मित्रों DAM SAFETY BILL २०१९ के बारे में बहुत हि कम लोगों को जानकारी है, परन्तु आपको अवगत करा दे कि उधर विपक्ष १२ राज्य सभा सांसदों के निलंबन पर शोर मचाने में मशगूल था, इधर मोदी सरकार ने ४० वर्षो से लटक रहे बिल को राज्य सभा में पारित कराके विधेयक के अधिनियम बनने कि राह में आ रही सारी रुकावटों को दूर कर दिया(विदित हो कि लोक सभा ने इस विधेयक को २०१९ में हि पारित कर दिया था)।
परन्तु इस विधेयक तदुपरान्त क़ानून (अधिनियम) बनाने कि आवश्यकता क्यूँ पड़ी, चलीये इस तथ्य का विश्लेष्ण करते हैं।
*पृष्ठ भूमी*
मित्रों गुजरात का एक हरा भरा ज़िला है मोरबी। यह वर्तमान समय में उत्तर में कच्छ जिला से पूर्व में सुरेंद्रनगर से, दक्षिण में राजकोट से और पश्चिम में जामनगर जिले से घिरा है। मोरबी में एक ऐसा भी समय था जब यंहा दूध कि नदियाँ बहा करती थी। यंहा के राजकुमार लखदीरजी ठाकुर थे जिन्होंने इस जीले मे पवांर हॉउस, इन्जिनियरिंग कालेज और टेलिफोन एक्सचेंज बनवाकर इसके विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया था। कालांतर में चलकर यँहा सेरामिक इंडस्ट्री और दीवाल घड़ियां बनाने के कारखाने खुल गये गुजरात का यह ज़िला एक इंडस्ट्रियलाइज्ड टाउन के रूप में विख्यात हो गया।
मित्रों मोरबी राजकोट और सुरेंद्र नगर से होते हुए एक नदी बहती है जिसे माछू के नाम से जाना जाता है। इस नदी पर वर्ष १९५९ तक एक बाँध बनाया जा चुका था। परन्तु वर्ष १९६९ में दूसरे बाँध के निर्माण कार्य के शुरू हुआ। ये बाँध १२७०० फिट लम्बा और ६० फिट कि अधिकतम उंचाई वाला था। और अंतत: वर्ष १९७२ में ये दूसरा महत्वकांक्षी बाँध मिट्टी, रबिश और कंक्रीट से तैयार कर लिया गया।
वो अगस्त का महीना था और वर्ष था १९७९। १० अगस्त को भयानक तरीके से बारिश हो रही थी और इसने रौद्र रूप धारण कर लिया था। इस नए बने बाँध के खतरे के निशान के पास माछू नदी का जलस्तर आ चुका था। बारिश अनवरत होती रही और ११ अगस्त शाम को तीन बजे के आस पास माछू नदी के जल ने प्रलय ला दिया और पूरे वेग से बाँध को तोड़ता हुआ मोरबी में प्रवेश कर गया। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले हि। जलप्रलय ने तांडव करते हुए कम से कम २५००० (सरकार के अनुसार १०००) लोगों की जीवन लीला समाप्त कर दी। पालतू जानवर कितनी संख्या में समाप्त हुए इसका कोई लेखा जोखा तक नहीं मिल सका।
खैर तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकार ने इसे ” Act of God ” कि संज्ञा देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया पर कहते हैं ना सच्चाई किसी ना किसी प्रकार बाहर आ हि जाती है और इस बाँध के टूटने कि सच्चाई श्री उत्पल संदेसरा और श्री टॉम वुटन नामक लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तक “No One Had A Tongue To Speak” से दुनिया के सामने आई।
इस किताब को लिखने कि शुरुआत २००४ में कि गई और लगभग १५० लोगों का साक्षात्कार लिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी ने अपने जमाने में खुद इस आपदा में काम किया था अत: उन्होंने श्री उत्पल संदेसरा और श्री टॉम वुटन को उस वक्त की सारी रिपोर्ट दे दी पढ़ने को और फिर पता चला कि बांध को शिघ्रता से परन्तु सुरक्षा प्रावधानों को नजरअंदाज करते हुए बनाया गया था। बाँध के डिजाइन का अनुमोदन भी नहीं कराया गया था अत: तकनिकी तौर पर अत्यंत खराब था और इसके साथ हि इसका, ऊपरी हिस्सा तो बिल्कुल डर्ट का बना था। इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बना दिया गया जबकि ये मानवीय गलती थी।
आइये हम यह समझने का प्रयास करते हैं की बांध होते क्या हैं ?
