल भी नहीं हैं। सोचिएगा पडोसी और क्षेत्रफल के हिसाब छोटा त्रिपुरा जैसा राज्य पश्चिम बंगाल की राजनीति का अंग नहीं बन पाया, तो पुरा देश कैसे बन जाएगा? पश्चिम बंगाल का राजनीतिक वातावरण, सामाजिक-सांप्रदायिक समीकरण बिलकुल भिन्न है।लगभग तीन फीसदी मुसलिम मतदाता और वामपंथी विचार वाली जनता के पश्चिम बंगाल में रहते हुए बीजेपी के लिए बंगाल की संपूर्ण विजय आसान नहीं है।

वहां भाजपा को मुसलिम विरोधी,सांप्रदायिक, फासिस्टवादी बताने का असर मतदाताओं पर पडता है जो बीजेपी के खिलाफ मतदान करता है। ऐसा सब जगह नही हो सकता। भारत में ऐसे अनेक राज्य है जहां पर ये ही प्रचार भाजपा के पक्ष मे काम करता हैं। जहां एक पक्ष भाजपा का विरोध करता है तो वहीं दूसरा पक्ष मजबूती के साथ बीजेपी के फेवर में खडा होकर मतदान करता है। विपक्षियों को अपनी रणनीति पर दोबारा से विचार करना चाहिए, हालांकि वो ऐसा कभी करेगे नही। इससे ये धारणा भी मिथ्या साबित होती है कि जमीनी वास्तविकता के विपरीत हवा में माहौल बनाने से चुनाव जीता जा सकता है। त्रिपुरा के स्थानीय चुनाव परिणामों ने साबित किया है कि आप बाहर कुछ भी हवा मे माहौल बना दे कि भाजपा खत्म हो रही है और टीएमसी उसकी जगह ले रही है, मगर जमीनी हकीकत में ऐसा कदापि नहीं था।

लेखःपूजा कुशवाह

Pooja Kushwah: Digital Journalist/ Social Activist/ News Media
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