दोस्तों बाँध एक प्रकार का कृत्रिम अवरोध है जो जल के निरंतर प्रवाह को रोकता है और इस प्रकार एक जलाशय बनाने में सहायक होता है। इससे बाढ़ आने से तो रुकती ही है, जमा किये गया जल सिंचाई, जलविद्युत, पेय जल की आपूर्ति, नौवहन आदि में सहायक होता है। बांध लघु, मध्यम तथा वृहद् आकार का हो सकता है। बांध का निर्माण कंक्रीट, चट्टानों, लकड़ी अथवा मिट्टी से भी किया जा सकता है। भाखड़ा बांध, सरदार सरोवर, टीहरी बांध इत्यादि बड़े बांधों के उदाहारण है। एक बांध की इसके पीछे के पानी के भार को वहन करने की क्षमता अतिआवश्यक होती है। बांध पर धकेले जाने वाली जल की मात्रा को जल-दाब कहते है। जल-दाब जल की गहराई के साथ बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप कई बांधों का तल चौडा होता है जिससे यह सतह के काफी नीचे बहुभाग में बहने वाले जल का भार वहन कर सकें।
आइये देखते हैं कि कितने प्रकार के बांध बनाये जाते हैं:- दोस्तों बांध के प्रकार बनाए जाने वाले बांध के स्थान, सामग्री, तापमान, मौसम अवस्थाओं मिट्टी एवं चट्टान किस्म तथा बांध के आकार पर निर्भर करते हैं।
(१) गुरूत्व बांध कंक्रीट से बने बहुत बड़े एवं वजनदार बांध होते हैं। इस तरह के बांधों का निर्माण एक बड़ी नींव पर किया जाता है तथा इनके वजनदार होने से इन पर जल के वहाव का असर नहीं होता। गुरूत्व बांधों को केवल ताकतवर चट्टानी नींव पर ही बनाया जा सकता है। अधिकांश गुरूत्व बांधों का निर्माण महँगा होता है क्योंकि इनके लिए काफी कंक्रीट की आवश्यकता होती है। भाखड़ा नांगल बांध एक कंक्रीट गुरूत्व बांध है।
(२) चाप बांध केन्यन की दीवारों की सहायता से बनाए जाते हैं। चाप बांध का निर्माण जल की ओर मुडी चाप की भांति किया जाता है। चाप बांध संकरी, चट्टानी स्थानों के लिए उत्तम है। चाप बांध को केवल संकरी केन्यन में ही बनाया जा सकता है जहाँ चट्टानी दीवारें कठोर एवं ढालुआँ होती है। बांध द्वारा धकेले जाने वाला जल बांध के लिए सहायता करता है। भारत में केवल इद्दूकी बांध ही एक चाप बांध है।
(३) तटबंध बांध प्रायः मिट्टी के बांध अथवा रॉकफिल बांध होते हैं। यह मिट्टी तथा चट्टान के बने विशाल आकार के बांध होते है जिसमें जल के तेज बहाव को रोक सकें । इनमें चट्टानों की दरारों से होने वाले जल के रिसाव को रोकने के लिए मिट्टी अथवा कंक्रीट की परत का इस्तेमाल किया जाता है । चूंकि मिट्टी कंक्रीट की भांति शक्तिशाली नहीं होती, मिट्टी के बांध आकार में काफी मोटे होते है । टिहरी बांध , रॉकफिल बांध का एक उदाहरण है।
आइये इस बिल (जो कुछ ही दिनों में कानून का रूप धारण कर लेगा) की विशेषताओं पर एक दृष्टि डालते हैं
जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो जाता है की इस विधेयक के अंतर्गत पुरे भारतवर्ष में निर्दिष्ट समस्त बांधो (जिनमें 15 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले, या 10 मीटर से 15 मीटर की ऊंचाई तथा विशिष्ट रुपरेखा और सरंचना वाले बांध शामिल हैं) की चौकसी, निरीक्षण, परिचालन और रखरखाव से संबंधीत महत्वपूर्ण प्रावधान किये गए हैं ।
इस विधेयक के अंतर्गत (१) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति और (२) राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण जैसी दो राष्ट्रीय निकायों की स्थापना करने का प्रावधान है। जँहा एक और राष्ट्रिय बांध सुरक्षा समिति का यह दायित्व होगा कि वो “बांध सुरक्षा मानदंडों से संबंधित नीतियां बनाये और इसके सम्बन्ध में रेगुलेटरों को अपने अमूल्य सुझाव दे वंही दूसरी और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण का दायित्व होगा कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की नीतियों को लागू करे , राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (एसडीएसओज़) को तकनीकी सहायता प्रदान करे और राज्य बांध सुरक्षा संगठनों (एसडीएसओज़) के मध्य , और एसडीएसओ एवं उस राज्य के बांध मालिकों के मध्य उत्पन्न होने वाले विवादों को सुलझाये।
ये तो हुई राष्ट्रिय स्तर पर किये गए गठन की बात अब हम चर्चा करेंगे राज्य स्तरीय संगठनों के गठन पर , जी हाँ दोस्तों इस विधेयक के प्रावधानों के अंतर्गत दो राज्य स्तरीय निकायों के गठन उनके दायित्व और अधिकारों का भी प्रबंध किया गया है | राज्यीय स्तर पर (१) राज्य बांध सुरक्षा समिति और (२) राज्य बांध सुरक्षा संगठन की स्थापना करने का प्रावधान किया गया है| इस विधेयक में सुसंगत प्रावधानों के द्वारा इन राज्य स्तरीय निकायों को अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले बांधों की चौकसी, निरीक्षण, और परिचालन की निगरानी एवं रखरखाव करने हेतु आवश्यक दायित्व और अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
इस विधेयक में दी गयी अनुसूचियों के अंतर्गत राष्ट्रीय निकायों और राज्यीय निकायों के कार्यो का उल्लेख किया गया है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है की इन अनुसूचियों को वक्त और परिस्थितयों की मांग के अनुसार सरकारी अधिसूचना के जरिए संशोधित किया जा सकता है। जैसा की आप सभी को यह विदित है कि संविधान के अनुसार, राज्य जल जैसे विषय पर कानून बना सकते हैं जिनमें पानी का भंडारण और जल शक्ति भी शामिल हैं फिर भी अगर जनहित में जरूरी माना जाता हो तो संसद भी अंतरराज्यीय नदी घाटियों को रेगुलेट और विकसित कर सकती है। इस विधेयक के अंतर्गत राज्यों के भीतर बहने वाली नदियों पर बने बांध और राज्यों के बीच बहने वाली नदियों के ऊपर बने बांध , दोनों प्रकार के बांधो को शामिल किया गया हैं।
इस विधेयक के अंतर्गत बांध मालिकों की बाध्यताएं और दायित्व |
इस विधेयक के अनुसार बांध मालिक बांधों के सुरक्षित निर्माण, परिचालन, ररखरखाव और निगरानी के लिए जिम्मेदार होंगे। उन्हें प्रत्येक बांध में एक सुरक्षा इकाई बनानी होगी। यह इकाई निम्नलिखित स्थितियों में बांधों का निरीक्षण करेगी: (i) बारिश के मौसम से पहले और बाद में, और (ii) हर भूकंप, बाढ़, प्राकृतिक आपदा या संकट की आशंका के दौरान और उसके बाद। बांध मालिकों के कामकाज में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) आपातकालीन कार्य योजना तैयार करना, (ii) निर्दिष्ट अंतराल पर नियमित जोखिमों का आकलन करना, और (iii) विशेषज्ञ पैनल के जरिए प्रत्येक बांध का व्यापक सुरक्षा मूल्यांकन करना।
इस विधेयक के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों के अनुसार कार्य ना करने या कार्य करने से रोकने की प्रवृति को अपराध माना गया है और इस अपराध के लिए दंड @ सजा का भी प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को बिल के अंतर्गत प्रदत्त कार्य करने से रोकता है या निर्देशों के अनुपालन से इनकार करता है तो उसे एक वर्ष तक की कैद हो सकती है। अगर अपराध के कारण किसी की मृत्यु हो जाती है तो कैद की अवधि दो वर्ष तक हो सकती है।
मित्रों इस भाग में इतना ही अगले अंक में हम कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे |
Nagendra Pratap Singh(Advocate) aryan_innag@yahoo.co.in